पाञ्चजन्य द्वारा नई दिल्ली में 14 जून मंगलवार को आयोजित पर्यावरण संवाद के तीसरे सत्र में पर्यावरण विधिवेत्ता सुधीर मिश्र ने पर्यावरण और कानून पर बात की। अपने शुरुआती दिनों को याद करते श्री मिश्र ने कहा कि जब 22 वर्ष पूर्व उन्होंने पर्यावरण वकालत शुरू की तो लोगों ने उपहास किया कि दिवानी, फौजदारी, कॉरपोरेट, टैक्स वकालत की बात तो समझ में आती है, पर्यावरण वकालत क्या होती है।
सुधीर मिश्र ने कहा कि 22 वर्ष की पर्यावरण वकालत के बाद यह समझ में आता है कि पर्यावरण के क्षेत्र में कानून की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने एक मुकदमे को याद करते हुए बताया कि इटावा-मैनपुरी में एक वेटलैंड को खत्म कर विश्व बैंक की सहायता से एक हवाईअड्डा बनाया जाएगा। तत्कालीन राज्य सरकार के लिए यह मुफीद था क्योंकि यह तत्कालीन मुख्यमंत्री का गृह क्षेत्र था और विचार था कि हवाईअड्डा बनने से इटावा में बड़े महोत्सव हो सकेंगे। उस वेटलैंड में सारस आते थे। इस मुकदमे में पूरी चर्चा हुई कि सारस कहां से कहां तक की यात्रा करता है, सारस किसी खास जगह ही आकर क्यों रुकता है। अंतत: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह क्षेत्र सारसों का प्रवास क्षेत्र है और इसे नष्ट कर हवाईअड्डा बनाया जाना ठीक नहीं है। इस तरह विश्व बैंक की सहायता से बनने वाली यह परियोजना रद की गई। सर्वोच्च न्यायालय में एक विशेष पीठ बनी जो हर शुक्रवार को पर्यावरण संबंधी मुकदमों की सुनवाई करता है।
सुधीर मिश्र ने कहा कि स्वतंत्रता के समय देश में 9 प्रतिशत वन थे जो अब बढ़कर 16-17 प्रतिशत तक पहुंच गए हैं। वन्यजीव संरक्षण पर बहुत काम हुआ। प्रोजेक्ट लॉयन, प्रोजेक्ट डॉल्फिन जैसे कई कार्यक्रम शुरू हुए, जिसके बाद इनकी संख्या बढ़ी। एक घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि सरिस्का के सारे बाघ खत्म हो गए। इस पर एक समिति बनी जिसमें उनको भी शामिल किया। यह समिति वन्यजीव संरक्षण के तरीके जानने के लिए अमेरिका गई। वहां अमेरिकी अधिकारियों ने कहा कि वन्यजीवों का जितना बेहतर संरक्षण भारत में होता है, वह कहीं और नहीं होता। फिर आप अमेरिका में क्या सीखने आए हैं?
गुजरात की एक घटना का जिक्र करते हुए श्री मिश्र ने बताया कि 2007 में भावनगर के पास 18-20 शेरों के शिकार की सूचना मिली। तब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। शेर क्यों मारे जा रहे हैं, कौन मार रहा है, मारने के बाद उसका क्या किया जा रहा है, इसकी पड़ताल के लिए 48 घंटे के भीतर श्री मिश्र को तत्कालीन गुजरात सरकार ने सलाहकार नियुक्त किया। पड़ताल में फोरेंसिक विशेषज्ञ भी शामिल किए गए। फोरेंसिक विशेषज्ञों ने यह पता लगाने में सफलता हासिल की कि किन शिकारियों ने इन शेरों का शिकार किया है। फोरेंसिक विशेषज्ञों ने शेरों के खून के साथ शिकारियों के खून का मिलान कर लिया। यहां से वन्यजीव फोरेंसिक विज्ञान में नया बदलाव आया। आज हर राज्य में फोरेंसिक विश्वविद्यालय हैं। इसमें वन्यजीव फोरेंसिक पर भी अलग से काम होता है।
श्री मिश्र ने कहा कि दिल्ली वायु प्रदूषण के मामले में दिल्ली का शीर्ष शहर है। 2015 में इस पर एक मुकदमा किया था। यह मामला अब भी चल रहा है। हमारी मौजूदा दिल्ली सरकार हर बार केवल हलफनामा भेजती है कि सड़कों पर उड़ रही धूल के लिए कौन जिम्मेदार है, पराली जलाने के लिए कौन जिम्मेदार है, पेड़ लगाने के लिए कौन जिम्मेदार है। यानी हलफनामे में केवल आरोप लगाए जाते हैं। श्री मिश्र ने अपील की कि पराली जलाने के लिए दिल्ली सरकार पहले पंजाब सरकार को जिम्मेदार ठहराती थी कि पंजाब सरकार दिल्ली सरकार की नहीं सुनती। अब पंजाब में भी उसी पार्टी की सरकार है जिसकी दिल्ली में है। दिल्लीवासियों को चाहिए कि वह दिल्ली सरकार को पत्र लिखें कि अब वह पंजाब सरकार से पराली जलाने पर रोक के लिए कहे। दरअसल जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी, समस्या का समाधान नहीं होना है। इस प्रदूषण का सर्वाधिक असर उस व्यक्ति पर पड़ता है जो सामाजिक स्तरीकरण में सबसे निचले स्तर पर है।
सरकार को चिट्ठियां लिखने के असर का जिक्र करते हुए श्री मिश्र ने एक घटना का जिक्र किया। देश में कई जगह नेवले को शुभ माना जाता है परंतु कर्नाटक में लगातार नेवले को मारे जाने की घटनाएं हो रही थीं। नेवला संरक्षित पशु में शामिल नहीं था। पता चला कि मुरादाबाद में पेंट उद्योग में नेवले की पूंछ का इस्तेमाल होता है जिसके लिए नेवले का शिकार हो रहा था। इस पर 1,05,000 स्कूली बच्चों ने दिल्ली उच्च न्यायालय को पत्र लिखा जिसके बाद नेवला को संरक्षित जीव घोषित किया गया। श्री मिश्र ने कहा कि अगर कोई कहता है कि भारत पर्यावरण के मामले में पिछड़ा है तो यह मानने योग्य तथ्य नहीं है। हमारे यहां वन्य क्षेत्र तो बढ़ा ही है, वन्य जीवों के संरक्षण में भी भारत आगे हैं। पर्यावरण के क्षेत्र में अब न्यायिक सक्रियता घटी है और कॉरपोरेट क्षेत्र की ओर से स्वैच्छिक गतिविधियां काफी बढ़ी हैं।
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