बुन्देली माटी की पुकार पर गांव लौटे धर्मेंद्र मिश्र ने खेत तालाब और वृक्षारोपण से इलाके की तस्वीर ही बदल दी। भूजल बढ़ा, खेती बढ़ी, बढ़ने तापमान पर अंकुश लगा। अब लगे हैं त्रिमातृ पोषण और वैदिक ग्राम योजना को मूर्त रूप देने में
बुन्देलखंड के महोबा में गंभीर जलसंकट है लेकिन यहां की बुन्देली मिट्टी की पुकार एक माटी के लाल को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से खींच कर वापस ले आई। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद वहां के विभिन्न प्रकल्पों से जुड़े रहे डॉ. धर्मेंद्र मिश्र अब महोबा जिले में चरखारी तहसील के अंतर्गत अपने पैतृक गांव काकुन को केंद्र बनाकर तालाबों की जलभराव प्रणाली दुरुस्त करने में लंबे समय से जुटे हैं और उल्लेखनीय सफलता अर्जित की है। उनका मानना है कि जमीन के पथरीली होने के कारण महोबा जिले में सिर्फ तालाब ही जल संचयन का सशक्त माध्यम हैं। यही वजह है कि चंदेल शासकों ने बेजोड़ तालाबों का निर्माण कर अनूठी मिसाल कायम की थी। चरखारी तहसील क्षेत्र में वर्षा जल की एक भी बूंद कभी व्यर्थ नहीं जाती। सारा पानी बहकर तालाबों में जमा होता रहता है। डॉ. धर्मेंद्र भूमि संरक्षण एवं कृषि विभाग के सहयोग से किसानों को प्रेरित कर 200 से अधिक तालाब तैयार करवा चुके हैं।
उनका कहना है कि क्षेत्र में पिछले कई दशकों से 600 से 800 मिलीमीटर वर्षा होती है और यह वर्षा कब और किस माह में कितनी होगी, यह निश्चित नहीं है। जब भी पानी बरसता है, तो वह बहकर नालों के माध्यम से नदी और नदी से आगे समुद्र में चला जाता था और यहां की धरा की प्यास नहीं बुझती थी। उन्होंने वर्ष 2010 से खेतों में तालाब बनाकर वर्षाजल संचित करने का अभियान शुरू किया। उन्होंने पहले यह कार्य निजी स्तर से प्रारम्भ किया और बाद में इसे वर्ष 2015-16 में कृषि विभाग, भूमि संरक्षण विभाग के सहयोग से प्रारम्भ किया और इसका सुखद परिणाम यह आया कि काकुन में प्रत्येक किसान तथा आस -पास के गांवों के बहुत से किसानों के खेत में लगभग 200 खेत तालाब बनकर तैयार हो गए। इससे भूजल स्तर में 30 फुट तक वृद्धि हुई और लगभग 1 हजार एकड़ जमीन (खेती) सिंचित हो गई। खेत तालाब के बनने से डार्क जोन बनने वाला गांव पानीदार बन गया।
अब यहां वर्षभर पशु-पक्षियों के लिए पानी उपलब्ध रहता है। 2015-16 के पहले गांवों में टैंकर द्वारा पानी लाया जाता था। आज गांव के सभी हैण्डपम्प पर्याप्त मात्रा में पीने का पानी उपलब्ध करा रहे हैं। सिंचाई व्यवस्था के कारण किसानों की आय में भी वृद्धि हुई है। कृषि अनुकूल भूमि की कीमत भी बढ़ गई है।
डॉ. धर्मेन्द्र मिश्र के प्रयोगों से जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों एवं तापमान वृद्धि को रोकने में भी मदद मिली है। बुन्देलखण्ड में प्रतिवर्ष अप्रैल से लेकर जून तक 48 से 50 डिग्री सेल्सियस तापमान होता है। इससे भूजल धीरे-धीरे वाष्पित हो जाता है। साथ ही पशु-पक्षियों का जीवन संकट से घिर जाता है। इसका एक मात्र समाधान वृहद स्तर पर वृक्षारोपण ही है। उन्होंने किसानों को साथ लेकर वर्ष 2010 से वृहद स्तर पर नीम, आंवला, जामुन, अमरूद, कटहल, बेल, शीशम, सागौन, नींबू मौसम्बी, अनार, पाकड़, गुलमोहर, सहजन आदि के रोपण का कार्य प्रारम्भ किया।
आज इस क्षेत्र में 10 हजार वृक्षों की हरियाली है और फल-फूल की प्राप्ति हो रही है। वृक्षारोपण के कारण गोरैया, मैना, तीतर, तोता, नीलकण्ठ, उल्लू, मोर जैसे लगभग 50 तरह के पक्षियों ने यहां अपना स्थायी आवास बना लिया है। डॉ. मिश्रा के खेतों के मध्य 300 मीटर लम्बी, 20 फुट गहरी झील जलचरों, पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गई है। वे वर्षभर वर्षा जल द्वारा वृक्षारोपण, बागवानी, गौसेवा आदि के लिए चारा और भोजन उगाते हैं। इससे तापमान का दुष्प्रभाव भी कम हो गया है।
त्रिमातृ पोषण का समाधान
उन्होंने इसके साथ माताओं एवं बहनों में कुपोषण को दूर करने और बेसहारा गौवंश के पशुओं के संरक्षण के लिए भी अनोखे विचार से काम किया है। उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए अपने गांव में श्रीकृष्ण गौसेवा मन्दिर की स्थापना की है और उसके माध्यम से भू-माता, गौ-माता और बालिका-माता के पोषण एवं संवर्धन के लिए एक-दूसरे से जुड़े प्रयास किए हैं। वह कहते हैं ‘त्रिकुपोषण की समस्या अर्थात तीन माताओं-गौ मां, बालिका मां (बच्चियों, महिलाओं) भू मां (खेती) के कुपोषण की समस्या समाधान हेतु एक प्रयोग किया है।
पहले गौमाता के स्वास्थ्य को ठीक किया। उसे दूध देने योग्य बनाया और गौमाता से प्राप्त गोबर, गौमूत्र से जीवामृत धनजीवामृत, प्राकृतिक खाद तैयार कर भू माता की सेहत ठीक करने का प्रयास किया। साथ ही प्राप्त दूध से अपने स्कूल में अध्ययनरत बच्चियों के स्वास्थ्य (कुपोषण दूर) को सुधारने का प्रयास किया। इस प्रकार यही निराश्रित गौमाता अब अपने स्वास्थ्य के साथ साथ दो अन्य माताओं (भू माता और बालिका माता) के स्वास्थ्य की रक्षा कर रही हैं।’
उनकी चिंता है कि पिछले 10 वर्षों में बुन्देलखंड के इस इलाके में लगभग 50 प्रतिशत गौवंश भोजन, पानी, सेवा के अभाव में समाप्त हो गया है। यदि ऐसी ही हालत बनी रही, तब वह दिन दूर नहीं, जब देसी गौवंश पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा और गौवंश के अभाव में ग्राम संस्कृति, स्वास्थ्य एवं पर्यावरण को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। उन्हें इस बात की भी चिंता है कि पानी की कमी से खेती के कम होने के कारण आर्थिक रूप से विपन्न बुन्देलखंडवासियों का जीवन गरीबी, अशिक्षा के कारण नशे की गिरफ्त में आ गया है। ये लोग जो कुछ भी मेहनत से उगाते हैं, अर्जित करते हैं, उसका आधे से अधिक भाग नशा और बीमारी की भेंट चढ़ जाता है।
अनूठा वैदिक ग्राम
इन्हीं बातों को लेकर डॉ. मिश्र ने 18 बीघा भूभाग पर एक बहुत ही अनोखे वैदिक ग्राम की स्थापना का कार्य आरंभ किया है जहां मनुष्य अपने जीवन के पांचों ऋण – देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण, भूत ऋण और अतिथि ऋण से विमुक्त हो सके। डॉ. मिश्र ने बताया कि वैदिक ग्राम में सभी तरह की भौतिक सुविधाएं तो होंगी, लेकिन ये प्राकृतिक संसाधनों से ही विकसित की जाएंगी। जैसे बिजली सौर प्रणाली से, जल व्यवस्था वर्षा जल संग्रह से, भोजन आदि के पकाने की व्यवस्था गाय के गोबर से उत्पन्न बायोगैस से तथा सभी तरह की भोजन सामग्री गौ आधारित खेती से की जाएगी। यहां कपास उत्पादित कर सूत कातकर सूती वस्त्र भी तैयार किए जाएंगे, साथ ही स्वस्थ रहने के लिए योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा व्यवस्था भी उपलब्ध होगी। इस वैदिक ग्राम में शास्त्रीय संगीत, सांस्कृतिक कार्यक्रम भी निरन्तर होंगे, जिससे यहां के निवासियों का जीवन आनंदमय हो। स्वाध्याय हेतु एक विशाल ग्रंथालय भी होगा तथा नई पीढ़ी को वैदिक जीवन दर्शन, भारतीय समस्त ज्ञान-विज्ञान से परिचित, प्रशिक्षित करने हेतु आवासीय गुरुकुल की भी स्थापना की जाएगी।
कौन हैं डॉ. धर्मेन्द्र मिश्र
डॉ. धर्मेन्द्र मिश्र मूलत: काकुन गांव के ही निवासी हैं। उन्होंने माध्यमिक स्तर की शिक्षा महोबा में प्राप्त करने के बाद प्रयागराज में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में स्नातक एवं स्नातकोत्तर की डिग्री ली। फिर शोध करने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय पहुंचे। तकरीबन दस वर्ष तक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मालवीय मूल्य अनुशीलन केन्द्र में वह नैतिक एवं मानवीय मूल्यों के क्षेत्र में शिक्षण, शोध एवं लेखन कार्य में संलग्न रहे। उन्होंने वर्ष 2011 से 2021 तक वांक्वांग डिजिटल यूनिवर्सिटी, दक्षिण कोरिया के योग एवं ध्यान विभाग में विजिटिंग प्रोफेसर एवं भारतीय कार्यक्रम निदेशक के रूप में कार्य किया है। वह सामाजिक रूप से सक्रिय हैं और काशी योग एवं मूल्य शिक्षा संस्था, वाराणसी के सचिव के रूप में वर्ष 2004 से अब तक कार्यरत हैं। काकुन में व बुंदेलखंड ग्राम सेवा भारती नाम से संस्था बना कर काम कर रहे हैं।
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