पाञ्चजन्य और आर्गनाइजर की ओर से आयोजित पर्यावरण संवाद में पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न तरीकों से काम करने वाले देश के सात पर्यावरण प्रहरियों को सम्मानित किया गया।
पहाड़ की चुनौतियों पर पाई जीत
वर्ष 1990 में पहाड़ के गांवों को स्वच्छ बनाने और प्रमुख समस्याएं को दूर करने के ध्येय से काम शुरू किया। इसी कड़ी में संस्था ने 1996 में सीमांत क्षेत्र के 84 गांवों में 7990 शौचालयों का निर्माण कराया। इससे गांवों को मिले निर्मल ग्राम पुरस्कार से प्राप्त धनराशि से हरेक घर में गैस सिलेंडर लाए गए। पानी के लिए महिलाओं के संघर्ष को देखते हुए जल स्रोतों का संरक्षण और बारिश के पानी को एकत्र करके तालाब बनाने का काम शुरू हुआ। आज इन इलाकों में घर—घर पानी की पहुंच हो गई है। बहुत ज्यादा दिक्कत वाले 122 घरों में रेन हार्वेस्टिंग टैंक बनाए गए हैं।
सौर ऊर्जा क्षेत्र में नवाचार की मिसाल
मध्य प्रदेश स्थित इंदौर के रहने वाले रजनीश शर्मा ने देश में सौर उर्जा क्षेत्र में एक नई मिसाल पेश की है। भारत के सोलर कारोबारी पहले सौर उपकरणों के लिए विदेशी आयात पर निर्भर थे। रजनीश ने इसे चुनौती रूप में लिया और खुद की कंपनी खड़ी करके सौर उपकरणों का उत्पादन शुरू किया। घरों के लिए छोटे—छोटे सौर सिस्टम, होम लाइटिंग सिस्टम, सौर लैंप और सौर स्ट्रीट लाइट का निर्माण किया। इसी बीच सोलर पैनल बनाने का विचार आया, क्योंकि इसके लिए देश को विदेशी आयात पर निर्भर रहना पड़ रहा था। ऐसे में अपनी मशीनरी के निर्माण की बात सोची और फिर सोलर सेल टेस्टर, सोलर मोडोलर टेस्टर, रिबन कटाई मशीन, सेल लेजर कटिंग मशीन, सोलर पैनल फार्मिंग मशीन खुद ही बना डाली। फिर छोटे वाट के पैनल बनाने की शुरुआत की।
पहाड़ के भगीरथ
उत्तराखंड के उफरेखाल के शिक्षक सच्चिदानंद भारती इलाके में भगीरथ बाबा के नाम से ख्यात हैं। आज से 30—32 वर्ष पहले शिवालिक का यह इलाका वीरान और जल संकट से ग्रस्त था। लेकिन सच्च्दिानंद जी ने ग्रामवासियों को साथ लेकर यहां हजारों जलस्रोत बनाए और 800 हेक्टेयर क्षेत्र में लाखों पेड़ लगाए। अब यहां चारों तरफ हरियाली है। यहां के 140 गांवों की आबोहवा बदल डाली। करीब आठ सौ हेक्टेयर का यह जंगल भारती जी के इस भगीरथ कार्य का गवाह बना दिखता है।
वन और वायु को समर्पित हैं समीर
पर्यावरण योद्धा समीर मोहन 1994 से पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रहे हैं। वर्षों प्रख्यात जल विशेषज्ञ अनुपम मिश्र के सानिध्य में पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने के बाद 2006 से बरेली के निकट खाई खेड़ा गांव में ‘खुशहाली फाउंडेशन’ की शुरुआत की। शुरुआत में किसानों को जैविक खेती का प्रशिक्षण दिया। समीर ग्राम्य, अरण्या और इंद्रधनुष जैसी परियोजनाओं के माध्यम से सामाजिक सरोकार से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम चला रहे हैं। इन परियोजनाओं में पूर्ण ग्राम विकास से लेकर पर्यावरण, प्रकृति संरक्षण एवं संवर्धन तथा जरूरतमंद बच्चों को जिंदगी में शिक्षा का उजियारा फैलाने के अनेक कार्यक्रम शामिल हैं। समीर जी की देखरेख में चल रहे ‘वृक्ष मित्र, ग्राम मित्र’ अभियान के अंतर्गत अब तक 2,00,000 किसान परिवारों को 11,00,000 से अधिक फलदार पेड़ वितरित किए जा चुके हैं। 1987 में संघ के प्रचारक समीर जी ब्रज प्रांत के ग्राम विकास प्रमुख भी रहे।
प्लास्टिक का पुनर्चक्रण
सार्थक सामुदायिक विकास एवं जनकल्याण संस्था ने 2007 में एक मुहिम शुरू की। कूड़ा बीनने वाले बच्चों और महिलाओं की मदद। संस्था के प्रमुख इम्तियाज अली हैं। उन्होंने भोपाल में कूड़ा बीनने वालों से कूड़ा खरीदने, उसमें से प्लास्टिक अलग कराने का काम किया। फिर इन प्लास्टिक को सड़क निर्माण और सीमेंट कंपनियों में इस्तेमाल के लिए भेजने लगे। प्लास्टिक के इस्तेमाल से सड़क बनाने में डामर कम लगता है और गिट्टियों के बीच प्लास्टिक की परत बन जाती है जिससे सड़क की उम्र लंबी हो जाती है। इसके अलावा सीमेंट कंपनियों में कोयले के साथ प्लास्टिक को 1400 डिग्री तापमान पर जलाने पर ईंधन भी कम लगता है और प्रदूषण भी नहीं फैलता। इस तरह इस कचरा प्रबंधन से प्लास्टिक का पुनर्चक्रण भी हुआ और प्रदूषण भी घटा। यह मॉडल भोपाल मॉडल कहलाया और अब 42 अन्य देशों में इसे प्रयुक्त किया जा रहा है।
प्राकृतिक खेती के पहरेदार उमेंद्र
स्वेदेशी पत्रिका के पूर्व कार्यकारी सम्पादक तथा सामाजिक कार्यकर्ता श्रीजी आजकल पंजाब में प्राकृतिक कृषि और ग्रामीण विकास के कार्य में पुरजोर लगे हुए हैं। उनके नेतृत्व में कार्य कर रही संस्था खेती विरासत मिशन पिछले 16 वर्षों से पंजाब और हरियाणा में प्राकृतिक कृषि, स्वास्थ्य, पर्यावरण, भूमि, बीज एवं जल संरक्षण जैसे तमाम मुद्दों पर लोगों के बीच जागरूकता लाने के लिए कार्यरत है। खेती विरासत मिशन का पंजाब, हरियाणा एवं राजस्थान के किसानों के बीच व्यापक प्रभाव है। इसने किसानों के हृदय में प्रकृति के प्रति श्रद्धा भाव एवं आत्मीयता उत्पन्न करने से लेकर हजारों किसानों को प्राकृतिक कृषि प्रशिक्षण, प्राकृतिक कृषि प्रमाणीकरण, विपणन की व्यवस्थाओं के साथ प्रकृति को समर्पित एक सशक्त जन आंदोलन खड़ा करने का काम किया है।
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