मीडिया महामंथन के नौवें सत्र में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अपनी बेबाक बातों से दर्शकों को तालियां बजाने को मजबूर कर दिया। उनसे बातचीत की ‘आर्गनाइजर’ के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने
महामंथन में असम की चर्चा की शुरुआत वहां आई बाढ़ से हुई। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बताया कि लगभग 22 जिले बाढ़ से प्रभावित हुए और राहत कार्य युद्धस्तर पर चला। इसके बाद श्री शर्मा से असम में अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध चल रहे बुलडोजर के बारे में पूछा गया। इस पर उन्होंने कहा कि बुलडोजर छोटे-मोटे अतिक्रमण पर नहीं चलता। हां, यदि लाखों हेक्टेयर भूमि पर अतिक्रमण हुआ होता है तो बुलडोजर चलाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में कम से कम 5,000-6,000 हेक्टेयर भूमि को
अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है। अभी हाल ही में मुसलमानों की भीड़ द्वारा एक थाने पर किए गए हमले के संदर्भ में उन्होंने कहा कि घटना के कुछ घंटे बाद ही प्रशासन ने जवाब दे दिया है। अब उम्मीद है कि वहां ऐसी घटना नहीं होगी। उन्होंने कहा कि असम में बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं, जहां अल्पसंख्यक रहते हैं। यहां अल्पसंख्यक का मतलब है भारतीय। असम के 12 जिलों में अल्पसंख्यक रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो भारतीय हैं, वे अल्पसंख्यक हो गए हैं और जो बाहरी हैं, वे बहुसंख्यक हो गए हैं। ऐसे लोगों ने असम में लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया है। उन्होंने बताया कि असम के 16 विधानसभा क्षेत्रों में बाहरी लोगों ने जमीन पर कब्जा कर रखा है। ऐसे लोगों को धीरे-धीरे हटाना है। 16 में से चार विधानसभा क्षेत्रों में यह काम हो भी गया है।
असम के 12 जिलों में अल्पसंख्यक रह रहे हैं। उन्होंने बताया कि जो भारतीय हैं वे अल्पसंख्यक हो गए हैं और जो बाहरी हैं वे बहुसंख्यक हो गए हैं। ऐसे लोगों ने असम में लगभग डेढ़ लाख हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया है। उन्होंने बताया कि असम के 16 विधानसभा क्षेत्रों में बाहरी लोगों ने जमीन पर कब्जा कर रखा है। ऐसे लोगों को धीरे-धीरे हटाना है। 16 में से चार विधानसभा क्षेत्रों में यह काम हो भी गया है
इस पर उनसे पूछा गया कि केंद्र जब एनआरसी लागू करेगा तब करेगा पर आपने असम में एनआरसी को अभी से लागू कर दिया है? इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि देखिए, एनआरसी के साथ बहुत सारे विषय जुड़े हुए हैं। इसलिए पहले हम लोगों को यह तय करना है किन-किन क्षेत्रों में ज्यादा गड़बड़ी है। जब एनआरसी वगैरह लागू होगा तब वैध-अवैध नागरिकों को चिन्हित किया जाएगा, लेकिन फिलहाल हमें यह करना है कि और किसी जगह पर अतिक्रमण न हो। और जो पहले हो चुका है, उस पर भी कार्रवाई करनी ही पड़ेगी।
श्री सरमा से पूछा गया कि वे ‘मियां संस्कृति’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं।
स्थानीय संस्कृति और मिया संस्कृति में क्या अंतर है? इस पर उन्होंने कहा कि असम में 36 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। इसे तीन वर्ग में बांट सकते हैं। पहले वर्ग को ‘इनडिजिनस’ मुस्लिम कहा जा सकता है। इनका रहन-सहन, खाना-पीना वैसा ही है जैसा हमारा है। ऐसे लोग हमारे साथ मिल-जुलकर चल सकते हैं। दूसरा वर्ग वह है, जो दो पीढ़ी पहले मुस्लिम बना है। इसका प्रमाण यह है कि इन सभी के घरों के सामने तुलसी का पौधा आज भी मिलेगा। महिलाएं भी असमी संस्कृति के अनुसार जीवन व्यतीत करती हैं। इन लोगों को हम लोग देसी मुसलमान के नाम से जानते हैं। तीसरा वर्ग वह है, जो खुद कहता है कि उसकी संस्कृति मियां संस्कृति है। यह वर्ग कभी-कभी जनगणना में भी लिख देता है कि हमारी भाषा मियां है। जब ये लोग अपने आपको मियां बोलते हैं तो हम यदि उन्हें मियां कहें तो इसमें क्या आपत्ति है? उन्होंने कहा कि हम वही कर रहे हैं, जो भारत के एक नागरिक को करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि मदरसा शब्द अब विलुप्त होना चाहिए और विद्यालयों में सभी के लिए सामान्य शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने असम के सभी मदरसों को भंग करने और उन्हें सामान्य विद्यालयों में बदलने के अपनी सरकार के फैसले को सही बताया और यह भी कहा कि उच्च न्यायालय ने सरकार के फैसले को उचित ठहराया है। उन्होंने कहा कि जब तक मदरसा शब्द रहेगा, तब तक बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के बारे में नहीं सोच पाएंगे। अगर आप बच्चों से कहेंगे कि मदरसों में पढ़ने से वे डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनेंगे, तो वे खुद मदरसे में जाने से मना कर देंगे। उन्होंने मुसलमानों से कहा कि अपने बच्चों को कुरान पढ़ाएं, लेकिन घर पर। बच्चों को विज्ञान, गणित, वनस्पति विज्ञान, प्राणीशास्त्र जैसे आधुनिक विषय पढ़ाना चाहिए। विद्यालयों में सामान्य शिक्षा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जब मैं मदरसा बंद करने की बात करता हूं तो इसमें हिंदू-मुस्लिम की बात नहीं है।
इस पर उनसे सवाल किया गया कि जब आप मदरसा, भाषा आदि की बात करते हैं, तब उत्तर भारत में बड़ी बहस और चर्चा होती है। आप इसको कैसे देखते हैं?
उन्होंने कहा कि मातृभाषा और राष्टÑभाषा के बीच समन्वय होना चाहिए। शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए, इसमें तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है, पर इसके साथ ही हमें राष्टÑभाषा भी आनी चाहिए। जब हम कहते हैं कि यह देश हमारा है और इस देश में कहीं भी काम करना हमारा अधिकार है, तो फिर आपको हिंदी भी आनी चाहिए। इसलिए मुझे नहीं लगता कि भाषा में कोई दुविधा है। आप मातृभाषा में खूब पढ़िए, साथ ही हिंदी भी पढ़िए, क्योंकि आप भारत के नागरिक हैं।
असम के सरकारी कर्मचारियों को अपने माता-पिता के साथ समय बिताने के लिए तीन दिन का विशेष अवकाश दिया जाता है। इस पर उनसे पूछा गया कि इस तरह के विचार आप कहां से लाते हैं? उन्होंने कहा कि सरकार चलाने के साथ-साथ उसमें भारतीय मूल्यों और सिद्धांतों को जोड़ देने से काम आसान हो जाता है। उन्होंने कहा कि जब किसी सरकारी कर्मचारी को छुट्टी मिलती है, तो उस दौरान वह जरूरी कामों को निपटाता है। जैसे कोई अपना घर बनाने लगता है, कोई अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए कुछ करता है। इस कारण वह छुट्टी के बावजूद व्यस्त रहता है। इसलिए हमारी सरकार ने सरकारी कर्मचारियों को तीन दिन की छुट्टी देने का निर्णय लिया है। जो भी छुट्टी पर जाता है, उसे कहा जाता है कि इस दौरान आप कुछ मत करिए, सिर्फ अपने माता-पिता के साथ समय बिताइए। इसके बाद जब वे काम पर लौटते हैं, तब उनमें पहले से अधिक ऊर्जा होती है।
इस कारण वे अपना काम बेहतर कर पाते हैं। इससे सरकार को फायदा होता है। इस साल तीन दिन की छुट्टी के साथ ही शुक्रवार से रविवार तक की छुट्टी मिली। यानी कर्मचारियों को एक हफ्ते की छुट्टी मिली। इस दौरान कोई कर्मचारी अपने माता-पिता को मंदिर ले गया, किसी ने कई दिनों तक साथ बैठकर भोजन किया। बाद में इन गतिविधियों को लोग सोशल मीडिया पर डालने लगे। समाज पर इसका एक सकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसके बाद अवकाश का यह प्रावधान निजी कंपनियों के कर्मचारियों के लिए भी किया गया। इससे पारिवारिक रिश्तों में प्रगाढ़ता आ रही है, बच्चे संस्कारित हो रहे हैं। बहुत सारे लोग अपने माता-पिता से वे बातें भी करने लगे हैं, जिनकी चर्चा तक करने से वे हिचकते थे। इस कारण दिमाग में मौजूद बहुत सारी बेकार चीजें अपने आप समाप्त हो रही हैं। इस माहौल का लाभ असम को मिल रहा है। यही तो भारतीयता है, यही तो हिंदुत्व है, यही तो हमारे परिवार की संकल्पना है।
श्री सरमा से एक सवाल यह भी पूछा गया कि आप भाजपा से पहले कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों में भी रहे। भाजपा और अन्य दलों में क्या अंतर पाते हैं? उन्होंने कहा कि दो बहुत बड़े अंतर हैं। मैं 22 साल तक कांग्रेस में रहा। कांग्रेस में एक ऐसा माहौल है कि गांधी परिवार के बाद और कुछ नहीं है। कांग्रेस में देश को ही गांधी माना जाता है। वहीं भाजपा में यह माहौल है कि दल से भी ऊपर राष्ट्र है, हमारे लिए राष्ट्र प्रथम है। वहीं दूसरी ओर अगर सोनिया गांधी, राहुल गांधी से कोई बोले कि आपसे महान राष्ट्र है, तो कांग्रेस से उसकी छुट्टी तय है। कांग्रेस में यही सबसे बड़ी समस्या है।
फिर उनसे पूछा गया कि वे (राहुल गांधी) तो कहने लगे हैं कि भारत एक राष्ट्र नहीं है? इस पर उन्होंने कहा कि भारत को केवल राज्यों के संघ के रूप में पहचान देना हमारी 5,000 साल पुरानी समृद्ध सभ्यता को चुनौती देने के समान है। अगर भारत राज्यों का संघ है, तो इसका मतलब है कि आप भारत की हर चीज पर विवाद खड़ा कर रहे हैं। राहुल गांधी लोगों को यह समझा रहे हैं कि भारत राज्यों का एक संघ है, तो वे अलगाववादी तत्वों को उकसा रहे हैं। हो सकता है कि जेएनयू से कोई उन्हें पढ़ा रहा हो। राहुल गांधी और उग्रवादी संगठन उल्फा की भाषा में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत एक राष्टÑ नहीं है तो 5,000 साल पहले लिखी गई रामायण, महाभारत कहां से आए? कौटिल्य, चाणक्य, चंद्रगुप्त, लचित बड़फूकन, शिवाजी ये सारे के सारे कहां गए, किसके लिए लड़े?
उनसे पूछा गया कि क्या कारण है कि बड़फूकन जैसे वीरों की परंपरा के बाद भी पूर्वोत्तर भारत का पूरा का पूरा इतिहास हमारे इतिहास से गायब रहा? उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर भारत की भाषा और संस्कृति ऐसी है कि वह शेष भारत से हमेशा अलग रहा। फिर एक षड्यंत्र के तहत लोगों को बताया गया कि असम भारत का हिस्सा नहीं है। असम के लिए एक समस्या यह भी रही कि उसने हमेशा इस्लाम का विरोध किया। इस कारण उसका भारत से संबंध कम हो गया। इसलिए असम का जो इतिहास है, उसे भारत के बहुत से लोग नहीं जानते। वामपंथियों ने इसका खूब फायदा उठाया। लेकिन अब लोग समझ रहे हैं कि असम रामायण काल से ही भारतीय सभ्यता से जुड़ा रहा। इस कारण वामपंथियों की मोटा-मोटी दुकानें बंद हो चुकी हैं। थोड़े दिन में बिल्कुल बंद हो जाएंगी।
क्या यह बदलाव राजनीतिक बदलाव के कारण हो रहा है? इस पर उन्होंने कहा कि पूर्वोत्तर को लेकर भारत में एक सकारात्मक वातावरण बन गया है। अभी मैंने देखा कि पाञ्चजन्य में रानी गाइदिन्ल्यू के बारे में छपा है। पाञ्चजन्य और आॅर्गनाइजर जैसी पत्रिकाएं पूर्वोत्तर के बारे में छापती हैं, तो इससे उत्तर भारत के लोगों को पूर्वोत्तर के बारे में जानकारी मिलती है। ऐसे ही प्रधानमंत्री मोदी जी भी सभी को जोड़ने का काम कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह हुई है कि पूर्वोत्तर के विकास के लिए केंद्र सरकार के पास कई योजनाएं हैं और उन पर काम भी चल रहा है। 2014 के बाद असम में विकास की रफ्तार काफी तेजी से बढ़ी है। यहां उग्रवाद लगभग समाप्त हो चुका है। आज पूर्वोत्तर के राज्य हर क्षेत्र में विकास कर रहे हैं।
आने वाले पांच साल के लिए असम हेतु आप क्या सपना देख रहे हैं? इस पर उन्होंने कहा कि असम के अंदर बहुत क्षमताएं हैं। असम को धीरे-धीरे शीर्ष स्थान तक लेकर जाना है। इसके लिए हमने कार्य करना शुरू कर दिया है। हमारा जीडीपी अगले साल 5,000 करोड़ रु. का हो जाएगा।
खुला सत्र
सत्र के अंत में कुछ प्रतिभागियों ने हिमंत बिस्वा सरमा से सवाल किए, जिनका उन्होंने बेहिचक जवाब दिया।
मौलाना आजाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति फिरोज बख्त अहमद ने पूछा कि आपने मदरसों के बारे में अच्छा कदम उठाया है, लेकिन वहां के बच्चे विश्वविद्यालय तक की शिक्षा ले सकें, इसके लिए और क्या किया जा रहा है?
इसके जवाब में उन्होंने कहा कि मदरसा शब्द ही विलुप्त हो जाना चाहिए। जब तक मदरसा दिमाग में घूमता रहेगा तब तक बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर नहीं बना सकते। यदि किसी बच्चे को यह बता दिया जाए कि तुम मदरसा जाओगे तो जुनैद बनोगे डॉक्टर, इंजीनियर नहीं, तो वह बच्चा मदरसा नहीं जाएगा। आप बच्चों को कुरान पढ़ाइए, इसमें कोई समस्या नहीं है, लेकिन उन्हें आधुनिक विषयों की पढ़ाई भी अवश्य करानी चाहिए।
सिंधी अकादमी के अध्यक्ष रवि टेकचंदानी ने सुझाव दिया कि असमिया के अध्यापकों को दूसरे प्रांतों में भेजने से भाषा की दूरियां कम होंगी।
इसके उत्तर में उन्होंने कहा कि हाल ही मैंने असम में एक विश्वविद्यालय शुरू किया है। यहां लोग आएं और भाषा सीखें। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि मैं लोगों से बोलता रहता हूं आप भावनात्मक नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से हिंदी और अंग्रेजी सीखिए। इसके लिए माहौल बन रहा है और उम्मीद है कि जल्दी ही भाषा की समस्या समाप्त हो जाएगी।
पश्चिम बंगाल से आए एक प्रतिभागी देवदत्त मांझी ने पूछा कि क्या भारत के हर मुसलमान की घरवापसी होनी चाहिए? उन्होंने कहा कि अच्छी शिक्षा होने से वे लोग अपने आप घरवापसी करने लगेंगे। घरवापसी का मतलब यह है कि भारत माता को अपनी मां मानो। हम यह नहीं चाहते कि आप मंदिर में जाओ। हम यही चाहते हैं आप भारतीय बनें।
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