पिंजरा द केज’ छोटी-छोटी कहानियों का संग्रह है। ये कहानियां पूरे शोध के बाद लिखी गई हैं जिनमें पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं। ये कहानियां बच्चों की झकझोर देने वाली सच्चाई की पर्तें खोलती हैं
‘पिंजरा द केज’ पढ़ने के बाद सबसे पहले आंखों पर से कई पर्दे छंट जाते हैं, जो कि लंबे समय से पड़े हुए थे। करुणा की कुछ तस्वीरों के पीछे छिपे काले सच से सामना हो जाता है। एक-एक कहानी पढ़ने के बाद पता चलता है कि लंबे समय से चिल्ड्रन होम के बारे में समाज में जो सोचा जाता था, उसमें कितनी भ्रांतियां थीं। कितने ही चिल्ड्रन होम बच्चों की भलाई के नाम पर अपना व्यापार चला रहे हैं।
इस पुस्तक की पहली कहानी ही अंदर तक झकझोर देती है। इस कहानी में राजनैतिक तौर पर एक बहुत मजबूत परिवार के संरक्षण में चल रहे चिल्ड्रन होम का सच छिपा है, जो बच्चों के लिए किसी प्रताड़ना गृह से कम नहीं है। किसी भी चिल्ड्रन होम में बच्चों के लिए जो कम से कम बुनियादी सुविधाएं होनी चाहिए, न सिर्फ उन पर ध्यान नहीं दिया गया, बल्कि बच्चों को परिवार से भी वंचित किया गया।
लेखक : प्रियंक कानूनगो
एवं दीपक उपाध्याय
पृष्ठ : 127
मूल्य : 300 रु.
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
इस कहानियों में एक कहानी ऐसी भी है, जहां समाज में संत सा सम्मान पाए व्यक्ति के चिल्ड्रन होम में बच्चे बेचे जा रहे हैं, वो भी नाबालिग बच्चियां। लेकिन यह सब होता कैसे था। इस भयावह सच को इस कहानी में सिलसिलेवार ढंग से बयान किया गया है। ये जानना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि सरकारों से, समाज से बच्चों की भलाई के नाम पर जमीन और पैसा लेकर खोले गए इन चिल्ड्रन होम में हो क्या रहा है।
बच्चों के नाम पर जो जमीनें चिल्ड्रन होम को दी जाती हैं, उन पर कब्जे की कोशिशों को दर्शाती एक कहानी इस किताब में शामिल हैं, जिसमें देश के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्रों में से एक इंदौर में एक जमीन के टुकड़े को छीनने के लिए कैसे सारी बिल्डर लॉबी लग जाती है। इस जमीन के टुकड़े पर एक चिल्ड्रन होम बना है और जो अब बीचों-बीच आ गया है। यह कहानी बहुत ही रोचक है और झकझोर देने वाली है।
देश में तरह-तरह के षड्यंत्रों में विदेशी फंडिंग और देसी अधिकारियों का गठजोड़ कैसे अराजक बच्चों की एक ऐसी फौज तैयार करने की कोशिश कर रहा है, जो कि देश में गृह युद्ध जैसी स्थिति पैदा कर सकती है। इस कहानी में कैसे एक बड़ा अधिकारी विदेशी आकाओं से मिलकर देश की नींव को खोखला करने के काम में लगा हुआ है— इस सच्चाई को सामने लाना ही अपने-आप में बड़ी बात है।
लंबे समय के बाद एक ऐसी किताब आई है, जिसमें छोटी-छोटी कहानियां पूरे रिसर्च के साथ लिखी गई हैं। हालांकि पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं, लेकिन जिस विधा में ये कहानियां लिखी गई हैं, वह बहुत ही रोचक एवं मर्मस्पर्शी है। इसके लिए लेखक द्वय बधाई के पात्र हैं।
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