केंद्र सरकार आयुर्वेद को और योग को बढ़ावा देने के लिए अनेक कदम उठा रही है। हाल ही में आयुष मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि 1 मई, 2022 से पूरे भारत के 37 छावनी अस्पतालों में आयुर्वेद केंद्र शुरू किए जाएंगे। इससे पहले राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने अनुशंसा की थी कि जब छात्र चिकित्सा की पढ़ाई शुरू करें, तब उन्हें महर्षि चरक की शपथ दिलाई जाए।
हाल ही में आयुष म़ंत्रालय और रक्षा मंत्रालय ने आयुर्वेद के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इसके अनुसार 37 छावनी अस्पतालों में आयुर्वेद के चिकित्सक तैनात होंगे। ये अस्पताल हैं— आगरा, इलाहाबाद, बरेली, देहरादून, महू, पचमढ़ी, शाहजहांपुर, जबलपुर, बादामी बाग, बैरकपुर, अमदाबाद, देहुरोड, खड़की, सिकंदराबाद, डगशाई, फिरोजपुर, जालंधर, जम्मू, जुतोघ, कसौली, खासयोल, सुबाथू, झांसी, बबीना, रुड़की, दानापुर, कैम्पटी, रानीखेत, लैंसडाउन, रामगढ़, मथुरा, बेलगाम, मोरार, वेलिंग्टन, अमृतसर, बकलोह और डलहौजी।
इन अस्पतालों के लिए आयुष मंत्रालय कुशल और योग्य आयुर्वेद चिकित्सकों और फार्मासिस्ट को पैनल में शामिल करेगा। इसका लाभ सशस्त्र बलों के कर्मी, उनके परिवारों और आम नागरिकों को मिलेगा। रक्षा सचिव डॉ. अजय कुमार और आयुष मंत्रालय के सचिव वैद्य राकेश कोटेचा के बीच हुई उच्चस्तरीय बैठक में यह निर्णय लिया गया।
आयुर्वेद के विशेषज्ञ इसे बहुत ही अच्छा कदम मान रहे हैं। वैद्य डॉ. भरत सिंह के अनुसार, ”सरकार का यह निर्णय आयुर्वेद की स्वीकार्यकता को बढ़ाने में मदद करेगा।” उन्होंने यह भी बताया, ”पहले की सरकारों ने योग और आयुर्वेद को कोई महत्व ही नहीं दिया। इस कारण देश में एलोपैथिक पद्धति को बढ़ावा मिला और आयुर्वेद आम जन से दूर होता गया। अब आयुर्वेद को सरकारी स्तर पर महत्व दिया जा रहा है। आयुर्वेद में शोध को बढ़ावा देने के लिए सरकार खुलकर मदद भी कर रही है। निश्चित रूप से आने वाला समय आयुर्वेद का है। कोरोना काल में आयुर्वेद के कारण ही अनगिनत लोगों की जान बची है।”
इससे कुछ दिन पहले राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने अनुशंसा की थी कि जब छात्र चिकित्सा की पढ़ाई प्रारंभ करें, तब उन्हें भारत में चिकित्सा पद्धति के जनक कहे जाने वाले महर्षि चरक की शपथ दिलाई जाए। हालांकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह शपथ अनिवार्य नहीं, बल्कि वैकल्पिक होगी।
उल्लेखनीय है कि इस समय चिकित्सा की पढ़ाई करने वाले दुनिया के सभी छात्र एक शपथ लेते हैं, जिसे ‘हिप्पोक्रेटिक ओथ’ कहा जाता है। यह शपथ ग्रीक चिकित्साविद् हिप्पोक्रेट्स को समर्पित की जाती है। इसमें छात्रों को अपने पेशे के प्रति समर्पण की शपथ दिलाई जाती है। यदि सरकार ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग की अनुशंसा को मान लिया तो इसे भी भारतीयता की नजरिए से बहुत ही अच्छा कदम माना जाएगा।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने 10 दिवसीय ‘योग फाउंडेशन कोर्स’ कराने की भी अनुशंसा की है। आयोग ने कहा है कि हर वर्ष 12 जून से ‘योग फाउंडेशन कोर्स’ शुरू किया जाए और यह 21 जून को योग दिवस के दिन पूरा हो।
इन निर्णयों और अनुशंसाओं के पालन से चिकित्सा जगत में योग और आयुर्वेद को उचित स्थान मिल सकता है। कोरोना जैसी महामारी को देखते हुए, यह जरूरी भी है।
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