चीन में प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक आक्रोश में हैं। उनके गुस्से की वजह है, बच्चों की स्कूली किताबों में नस्लवादी और पोर्नोग्राफिक तस्वीरें प्रकाशित होना। लोग इसके विरोध में मुखर हुए हैं और ये आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
लोगों ने सरकार के अधीन काम करने वाले किताबों के प्रकाशक के प्रति अपना गुस्सा जताते हुए कहा है कि उनके बच्चों की स्कूली किताबों में ऐसी तस्वीरों और आकृतियों का इस्तेमाल किया गया है जो अश्लील हैं और नस्लवादी भी। अभिभावकों के विरोध और आक्रोश को देखते हुए चीन सरकार हरकत में आई है और प्रकाशक को अश्लील और आपत्तिजनक तस्वीरें हटाने का फरमान सुनाया गया है। साथ ही ऐसा क्यों हुआ, इसकी जांच के आदेश दिए गए हैं।
इस बारे में ब्लूमबर्ग चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के शिक्षा मंत्रालय ने आदेश दिया है कि संदर्भित प्रकाशक अपनी प्राथमिक स्कूल की किताबों में तस्वीरें बदले। पीपुल्स एजुकेशन प्रेस विभाग ने प्रकाशक से ऐसी सभी किताबों में बदलाव करने को कहा है। इसके लिए एक विशेष कार्य समूह गठित किया गया है। इसमें नामी चित्रकारों को सहयोग करने को कहा गया है। वे विवादित तस्वीरों की जगह दूसरे चित्र बनाने के काम में जुटेंगे। ये समूह अभिभावकों और स्कूली शिक्षकों के सुझावों के अनुसार तस्वीरें बनाएगा। ध्यान रखा जाएगा कि बच्चों को चीन की सभ्यता के अनुसार ही तालीम दी जाए।
भारत में कई निजी प्रकाशक स्कूली किताबों में गलत इतिहास पढ़ाते हैं, गलत उद्धरण देते हैं, छद्म सेकुलरवाद को बढ़ावा देने वाली सामग्री छापते हैं, लेकिन उनकी यह करतूत अधिकांशत: अनदेखी ही कर दी जाती है।
पीपुल्स एजुकेशन प्रेस ने मामले की जांच शुरू कर दी है और तमाम प्रकाशकों से कहा है कि सभी बच्चों को गुणवत्ता वाली शिक्षा देने की दिशा में काम करें। चीनी संस्कृति को ध्यान में रखा जाए, इसी के आधार पर किताबें तैयार की जाएं। अभिभावकों के गुस्से और विरोध के बीच ऐसी विवादित किताबें छापने वाले प्रकाशक ने अपनी भूल स्वीकार ली है और खेद जताते हुए कहा है कि उन्हें अफसोस है कि उन्होंने हिसाब की किताबों में इस तरह की तस्वीरें छापीं। प्रकाशक का कहना है कि आगे से इस तरह की बात न हो, इसका विशेष ध्यान रखा जाएगा।
लेकिन इस हरकत से बौखलाए चीनियों ने सोशल मीडिया वीबो पर अपना गुस्सा जमकर जाहिर किया है। इस मुद्दे से संबंधित हैशटैग को कई मिलियन से ज्यादा बार देखा गया। इस पर टिप्पणी भी की गई है। बीते शुक्रवार तक इस हैशटैग को 2.2 अरब से ज्यादा बार देखा गया था। एक आदमी ने तो यहां तक कहा कि अमेरिका के इशारे पर हमारी शिक्षा प्रणाली में गलत लोग शामिल होते जा रहे हैं जो हमारे बच्चों में गलत संस्कार डालने की मंशा रखते हैं।
चीन में हुए इस प्रकरण में भारत के कुछ लोगों की प्रतिक्रिया है कि आपत्तिजनक चीजों के विरोध में वहां के अभिभावकों ने एकजुट होकर विरोध किया और सरकार को हरकत में आना पड़ा, जबकि भारत में कई निजी प्रकाशक स्कूली किताबों में गलत इतिहास पढ़ाते हैं, गलत उद्धरण देते हैं, छद्म सेकुलरवाद को बढ़ावा देने वाली सामग्री छापते हैं, लेकिन उनकी यह करतूत अधिकांशत: अनदेखी ही कर दी जाती है।
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