केरल में रा.स्व.संघ के एक और स्वयंसेवक की बर्बरतापूर्वक हत्या कर दी गई। इस बार पलक्कड़ जिले के मेलामुरी आततायियों के निशाने पर वरिष्ठ स्वयंसेवक एस.के. श्रीनिवासन रहे। पांच हत्यारों ने उनकी दुकान में घुसकर हमला किया। 45 वर्षीय श्रीनिवासन के पीछे परिवार में अब उनकी विधवा पत्नी और एक बेटी है।
इस हत्या का तरीका भी हमेशा की भांति ही रहा। हथियारों से लैस कुछ अज्ञात हत्यारे बाइक पर आए। दुकान में घुसकर अचानक चाकू और धारदार हथियार ‘अरुवल’ (कत्ती) से श्रीनिवासन पर निर्ममता से हमला किया। हमला योजनाबद्ध तरीके से किया गया, जिसमें श्रीनिवासन को समझने-संभलने का मौका नहीं मिला। एक प्रत्यक्षदर्शी के अनुसार, श्रीनिवासन पर 20 बार अरुवल से वार किए गए। इस घटना से कुछ घंटे पहले ही एसडीपीआई कार्यकर्ता सुबैर की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद पूरे जिले में सुरक्षा अलर्ट रखा गया था, लेकिन इसके बावजूद श्रीनिवासन की हत्या कर दी गई।
केरल और तमिलनाडु में संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या में चाकू, सरिया, हथौड़ा और अरुवल का बारंबार प्रयोग हो रहा है। उल्लेखनीय है कि ‘अरुवल’ केरल और तमिलनाडु में एक प्रकार का कृषि उपकरण है और इसका प्रयोग हथियार के रूप में भी होता है। इसका प्रयोग प्राय: प्रशिक्षित गैंगस्टर करते हैं। हमला करने की पद्धति से हत्यारों के प्रशिक्षित होने का सहज ही अनुमान होता है।
ये हत्यारे इतने प्रशिक्षित हैं कि उनके पास जिसकी हत्या करनी है, उसकी पल-प्रतिपल की जानकारी होती है। इन प्रशिक्षित हत्यारों को पता होता है कि शरीर के किस हिस्से पर किस प्रकार और कितना तीव्र वार करने से पीड़ित कितने समय में हताहत होगा। ऐसी सभी हत्या में एक संदेश अत्यंत स्पष्ट है, हिंदुओं को ऐसे ही तड़पा-तड़पा कर मारा जाएगा। इन हत्या को क्रियान्वित करने की पद्धति इतनी भयावह है कि प्रत्यक्षदर्शियों की रूह तक कांप जाए। केरल में संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या के पीछे यही रणनीति है। ऐसे सभी मामलों में लहूलुहान पीड़ित अंतत: तड़प-तड़प कर दम तोड़ देता है।
केरल के हिंदू बताते हैं कि राज्य की वामपंथी सरकार पॉपुलर फ्रंट आफ इंडिया (पीएफआई) की आतंकी गतिविधियों में संलिप्तता के बावजूद उसके कैडर को प्रशिक्षण देने में जुटी हुई है, जबकि इन्हें प्रतिबंधित करने के लिए देश के हर हिस्से से मांग उठ रही है। केरल सरकार की हठधर्मिता को देखते हुए सुनियोजित हत्या अब आश्चर्यजनक प्रतीत नहीं होतीं। दिन-दहाड़े होनेवाली इन हत्या के मद्देनजर यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या केरल की पुलिस इतनी नाकारा और खुफिया तंत्र इतना लचर एवं सुषुप्तावस्था में है कि सांप्रदायिक हिंसा व हत्या पर अंकुश लगाना असंभव हो गया है? इससे यह भी उजागर होता है कि विषैला वामपंथ अपना विष पीएफआई-एसडीपीआई के माध्यम से फैलाने के उपक्रम में जुटा हुआ है। केरलवासी हिंदुओं की मानें तो इन हत्या के पीछे अप्रत्यक्ष रूप से केरल की वामपंथी सरकार का समर्थन है। अत: सरकार भी जघन्य अपराधी है। हत्या के ये मामले क्रियान्वयन में गुरिल्ला युद्ध जैसे प्रतीत होते हैं। अचानक पूरी गतिशीलता के साथ एकसाथ टूट पड़ना और हत्या को अंजाम देकर ‘हिट-एंड-रन’ की रणनीति अपनाते हुए घटनास्थल से नदारद हो जाना। केरल में संघ-भाजपा नेताओं की अब तक हुई हत्या में यही रणनीति उजागर हुई है।
केरल भाजपा के नेता कृष्णकुमार ने हमले के पीछे एसडीपीआई का हाथ बताते हुए कहा कि एसडीपीआई कार्यकर्ता सुबैर की हत्या के बाद उन्हें धमकी भरे फोन आए थे। वहीं, केरल के संचार माध्यम श्रीनिवासन की हत्या को एसडीपीआई के कार्यकर्ता सुबैर की हत्या के ‘प्रतिशोध’ के रूप में प्रचारित-प्रसारित कर रहे हैं। प्रश्न है कि प्रतिशोध किसका, क्यों और किसके विरुद्ध? संघ के स्थानीय कार्यकर्ताओं का स्पष्ट मत है कि पीएफआई-एसडीपीआई को यथाशीघ्र प्रतिबंधित करना अनिवार्य है। यह आतंक भारतीय शिवत्व के लिए हानिकारक है।
केरल में पलक्कड़-मेलामुरी को भाजपा का गढ़ माना जाता है। एस. के. श्रीनिवासन को भाजपा के गढ़ में घुसकर मारने के पीछे संदेश अत्यंत स्पष्ट है। वे किसी भी गढ़ में निर्बाध रूप से हत्या करने में सक्षम, सुसज्ज एवं तत्पर हैं। हमलावर, जिन्हें भिन्न-भिन्न मीडिया रिपोर्ट्स कभी ‘प्रतिशोध’ तो कभी ‘भटके हुए युवा’ बताती हैं, चुन-चुनकर मानवीय जीवन-व्यवहार की पराकाष्ठा कहलाने योग्य संघ कार्यकर्ताओं को निशाना बना रहे हैं। अपनी लगाई हुई आग और उसकी लपटों के लपेटे में आते ही ‘प्रतिशोध’ की अदृश्य अग्नि में जलने वाले इन निर्मम हत्यारों को भारतीय समाज एवं जीवन-दर्शन पर कलंक ही कहा जा सकता है। नवंबर 2021 में पलक्कड़ जिले के ही एलापल्ली में उस क्षेत्र के मंडल बौद्धिक प्रमुख ए. संजित की उनकी पत्नी के सामने ही हत्या कर दी गई थी। इन हत्या में केरल की वामपंथी सरकार की मिलीभगत को लेकर आशंका जताए जाने व पुरजोर आवाज उठाए जाने के बावजूद सरकारी नक्कारखानों में वे आवाजें कोई प्रभाव नहीं छोड़ पा रही हैं। केरल पुलिस के एक अधिकारी द्वारा संघ कार्यकर्ताओं की आधिकारिक जानकारी लीक करने की चर्चा के बाद उसे केवल बर्खास्त किया गया। राज्य में सरकारी शह पर हत्या का राजनीतिक खेल अपने अतिउच्च नाटकीयता के साथ बदस्तूर जारी है।
संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की एक के बाद एक हो रही हत्या इस बात की पुष्टि अवश्य करती हैं कि मजहबी जिहादी हत्यारों की सरकारी महकमे तक पहुंच ही नहीं है, बल्कि अभेद्य सांठगांठ है। परिणामत: संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा जा रहा है।
इतना स्पष्ट है कि संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं की एक के बाद एक हो रही हत्या इस बात की पुष्टि अवश्य करती हैं कि मजहबी जिहादी हत्यारों की सरकारी महकमे तक पहुंच ही नहीं है, बल्कि अभेद्य सांठगांठ है। परिणामत: संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं को चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा जा रहा है। इन दिनों ऐसी हत्या के समर्थन में पक्ष रखने वालों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। ऐसे लोग कह रहे हैं कि यह ‘प्रतिशोधात्मक हत्या’ है। गांधी के नाम की ओट लेकर भ्रम उत्पन्न करने वाले गांधी के इस विचार को भूल चुके हैं कि ‘‘आंख के बदले आंख का सिद्धांत सारी दुनिया को अंधा कर देगा।’’ पीएफआई-एसडीपीआई की आतंकी गतिविधियों के विरुद्ध तथा सर्वहितकामी हिंदुओं के पक्षकार कह रहे हैं कि केरल में हिंदू जाग रहा है। यह सत्य है कि हिंदू मुखर होकर ‘प्रतिरोधी रवैये’ के साथ जिहादी मानसिकता का सामना करने के लिए उद्यत है। ऐसे में, सबका दायित्व है कि आतंकी गतिविधि वाले संगठनों से बचें, बचाएं और देश की शांति व्यवस्था को नेस्तनाबूद न होने दें।
आंतक की अग्नि में झुलसते देशों को देखकर संभलने और संभालने की नितांत आवश्यकता है। यह भी कि दक्षिण प्रांतों के लोग केंद्र सरकार से खिन्न हैं कि संजित, रंजीत और श्रीनिवासन इत्यादि राष्ट्रप्रेमियों की निर्मम हत्या के बावजूद पीएफआई-एसडीपीआई को क्यों प्रतिबंधित नहीं किया जा रहा?
प्रश्न अनेक हैं और चिंताजनक भी। कहते हैं, भगवान विष्णु के अवतार परशुराम ने अपने भक्तों के लिए शांति से रहने के उद्देश्य से केरल का निर्माण किया था। इसलिए केरल को स्वयं भगवान के हाथों से सृजित प्रांत कहा जाता है-‘गॉड्स ओन कन्ट्री’। ईश्वर निर्मित इस प्रांत को दानव, पिशाच और नरभक्षियों की नजर लगी है। प्रतीत होता है ये रक्तबीज रुकेंगे नहीं, जबकि केरल सरकार के सांस्कृतिक मामलों के विभाग की वेबसाइट (http://www.keralaculture.org) पर लिखा है, ‘‘सांप्रदायिक सद्भाव के मामले में राज्य की प्रतिष्ठा रही है। भारतीय उपमहाद्वीप में ईसाई और इस्लाम धर्म के प्रवेश का श्रेय केरल को ही दिया जाता है। देश का पहला चर्च और मस्जिद राज्य के कोडुंगल्लूर में स्थित हैं।’’ इस आधिकारिक जानकारी से केरल की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन भी किया जा सकता है। कुल मिलाकर, केरल के हिंदू मजहबी उन्माद की भेंट चढ़ रहे हैं।
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