पंचांगों में एकरूपता लाने के लिए 22 और 23 अप्रैल को उज्जैन में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी हो रही है। इसमें देशभर के लगभग 300 पंडित, धर्माचार्य, खगोलशास्त्री, ज्योतिषाचार्य आदि मंथन करेंगे।
जब भी कोई पर्व आता है, तो हम और आप अवश्य सुनते और देखते होंगे कि कोई उसी पर्व को आज मना रहा है, तो कोई कल। ऐसा क्यों होता है! इसका उत्तर पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के निदेशक डॉ. मनमोहन उपाध्याय ने दिया। उन्होंने बताया कि वैष्ण्व लोग उदिया तिथि यानी सूर्योदय के समय जो तिथि होती है, उसे मानते हैं, जबकि अन्य सम्प्रदायों के लोग अपने धर्माचार्यों या पूर्वाचार्यों के वचनों के अनुसार चलते हैं। इस कारण कभी कोई पर्व दो दिन मनाया जाता है।
इसे ही समाप्त करने के लिए भारत सरकार ने एक नई पहल की है। सरकार का प्रयास है कि पर्व—त्योहरों में एकरूपता हो। इसके लिए भारत सरकार की पहल पर 22 और 23 अप्रैल को उज्जैन में एक बैठक बुलाई गई है। इसमें देशभर से विभिन्न सम्प्रदायों के विद्वान भाग लेंगे। इनमें पंचांगकर्ता, ज्योतिषी, खगोलशास्त्री आदि शामिल हैं। इस आयोजन में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय, केंद्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी विभाग, भारतीय तारा भौतिकी संस्थान, खगोल विज्ञान केंद्र, विज्ञान भारती, मध्य प्रदेश विज्ञान—प्रौद्योगिकी विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय और पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन की भूमिका रहने वाली है। पाणिनी संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलसचिव डॉ. दिलीप सोनी ने बताया कि देश में पहली बार 1952 में दिनदर्शिका सुधार समिति बनाई गई। इसकी अनुशंसा पर ‘कैलेंडर रिफार्म कमेटी’ बनी थी। इसकी अनुशंसा पर भारतीय राष्ट्रीय दिनदर्शिका बनाने के प्रयास हुए थे, लेकिन किसी कारणवश ऐसा हो नहीं पाया। अब एक बार फिर से केंद्र सरकार ने इस पर विचार किया है। उन्होंने बताया कि अभी जो अंग्रेजी कैलेंडर चलन में है, उसके दिन, तिथि, माह को लेकर कोई प्रमाणिक मान्यता नहीं है, जबकि भारतीय कैलेंडर खगोल पर आधारित है। हमारे यहां महीनों के नाम नक्षत्रों पर रखे गए हैं। ऐसे ही ग्रहों के आधार पर दिन, तिथि, पर्व तय होते हैं। इसलिए दो दिन की बैठक हो रही है। इससे देश के विभिन्न भागों में अलग—अलग पंचांगों के कारण जो मतभेद उत्पन्न होते हैं, वे दूर होंगे और अंग्रेजी कैलेंडर के स्थान पर भारतीय कैलेंडर की स्वीकार्यता बढ़ सकती है।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी से पहले देश के अनेक महानगरों कोलकाता, जम्मू, पुणे आदि में कार्यक्रम होंगे, जिनमें लोगों को भारतीय कैलेंडर के बारे में बताया जाएगा।
कालगणना का प्रचीन केंद्र उज्जैन
उज्जैन कालगणना का प्रचीन केंद्र रहा है। उज्जैन की कालगणना को ही विश्व में मान्यता दी गई थी। उल्लेखनीय है कि उज्जैन कर्क रेखा पर स्थित है और केंद्र में महाकाल मंदिर है। इसलिए यहां की गई समय की गणना सबसे बिल्कुल सटीक होती है। राजा जय सिंह ने उज्जैन, दिल्ली, मथुरा और जयपुर में वेधशाला की स्थापना की थी। दिल्ली की वेधशाला को आज जंतर—मंतर के नाम से जाना जात है। इसके बाद प्रख्यात पुरातत्वविद् डॉ. वाकणकर ने कर्क रेखा की दोबारा खोज की। इस खोज के पश्चात उज्जैन के पास महीदपुर तहसील के डोंगला में नई वेधशाला बनाई गई है। जहां खगोल को लेकर अत्याधुनिक उपकरण और अंतरराष्ट्रीय स्तर की संगोष्ठी आदि के लिए सभागृह हैं। आजकल डोंगला से ही कर्क रेखा गुजर रही है।
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