देश के विभिन्न हिस्सों से आए दिन ‘लव जिहाद’ के मामले सामने आते रहते हैं। इस मामले में खासकर केरल बहुत बदनाम है। गैर-मुस्लिम लड़कियों को कन्वर्ट करने के लिए ‘लव जिहाद’ का प्रयोग एक औजार के रूप में किया जाता है। इसके बावजूद ‘लव जिहाद’ और इसके विभिन्न आपराधिक पहलुओं जैसे-कन्वर्जन, मानव तस्करी, देह व्यापार आदि पर रोक लगाने के ठोस प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और हरियाणा जैसे चुनिंदा राज्यों ने ‘लव जिहाद’, जबरन कन्वर्जन आदि पर रोक लगाने के लिए कानून बनाए तो तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों ने हंगामा किया। हालांकि इस तथ्य से सभी सहमत हैं कि ‘लव जिहाद’ के जरिए गैर-मुस्लिम लड़कियों का सुनियोजित तरीके से चयन कर उनका कन्वर्जन किया जाता है।
दरअसल, ‘लव जिहाद’ को लेकर विवाद इसमें प्रयुक्त ‘जिहाद’ शब्द से है। मजहबी ग्रंथों के अनुसार, जिहाद का अर्थ ‘ईश्वरीय सत्ता का पक्ष बनाए रखने के लिए किए गए कार्यों या प्रयास’ से है। कुछ समूहों ने इसकी गलत व्याख्या हिंसा को संरक्षण देते हुए, सर्वव्यापी-इस्लामवाद विचारधारा के अंतर्गत इस्लामवाद की रक्षा और विस्तार के लिए मजहबी युद्ध के रूप में की है। ‘लव-जिहाद’ शब्द-युग्म का प्रयोग गैर-मुस्लिम महिलाओं को बहला-फुसला कर या लालच देकर इस्लाम में कन्वर्ट कर उनसे संबंध विकसित करने हेतु किए गए सुनियोजित प्रयास को परिभाषित करने के लिए किया जाता है। यानी ‘लव-जिहाद’ गैर-मुस्लिमों को धोखे से या जबरदस्ती निकाह कर इस्लामवाद के प्रसार की अवधारणा है। इस शब्द और परिभाषा का इस्तेमाल अब देश के उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में होने लगा है।
इसकी पड़ताल जरूरी है कि‘लव-जिहाद’ का उद्देश्य केवल कन्वर्जन है या इसके पीछे कोई और मंशा है। इसकी भी जांच होनी चाहिए कि क्या ‘लव-जिहाद’ मानव तस्करी का एक रूप है? क्या यह आतंकवादी या अलगाववादी समूहों के संरक्षण में एक संगठित आंदोलन है? शायद इस तरह के मामलों की गंभीरता और जोखिम को अब महसूस किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसके तौर-तरीकों और इसके पीछे काम कर रही प्रेरक दुर्भावना की गहन जांच के निर्देश दिए हैं।
केस-1
केरल में ‘लव जिहाद’ की शिकार अखिला अशोकन उर्फ हादिया प्रकरण तो याद ही होगा। उसने एक मुस्लिम युवक शफीन जहां से निकाह किया था। अखिला होम्योपैथी की पढ़ाई कर रही थी। उसके पिता के.एम. अशोकन, जो कि एक पूर्व सैनिक हैं, ने 2017 में सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल याचिका में आशंका जताते हुए कहा था कि ‘लव जिहाद’ आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा आतंकियों की भर्ती का नवीनतम तरीका है। साथ ही, कहा था कि उनकी बेटी को सीरिया ले जाया जा सकता है। इस पर शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को केरल में हुए अंतर-पांथिक विवाहों में ‘लव जिहाद’ कोण की जांच करने के लिए कहा था। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की एकल पीठ ने एनआईए को यह पता लगाने को कहा था कि क्या निकाह के बाद हादिया बन चुकी अखिला अशोकन को आतंकी समूहों की बड़ी साजिश के तहत मुस्लिम युवक से विवाह के लिए प्रलोभन दिया गया? क्या यह ‘लव जिहाद’ का हिस्सा था?
केस-2
केरल का ही एक और मामला है। कासरगोड में डेंटल कॉलेज की छात्रा निमिषा का सज्जाद रहमान लगातार पीछा करता था। वह एक कोचिंग सेंटर में निमिषा के साथ पढ़ता था। लेकिन कोचिंग से निकलने के बाद भी उसने निमिषा का पीछा नहीं छोड़ा। अंतत: वह निमिषा का कन्वर्जन कराने में सफल रहा। हालांकि उसने खुद निमिषा से निकाह नहीं किया, बल्कि उसकी शादी ईसाई से कन्वर्ट होकर मुस्लिम बने युवक बेकसन उर्फ ईसा से करा दी। सज्जाद ने बहाना बनाया कि वह किसी कन्वर्टेड लड़की से शादी नहीं कर सकता। नतीजा, निमिषा पति के साथ अफगान-सीरिया सीमा पर पहुंच गई। बाद में पता चला कि ईसा का भाई बेस्टिन, जिसने इस्लाम कबूलने के बाद याहिया नाम रख लिया था, अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया।
केस-3
31 अक्तूबर, 2017 को ‘इंडिया टुडे’ ने पीएफआई महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष ए.एस. जैनबा का स्टिंग आॅपरेशन किया। इसमें जैनबा ने कन्वर्जन में सत्यसरणी संगठन की गुप्त भूमिका स्वीकार की थी। साथ ही, कानूनी तौर पर कन्वर्जन कराने वाले अन्य संगठनों का भी नाम लिया था। जैनबा पर अखिला के कन्वर्जन में मुख्य भूमिका निभाने का आरोप था। अखिला उफ हादिया उसी के साथ रहती थी। जैनबा एसडीएफआई से भी जुड़ी है। जब उससे संवासिनियों के बाहर जाने और संस्था की कन्वर्जन गतिविधियों के बारे में पूछा गया तो उसने साफ शब्दों में कहा कि संस्था में रखी गई लड़कियों को कन्वर्जन के बाद ही बाहर जाने दिया जाता था।
ये तीनों मामले स्पष्ट रूप से संकेत करते हैं कि गैर-मुस्लिम लड़कियों को सुनियोजित तरीके से फंसाया गया, जिसमें कई लोग शामिल थे। निमिषा प्रकरण में जिस सज्जाद का नाम आया है, आरोप है कि वह एक नियोजित चयनकर्ता है, जो लड़कियों को ‘लव जिहाद’ में फंसा कर उनका कन्वर्जन कराता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि कन्वर्जन के बाद पीड़ितों को आतंकी गतिविधियों में धकेला जाता है। इस मामले में मानव तस्करी के सभी घटक परिलक्षित होते हैं। निमिषा उर्फ फातिमा मामले में तो इसकी पुष्टि भी होती है।
मानव तस्करी की परिभाषा
संयुक्त राष्ट्र की परिभाषा के अनुसार, किसी व्यक्ति को डराकर, बलपूर्वक या उससे दोषपूर्ण तरीके से काम लेना, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना या बंधक बनाकर रखने जैसे कृत्य मानव तस्करी की श्रेणी में आते हैं। देह व्यापार की परिभाषा के अंतर्गत यौन शोषण पर सबसे अधिक ध्यान दिया जाता है, जबकि इसी में दुलहनों की तस्करी एक ऐसा आयाम है, जिस पर सबसे कम चर्चा होती है। निकाह की आड़ में देह व्यापार के पहलू की अनदेखी का कारण यह है कि समाज औपचारिक रीति-रिवाजों से संपन्न विवाह को पवित्र संबंध की मान्यता देता है। विवाह ऐसी संस्था है, जिसे तत्काल स्वीकृति मिल जाती है, बशर्ते वह किसी विशेष समुदाय द्वारा तय सामाजिक मानकों के विरुद्ध न हो। यदि कोई विवाह स्वीकृत सामाजिक मानदंडों के खिलाफ होता है, तो उसका विरोध और उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया से समुदाय के लोगों की भावनाएं आहत होती हैं। शोषण के लिए निकाह के माध्यम से नियोजित चयन मानव तस्करी के सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक है।
यही बात इस तथ्य की भी व्याख्या करती है कि हर साल बड़ी संख्या में अंतर-पांथिक विवाह और उस आधार पर कन्वर्जन के बावजूद पुलिस के पास ऐसे विवाहों के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में यह महत्वपूर्ण है कि ‘लव जिहाद’ की अवधारणा को समझते हुए पड़ताल की जाए कि क्या ‘लव जिहाद’ में दुलहनों की तस्करी शामिल है? इसके लिए ‘लव जिहाद’ के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करना होगा। ‘लव जिहाद’ के तहत अंतर-पांथिक के कुछ पहलू इस प्रकार हैं-
नियोजित चयन
‘लव जिहाद’ पर एक पक्ष की आपत्तियों का विरोध करने वाले कहते हैं कि दो वयस्क आपसी सहमति से प्रेम करते हैं और देश का कानून इसकी अनुमति देता है। लेकिन मानव तस्करी के मामले में सहमति नहीं होती। इसमें धमकी, बल प्रयोग, अपहरण, धोखाधड़ी, छल शामिल होता है या इससे कोई आर्थिक पक्ष जुड़ा होता है। अत: ‘लव जिहाद’ की नियोजित चयन प्रक्रिया की जांच उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखकर की जानी चाहिए, क्योंकि इसका असर तत्काल नहीं दिखता। इसका पता तभी चलता है, जब किसी व्यक्ति का चयन हो जाता है और वह पीड़ित होता है। यानी वह चरण जब उसका शोषण होता है। इसी तरह, ‘लव जिहाद’ की शिकार लड़की को जब सच्चाई का पता चलता है, तब तक देर हो चुकी होती है। ‘लव जिहाद’ में निकाह की पूर्व शर्त होती है कि लड़की इस्लाम को स्वीकार करे। पेशेवर तस्कर भावनात्मक रूप से कमजोर लड़कियों को ही निशाना बनाते हैं। 2017 में सर्वोच्च न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका संख्या 5777 मामले में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के आकलन के आधार पर अपना पक्ष रखा था। इसमें कहा गया कि ऐसे मामलों में उन युवतियों को निशाना बनाया जाता है, जो अपने माता-पिता से असहमति के कारण दुखी होती हैं। रूढ़िवादी समाज में ‘लव जिहाद’ सामाजिक कलंक माना जाता है। ऐसे मामलों में सामाजिक बहिष्कार का डर बना रहता है। यही मनोवैज्ञानिक कमजोरी लड़की को कन्वर्जन स्वीकार करने के लिए विवश करती है। इसमें पहले सुनियोजित तरीके से लड़की को कमजोर किया जाता है और फिर उसका शोषण किया जाता है।
नियोजित चयन का दूसरा पहलू, जो ‘लव जिहाद’ को तस्करी के श्रेणी में लाता है, वह है पीड़िता पर नियंत्रण रखने वाले व्यक्ति को भुगतान या लाभ देना। केरल उच्च न्यायालय में एर्नाकुलम पीठ के न्यायमूर्ति के.टी. शंकरन के समक्ष 9 दिसंबर, 2009 के शाहन शा ए. बनाम केरल राज्य मामले में जमानत आवेदन संख्या 5288 पर रिपोर्ट में पुलिस ने इस तथ्य को स्थापित किया है। केरल पुलिस ने स्वीकार किया कि युवाओं के बीच सक्रिय कुछ समूह ‘लव जिहाद’ के जरिये कन्वर्जन को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इन कार्यों में लगे युवकों को कपड़े, वाहन खरीदने तथा कानूनी सहायता आदि के लिए विदेशों से धन मिलता है। खाड़ी के कुछ मुस्लिम रूढ़िवादी संगठन भी विदेशों से धन जुटाते हैं। कुछ मामलों में मुस्लिम युवक, जिन्हें विदेशों से पैसे मिलते हैं, खुद को हिंदू बताते हैं। वे आर्थिक संपन्नता का दिखावा कर लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाते हैं। इनमें खास तौर से व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों की छात्राएं शामिल होती हैं। पुलिस रिपोर्ट के अनुसार, रूढ़िवादी मुस्लिम संगठन की योजना उच्च जाति के संपन्न परिवारों की मेधावी हिंदू और ईसाई लड़कियों को फंसाने की होती है। खासतौर से उन्हें, जो व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कर रही हैं और आईटी क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसमें लिप्त जिन संगठनों की पहचान की गई है, उनमें एनडीएफ, पीएफआई, कैम्पस फ्रंट जैसे कट्टर मुस्लिम संगठन शामिल हैं। इनकी जड़ें कॉलेज परिसरों में हैं। सऊदी अरब के कुछ संगठन ‘छात्रवृत्ति’ की आड़ में मुस्लिम युवाओं को इन गतिविधियों के लिए आर्थिक मदद देते हैं।
कन्वर्जन के बाद जिंदगी नरक
‘लव जिहाद’ अंतर-पांथिक विवाह से अलग है। ‘लव जिहाद’ एक संगठित प्रयास है, जिसमें कई पक्ष लड़की को फंसाने में योगदान देते हैं। इसमें पहले योजना को अंजाम देने वाले किरदार को चुना जाता है, फिर उसे प्रशिक्षित करने के साथ उसका वित्त पोषण किया जाता है। इस नेटवर्क में अन्य हितधारकों को लड़कियों के चयन, उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने का काम सौंपा जाता है। कन्वर्जन के तौर पर इसका प्रारंभिक उद्देश्य परिभाषित है। लेकिन बाद के उद्देश्य की पड़ताल अभी बाकी है। इसमें ‘लव जिहाद’ की शिकार गैर-मुस्लिम लड़की को इस्लाम में कन्वर्ट कर लंबे समय तक उसके परिवार व परिचितों से दूर रखा जाता है ताकि कन्वर्जन के बाद वह नए रीति-रिवाजों को अपना सके। यानी पीड़िता के लिए कोई विकल्प नहीं छोड़ा जाता। लड़की को जब शिकार होने का अहसास होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और स्थिति उसके नियंत्रण से बाहर हो चुकी होती है। इस तरह, वह मानसिक और शारीरिक रूप से पूरी तरह तस्करों के नियंत्रण में जा चुकी होती है। इस तरह कन्वर्जन के बाद गैर-मुस्लिम बहुत कमजोर हो जाते हैं। इसके दो कारण हैं- एक, कन्वर्जन के बाद परिवार और दोस्तों से उनका कोई संपर्क टूट जाता है, जिससे व्यक्ति अकेला पड़ जाता है। दूसरा, कन्वर्जन के बाद भी मुसलमान उन्हें पूरी तरह स्वीकार नहीं करते। इस कारण नए परिवेश में भी वे अलग-थलग रहते हैं। इस कारण उनका संपर्क केवल कटÞ्टरपंथी मुसलमानों से रहता है। इसलिए उन्हें आसानी से कट्टरपंथी बना दिया जाता है। जॉर्जिया स्टेट यूनिवर्सिटी के जॉन होर्गन ने एक सर्वेक्षण में इसे साबित किया है। इस परिघटना को ‘डबल मार्जिनलाइजेशन’ कहा जाता है।
आतंकी बनाने के लिए ब्रेनवाश
इंग्लैंड के मिडलैंड्स के पूर्व शिक्षक 52 वर्षीय खालिद मसूद उर्फ एड्रियन रसेल अजाओ ने इस्लाम कबूल लिया था। 22 मार्च, 2017 को लंदन में संसद भवन, वेस्टमिंस्टर पैलेस के पास हुए आतंकी हमले में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। ब्रिटिश उच्चारण वाला हिंदू मूल का सिद्धार्थ धर उर्फ अबू रुमैसाह आईएसआईएस में नियोजित चयन के बाद सीरिया से ब्रिटेन को धमकी देने वाले नकाबपोश के रूप में कुख्यात हुआ। रॉबिन सिमकोक्स के एक अध्ययन के अनुसार, जुलाई 2014 और अगस्त 2015 के बीच पश्चिम में आईएसआईएस से संबंधित 32 आतंकी साजिशों में शामिल 58 आतंकियों में 29 प्रतिशत कन्वर्टेड थे। स्कॉट क्लेनमैन और स्कॉट फ्लावर द्वारा किए गए इसी तरह के एक अन्य अध्ययन में पता चला कि ब्रिटेन के 28 लाख मुसलमानों में दो-तीन प्रतिशत ही कन्वर्टेड थे, लेकिन 2001 से 2010 के दौरान आतंकी गतिविधियों में उनकी भागीदारी 31 प्रतिशत थी। इससे पता चलता है कि गैर-मुसलमानों को जिहादी घुट्टी पिलाकर आतंकी बनाने को लेकर तो अध्ययन हुए हैं, लेकिन वैश्विक स्तर पर ‘लव जिहाद’ को लेकर चर्चा गौण है। देरी से ही सही, भारत ने इस तथ्य को स्वीकार किया और उच्च न्यायालयों की बदौलत ‘लव जिहाद’ पर जोरदार चर्चा शुरू की है।
केरल उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा है कि अंतर-पांथिक विवाहों में कन्वर्जन की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन अदालत ने यह भी कहा कि यदि विवाह में कन्वर्जन एक पूर्व शर्त है, तो ऐसे संबंधों में प्रेम की तुलना में मत-मजहब अधिक प्रमुखता से परिलक्षित होता है। ऐसे मामलों का अर्थ जबरन, बाध्यकारी या कपटपूर्ण कन्वर्जन होगा।
विदेश जाने के बाद लड़कियों का सुराग नहीं जबरन कन्वर्जन और विवाह के बाद लड़कियों की भूमिका पर अधिक शोध नहीं हुआ है। हालांकि कुछ मामलों में देखा गया है कि शादी के बाद मुस्लिम परिवारों की लड़की में रुचि खत्म हो जाती है और समुदाय उन्हें बहिष्कृत कर देता है। इससे वह पूरी तरह लड़के और उस समूह के अन्य सदस्यों की दया पर निर्भर हो जाती है। केरल में ऐसे बहुत से लोग हैं जो खाड़ी देशों में रहते हैं या नौकरी करते हैं। निकाह के बाद लड़की पति के साथ विदेश चली जाती है और फिर उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। आम तौर पर लड़की को देश से बाहर ले जाकर उसका शोषण करने के पीछे तीन उद्देश्य हो सकते हैं- 1. मजहबी कट्टरपंथ की घुट्टी पिलाने के बाद आतंकी संगठन के लिए लड़ने या दूसरे कामों में प्रयोग करना। 2. आतंकियों की यौन संतुष्टि के लिए प्रस्तुत करना। 3. लड़कियों से जबरन श्रम कराना।
इसके अलावा, उन पर शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दबाव भी बनाया जाता है। जैसे- कन्वर्जन के लिए दबाव, कन्वर्जन के बाद की गतिविधियों का महिमामंडन करना, वापसी की इच्छा रखने पर अस्वीकृति के डर को हवा देना, लड़की या उसके परिवार को मारने या नुकसान पहुंचाने की धमकी देना। इसमें उत्पीड़न, मारपीट व पीड़ितों का विभिन्न प्रकार से शारीरिक शोषण करना, कानून का डर दिखाना जैसे हथकंडे अपनाने के साथ उन्हें अवैध व्यापार में शामिल लोगों के सिवा किसी अन्य व्यक्ति से बातचीत नहीं करने देना शामिल है। यही नहीं, पीड़िता को भूखा भी रखा जाता है ताकि वह उनके मनमुताबिक काम करती रहे।
इसके बावजूद इस तरह के अपराध के तौर-तरीकों पर देश के सभी राज्यों से आंकड़े एकत्र करने की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया। राजनीतिक दलों को समझना होगा कि तुष्टिकरण की राजनीति कर देश की आंतरिक सुरक्षा को दांव पर लगाना महंगा पड़ेगा। केवल राजनीतिक सुविधा के लिए सरकारें इस मुद्दे का टाल नहीं सकतीं। उन्हें इसे गंभीरता से लेना होगा।
(लेखक भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं)
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