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दिल्ली विश्वविद्यालय के बगल में बह रहा नाला, दरअसल एक नदी है- साहिबी नदी !

by WEB DESK
Jun 12, 2022, 06:59 pm IST
in दिल्ली
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शोध दिल्ली के तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम में दिल्ली के बीच में बह रही विलुप्तप्राय साहिबी नदी पर चर्चा हुई। इस विषय पर बात हुई कि प्राचीन काल से ही भारत देश में नदियां हमारी सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक धरोहर ही नहीं हैं अपितु विभिन्न रूपों में नागरिकों का भरण पोषण करती है। नदियों की स्वच्छता हमारी स्वस्थ्य एवं आर्थिक दृष्टिकोण से भी आवश्यक है।

इसी विचार को कार्यान्वित करते हुए  विश्व पर्यावरण सप्ताह के अवसर पर शोध-दिल्ली ने साहिबी अथवा साबी नदी के प्रदुषण एवं उसके पुनर्जीवन  के लिए गोष्ठी का आयोजन किया। राजस्थान से हरियाणा होते हुए साहिबी नदी दिल्ली में बह कर यमुना में समाहित  हो जाती थी।  किन्तु प्रवाह कम होने के कारन एवं इसमें विभिन्न नालो के पानी गिरने के कारण इसने आज नजफगढ़ नाले का रूप ले लिया है।

शोध दिल्ली द्वारा आयोजित संगोष्ठी के अंतःसंवाद सत्र में दिल्ली के कई विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक तथा वातावरण समाज सेवक सम्मिलिति हुए एवं सभी को अपने विचारो तथा  तथ्यों से अवगत कराया। जवाहर लाल नेहरू विष्वविद्यालय के एनवायर्नमेंटल विभाग के  प्राध्यापक  डॉ अमित कुमार मिश्रा  ने साहिबी नदी में समाहित हो रहे नालो एवं रेवाड़ी के मसानी बराज के बारे में प्रकाश डाला के किस प्रकार हो रहे निर्माण एवं नालों के जाल से यह नाड़ी नाला बनचुकी ह और हमारे वातावरण एवं जैव विविधता को नष्ट कर रहा।

डॉ अश्विनी  कुमार तिवारी ने पूरे विश्व एवं भारत के जल स्त्रोतों के संकट से साझा किया। समाधान के अंतर्गत उन्होंने बताया के इसकी शिक्षा बेसिस स्तर से होने चाइये, नियमित निगरानी तथा नियमो से जल को स्वच्छ रखा जा सकता है।  नमामि गंगे के अंतर्गत सभी उदेश्यों से साझा किया।

वही उपस्थितन जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एनवीरोंमेंट स्टडीज के सहायक प्राध्यापक डॉ सैफ अली चैधरी ने साहिबी नदी में उपस्थित रसायनों से होने वाली हानि के बारे में बताया।  जल में औद्यगिक अपशिष्ट पदार्थ जैसे डाई, कीटनाशक, डिटर्जेंट आदि जल में उपस्थित ऑक्सीजन को काम करते हैं साथ ही भारी धातु जैसे लेड, मरकरी आदि हमारे शरीर में सब्जियों तथा पशुओ के सेवन से एकत्रित हो जाते है और कैंसर जैसे भयानक बीमारियों को जन्म देते है।

रामवीर तंवर जिन्हे पोन्डमान के नाम से भी जाना जाता है सेव अर्थ नामक एनजीओ  द्वारा अभी विभिन्न सरकारी संस्थानों द्वारा तालाबों के पुनर्जीवित करने में लगे हुए है। उन्होंने जल चौपाल, पेड़ लगाना, रसायन रहित कृषि  आदि के माध्यम से हानिकारक पदार्थ  को काम करने की बात कही।  उन्होंने में इस स्वच्छता अभियान में आने वाले अवरोधों से भी अवगत करवाया। वही विभिन्न त्योहारों पर पदार्थ या प्लास्टिक से बने होने वाली मूर्ति विसर्जन एवं स्वच्छता के लिए मिलने वाले सरकारी निधि को भी एक चुनौती बताया। नदियाँ हमे अच्छा स्वस्थ्य, ऊर्जा, स्वच्छ जल यातायात आदि प्रदान करती है। हमारा सामाजिक उत्तरदायित्व है कि हम इन्हे स्वच्छ रखे।

इस कार्यक्रम में शोध के राष्टीय संयोजक डॉ अलोक सिंह जी, राष्ट्रीय सहसंयोजक शशांक तिवारी जी की विशेष उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन दिल्ली के संयोजक प्रशान्त शाही ने किया। शोध दिल्ली प्रमुख डॉ सचिन सिंह तथा शोध दिल्ली  सहसंयोजक श्रेया मालिक और डॉ आँचल सेठी तथा अन्य प्रमुख शोध के सदस्य डॉ अंकिता सिंह जी, अजेय शाह एवं ऋषभ जी की विशेष भूमिका कार्यक्रम को सफल बनाने में रही।

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