बेंगलुरु में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में हिन्दू छात्र को धर्म का पालन करने और भारत का पक्ष लेने की मिली सजा !

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सोनाली मिश्रा

हाल ही में कश्मीर फाइल्स फिल्म का एक संवाद बहुत ही चर्चित रहा कि सरकार कोई भी हो, सिस्टम तो हमारा है! हाल ही में ऐसा ही एक मामला बेंगलुरु से सामने आया, जिसने इस सिस्टम के गठजोड़ को कहीं न कहीं प्रमाणित किया है।

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में एक छात्र ने विश्वविद्यालय पर धर्म के नाम पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है। छात्र ऋषि ने यह आरोप लगाया कि कुछ छात्रों न उसे हिन्दू होने के कारण परेशान किया और फिर उसके साथ भेदभाव किया गया। इतना ही नहीं उनकी बात सुने बिना ही उन्हें निलंबित कर दिया गया। ऋषि का एक पत्र वायरल हो रहा है। इसमें उन्होंने लिखा कि कैसे उन्हें बार-बार निशाना बनाया गया। पिछले वर्ष एक आयोजन में एक प्रश्न पूछने से उनपर हमले का सिलसिला आरम्भ हुआ।

ऋषि के पत्र के अनुसार उन्होंने पिछले वर्ष यूनिवर्सिटी में आयोजित एक कार्यक्रम में एक ऐसे अतिथि से चुभने वाला प्रश्न पूछ लिया था जो अक्सर भारत के विरुद्ध बोलते हैं। यह कार्यक्रम ऋषि के अनुसार एकदम उसी तर्ज पर था, जिस तर्ज पर अमेरिका में डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व था, इस कार्यक्रम का शीर्षक था “क्या भारत अभी भी सेक्युलर देश है?”

इस आयोजन में फ्रेंच राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर क्रिस्टोफ जेफर्लेट को आमंत्रित किया गया था। हालांकि उनके अनुसार जल्दी ही वह समारोह हिन्दुओं को कोसने वाले समारोह में बदल गया। इसी मध्य ऋषि और उनके दोस्तों ने ऐसे प्रश्न पूछे जिनके आधार पर प्रबंधन ने मामले को देखने के लिए एक विशेष कमेटी बना दी। और तभी से उनके साथ यह व्यवहार आरम्भ हो गया था। उसके बाद से ही ऋषि और उनके दोस्तों को हिंदुत्ववादी, संघी आदि आदि कहा जाने लगा। ऋषि ने लिखा है कि दीपावली पर चूंकि यूनिवर्सिटी में छुट्टी नहीं होती है तो उन्होंने और उनके दोस्तों ने वह त्यौहार वहीं मना लिया, तो इस आधार पर भी उन्हें अपशब्द कहे गए। क्योंकि यह बात उन्हें बहुत बुरी लगी जो उस त्यौहार को नहीं मनाते थे।

यह सिलसिला आगे बढ़ता गया और हाल ही में ऋषि के अनुसार 1 मई 2022 को उन्हें इस्लामी और वामपंथी विचारधारा वाले कुछ छात्रों ने घेर लिया। उनके साथ अभद्रता की गयी और उसके साथ ही उनके और उनके परिवार के खिलाफ भी अपशब्द बोले गए और उनसे एक साधारण बहस के दौरान उनकी टिप्पणी के लिए माफी मांगने के लिए कहा गया। उनके पत्र के अनुसार एक साधारण सी बहस के कारण उन पर कई झूठे आरोप लगाए गए और उन्हें हिन्दू कट्टरपंथी, इस्लामोफोबिक, संघी आदि कहा गया। उसके बाद 2 मई को ही एक शिकायत स्कूल ऑफ डेवेलपमेंट के डायरेक्टर के पस दर्ज की गयी और देखते ही देखते उन्हें डायरेक्टर ऑफ द स्कूल ऑफ डेवलपमेंट द्वारा यूनिवर्सिटी से निष्कासित कर दिया गया!

आर्गनाइजर से बात करते हुए ऋषि ने कहा कि “मुझे अपनी पहचान और हिंदू होने पर गर्व है। इसलिए मैं इसे अपराध नहीं मानता। वैचारिक मतभेद होने का मतलब यह नहीं है कि मुझे अपनी डिग्री और नौकरी गंवानी पड़ेगी। विश्वविद्यालय मुझे न्याय दिलाने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा है।” ऋषि को वहां पर शत प्रतिशत स्कॉलरशिप के आधार पर प्रवेश मिला था, अब ऋषि क्या करेंगे यह भी एक समस्या है! परन्तु ऋषि का पत्र उस भेदभाव को बताता है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ठेकेदार और मुस्लिम खतरे में हैं कहने वाले लोग खुद करते हैं। यह भी बहुत ही ही हैरानी की बात है कि कैसे अकादमिक जगत में भारत को बदनाम किया जा रहा है और जो भी इस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे कुप्रयास का विरोध करता है, उसे ही दोषी ठहरा दिया जाता है।

ऋषि अब क्या करेंगे या यूनिवर्सिटी उन्हें वापस लेगी या नहीं, इससे कहीं बढ़कर यह भी देखना होगा कि क्या विश्वविद्यालय इस प्रकार के आयोजन, जिनमें जमकर भारत को मात्र इस कारण बदनाम किया जा रहा है क्योंकि उनके विचार की सरकार नहीं आई है, होने बंद होंगे या नहीं? और सबसे महत्वपूर्ण कि क्या इस प्रकार मुस्लिमों द्वारा किए जा रहे भेदभाव की कहानी अभिव्यक्ति की आजादी के चैम्पियन के कानों में पड़ पाएगी?

ऋषि का वायरल पत्र : स्रोत-internet

 

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