राजस्थान में अलवर जिले के राजगढ़ कस्बे में प्राचीन मंदिर और कठूमर में एक दशक से चल रही गौशाला को कांग्रेस सरकार ने बुलडोजर से ढहा दिया। विध्वंस किए गए तीन मंदिरों में से एक बावड़ी का मंदिर लगभग 300 वर्ष पुराना है। इसमें हनुमानजी का मंदिर और शिवालय था, जबकि गौशाला में करीब 425 गोवंश था। दोनों ही घटनाओं से हिन्दू समाज में आक्रोश है। दबाव के चलते सरकार बैकफुट पर है। जन आक्रोश को शांत करने के लिए सरकार ने एसडीएम, नगरपालिका सीईओ और नगरपालिका अध्यक्ष को निलंबित कर दिया है।
मंदिरों को तोड़ने की घटना में दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया ने कहा, ‘‘सत्य पराजित नहीं होता। अपने अफसरों की गलती छुपाने के लिए भाजपा के बोर्ड पर आरोप लगाने वाली कांग्रेस सरकार अंतत: अफसरों को दोषी मान उन पर कार्रवाई कर रही है। कांग्रेस नेताओं ने अपनी अनैतिक सोच का क्रियान्वयन अफसरों से कराया। जनता सब देख और समझ रही है कि किसके इशारे पर मंदिर टूटे।’’
अशोक गहलोत सरकार में बहुसंख्यक हिन्दू समाज की आस्था को ठेस पहुंचाने का यह पहला मामला नहीं है। इसी वर्ष 15 मार्च को चूरू जिले के प्रसिद्ध सालासर मंदिर से पहले सुजानगढ़-सालासर मुख्य राजमार्ग पर बने भव्य मुख्य द्वार को स्थानीय प्रशासन ने रात के अंधेरे में ढहा दिया था। इस द्वार पर ‘राम दरबार’ लिखा था। इन दोनों प्रकरणों को देखने पर स्पष्ट लगता है कि सरकारी अधिकारी राजनीतिक संरक्षण में नेताओं को खुश करने के लिए इस तरह की कार्रवाइयां कर रहे हैं। कांग्रेस सरकार ने करौली मुस्लिम हिंसा के बाद हिन्दू धार्मिक यात्राओं पर धारा 144 लगाकर प्रतिबंधित करने काम भी किया। हाल ही में राजस्थान सरकार ने एक आदेश निकाला है कि कोई भी व्यक्ति बिना लाइसेंस के गाय या भैंस नहीं पाल सकता। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ कहते हैं, ‘‘राजस्थान में कांग्रेस के सभी विधायक बदले की भावना से राजनीति कर रहे हैं। मजहब विशेष का वोट बैंक साधने की कोशिश हो रही है। सरकार की कार्यशैली औरंगजेब के शासन जैसी है। सरकार की मंशा रामनवमी पर राम भक्तों पर वार और रमजान पर रोजा इफ्तार हो गई है।’’
कांग्रेस का आरोप
कांग्रेस का आरोप है कि राजगढ़ नगरपालिका में भाजपा का बोर्ड है। बोर्ड ने 8 सितम्बर, 2021 यानी अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई के लगभग 6 माह पहले कस्बे में गौरव पथ निर्माण में बाधा बन रहे अतिक्रमणों को हटाने का प्रस्ताव पारित किया था। इसी आधार पर नगरपालिका प्रशासन ने यह कार्रवाई की है। हालांकि इस प्रस्ताव के बाद फरवरी 2022 में एक और प्रस्ताव पारित हुआ था। इसमें सड़क की चौड़ाई 60 फीट से घटाकर 30 फीट करने का निर्णय लिया गया। प्रस्ताव में स्पष्ट रूप से मंदिर को तोड़ने या हटाने का जिक्र कहीं नहीं था।
अब सरकार चाहे कितने भी दावे करे, लेकिन बुलडोजर से जिस तरह मंदिरों को तोड़ा गया और जिस अपमानजनक ढंग से मूर्तियों को हटाया गया, सरकार का यह कृत्य क्षम्य नहीं है।
विकास कार्य के मार्ग में आने वाले धार्मिक स्थलों को हटाने के प्रकरण बहुत संवेदनशील होते हैं। ऐसे में पुलिस व प्रशासन के सक्षम वरिष्ठ अधिकारियों की स्वीकृति के बिना कार्रवाई नहीं की जा सकती। क्या अधिकारियों को धार्मिक स्थलों के बारे में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों और वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा नहीं करनी चाहिए थी? क्या इन धार्मिक स्थलों में मंदिरों के स्थान पर कोई दरगाह, मजार या मस्जिद होती तो भी प्रशासन इसी तरह कार्रवाई करता? मंदिर तो 300 साल पुराने हैं, ऐसे में ये अतिक्रमण की श्रेणी में कैसे आ गए? इस कार्रवाई के समय अलवर के कलेक्टर अनुपस्थित थे। इस दिन पुराने कलेक्टर पदमुक्त हो रहे थे और नए कलेक्टर पद संभाल रहे थे। इसी दौरान स्थानीय विधायक के प्रभाव में एसडीएम और सीईओ ने पूरा खेल किया।
जब हिन्दू समाज का दबाव बना तो वरिष्ठ कांग्रेस नेता भंवर जितेंद्र सिंह भी कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल के साथ मौके पर पहुंचे और कहा कि मंदिर उसी जगह बनाए जाएंगे, जहां पर थे। इसका सारा खर्च वे उठाएंगे। अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। नगरपालिका के चेयरमैन पर भी गाज गिरनी चाहिए। अब सरकार चाहे कितने भी दावे करे, लेकिन बुलडोजर से जिस तरह मंदिरों को तोड़ा गया और जिस अपमानजनक ढंग से मूर्तियों को हटाया गया। सरकार का यह कृत्य क्षम्य नहीं है।
समाज के आक्रोश को दबाने के लिए सरकार ने राजगढ़ के एसडीएम केशव मीणा और नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी बनवारी लाल मीणा को प्रशासनिक लापरवाही व विधि विरुद्ध आचरण का दोषी पाए जाने पर निलंबित कर दिया है। सरकार ने नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष सतीश दुहरिया को भी निलंबित किया है। विडंबना यह भी है कि 17 अप्रैल को नगरपालिका प्रशासन ने मास्टर प्लान के तहत अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की। इस दौरान मंदिर भी तोड़े गए। कई मूर्तियां खंडित हो गई थीं। लेकिन न समाज ने कार्रवाई का विरोध किया और न ही जनप्रतिनिधि मौके पर पहुंचे। पांच दिन बाद सोशल मीडिया में कार्रवाई के वीडियो वायरल होने के बाद प्रदेश की राजनीति गर्माई।
गौशाला उजाड़ी, 425 गोवंश बेसहारा
अलवर जिला मेवात अंचल में आता है। कांग्रेस शासन में मेवात में दुष्कर्म, ठगी, हिन्दुओं की जमीनों पर कब्जे, गोतस्करी, गोकशी जैसे अपराध चरम पर हैं। इस क्षेत्र में जन सहयोग से कई गौशालाएं चल रही हैं, जहां बेसहारा और तस्कारों के चुंगल से छुड़ाए गए गोवंश को रखा जाता है। ऐसे ही अलवर के कठूमर के मैथना की श्रीहनुमान गौशाला 2012 से संचालित थी। 2013-14 में रजिस्ट्रार कार्यालय और सितम्बर 2014 में गोसेवा निदेशालय में इसका पंजीकरण कराया गया। 2017-18 में विभाग ने इसे श्रेष्ठ गौशाला का पुरस्कार भी दिया। लेकिन अब वन विभाग का कहना है कि 2014 में इस गौशाला के विरुद्ध सहायक वन संरक्षक के न्यायालय में अतिक्रमण का मामला दर्ज किया गया था। 6 साल बाद 2020 में इसे वन विभाग की भूमि पर अतिक्रमण मान लिया गया और बेदखली के आदेश दे दिए गए। इसके बाद दिसम्बर 2021 में वन विभाग ने नोटिस जारी कर सात दिन में जमीन खाली करने को कहा। इसके चार माह बाद 21 अप्रैल को अतिक्रमण हटाने के नाम पर 425 गोवंश को भयंकर गर्मी में भूखा-प्यासा भटकने के लिए छोड़ दिया गया। गौशाला संचालक ने 10 दिन का समय मांगा था, लेकिन उन्हें यह समय नहीं दिया गया और बुलडोजर चलाकर गौशाला को ध्वस्त कर दिया।
प्रश्न है कि जब गौशाला का पंजीकरण कराया गया तो प्रबंधन ने निश्चित रूप से बताया होगा कि गौशाला कहां है। तो क्या सरकारी विभाग को यह पता नहीं चला कि यह गौशाला वन विभाग की जमीन पर है? खुद वन विभाग की अदालत को यह मानने में छह साल लग गए कि गौशाला वन विभाग की जमीन पर अतिक्रमण है। इसी बीच, सरकार के ही विभाग ने इसे सम्मानित भी कर दिया। क्या तब भी वन विभाग सो रहा था? गौशाला में तोड़फोड़ करने से पहले यदि गोवंश को सुरक्षित अन्य गोशालाओं में पहुंचा दिया जाता तो सैकड़ों गोवंश को कटने से बचाया जा सकता था।
अलवर में गोविंदगढ़ के गोपाल आश्रम के संत बालकदास महाराज कहते हैं, ‘‘गौशाला को उजाड़ना ठीक नहीं है। सरकार गोवंश के संरक्षण में सहयोग नहीं कर रही है, उल्टा जो लोग गोवंश की रक्षा कर रहे हैं, उन्हें परेशान कर रही है। मेवात के इस क्षेत्र में गोतस्करी और गोकशी की घटनाएं बहुत ज्यादा होती है। गौशाला से छोड़ी गई सैकड़ों गायें अब कसाइयों के हाथों में पहुंच जाएंगी। इससे गो-भक्तों और गो-सेवकों में बहुत आक्रोश है।’’
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