बचपन में दिखने वाली गौरैया के अब न दिखने पर वाराणसी के गोपाल कुमार ने गौरैया को बचाने के लिए एक फाउंडेशन की स्थापना की। लोगों में जागरुकता बढ़ाने के साथ इस संस्था ने 18,000 से अधिक घोंसले वितरित किए जिनमें लगभग 30,000 से अधिक गौरैया आ कर रहने लगी हैं
ग्लोबल वार्मिंग ने गौरैया को लगभग विलुप्त ही कर दिया। आज गौरैया कहीं-कहीं ही देखने को मिलती है। जब गौरैया विलुप्त प्राय हो गई तो सरकार भी जागी और कुछ सामाजिक लोग भी आगे आए। इन्हीं में एक हैं वाराणसी के गोपाल कुमार। उन्होंने शुरुआत में कुछ मित्रों के साथ गौरैया संरक्षण अभियान शुरू किया था।
आज इस अभियान के चलते न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि अन्य प्रदेशों में गौरैया के संरक्षण को लेकर जागरूकता आई है। कुमार बताते हैं कि ‘अब कई जगहों पर घोंसलों में गौरैया वापस आ रही हैं। गौरैया की संख्या में पंद्रह से बीस प्रतिशत वृद्धि हुई है।’ कुमार ने गुजरात में नौकरी छोड़ वाराणसी में आकर अपना व्यापार शुरू किया। उन्होंने यह महसूस किया कि बचपन में दिखने वाली गौरैया अब नहीं दिखती। वर्ष 2017 के दिसंबर माह में गोपाल ने यह तय किया कि गौरैया के संरक्षण के लिए कुछ किया जाए। उन्होंने कुछ साथियों के साथ मिलकर वीवंडर फाउंडेशन की स्थापना की। इस फाउंडेशन का उद्देश्य पक्षियों को पर्यावरण में यथावत रखना है।
आनलाइन प्लेटफार्म के जरिये हम लोग करीब बीस लाख लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे। वीवंडर फाउंडेशन को गौरैया संरक्षण के लिए एक दर्जन से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं। फाउंडेशन ने एक लाख से अधिक पौधारोपण भी किया है। इन पौधों को गोद भी लिया गया और उनकी देखरेख की जा रही है।
फाउंडेशन ने शुरुआत में घोंसले बनवाकर लोगों को दिए। करीब 6 महीने तक कोई प्रगति नहीं हुई। उसके बाद अचानक एक दिन कुमार के पास फोन आया कि घोंसले में गौरैया आ गई है। इसके बाद लोगों को बड़ी संख्या में घोंसले दिए गए। करीब 90 प्रतिशत घोंसलों में गौरैया आ गई। वहीं करीब दस प्रतिशत घोंसलों को पक्षियों की अन्य प्रजातियों ने अपना डेरा बनाया।
कुमार की टीम ने गौरैया के दाना-पानी का इंतजाम कराया। लोगों को जागरूक किया। लोगों को बताया गया कि अपने घर की छतों पर पानी की व्यवस्था करें ताकि गर्मी के मौसम में पक्षी, पानी पी कर अपनी प्यास बुझा सकें। इस प्रयास का असर अब दिखना शुरू हुआ है। कुमार ने बताया कि वीवंडर फाउंडेशन वाराणसी के आसपास सभी जिलों में लोगों के बीच जाकर, विद्यालयों, कॉलेज व शिक्षण संस्थानों में पक्षियों को पर्यावरण में बनाए रखने के लिए जागरूकता अभियान चला रहा है। पिछले 5 वर्षों से 18,000 से अधिक घोंसले वितरित किए गए हैं। इन घोंसलों में करीब 30,000 से अधिक गौरैया आकर रहने लगी हैं।
फाउंडेशन ने उत्तर प्रदेश के करीब दो सौ से ज्यादा स्कूलों में बच्चों को गौरैया का घोंसला बनाना सिखाया। कोरोना में लॉकडाउन के बाद फाउंडेशन ने आनलाइन ट्रेनिंग देना शुरू किया। कुमार बताते हैं कि आनलाइन प्लेटफार्म के जरिये हम लोग करीब बीस लाख लोगों तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे। वीवंडर फाउंडेशन को गौरैया संरक्षण के लिए एक दर्जन से अधिक पुरस्कार मिल चुके हैं। फाउंडेशन ने एक लाख से अधिक पौधारोपण भी किया है। इन पौधों को गोद भी लिया गया और उनकी देखरेख की जा रही है।
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