सरकार गिरने से पहले 31 मार्च को इमरान खान ने देश की जनता को संबोधित किया। इसमें उन्होंने पाकिस्तान को इस्लामी रियासत बनाने, इस्लामोफोबिया, आतंकवाद सहित पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति का जिक्र किया। साथ ही, अमेरिका पर अपनी भड़ास निकाली। खेल हो या राजनीति, इमरान खान हमेशा अपने आत्ममुग्ध व्यवहार के लिए जाने जाते हैं। राष्ट्र के नाम संबोधन में भी उनका अहंकारी स्वभाव दिखा। इसमें उन्होंने भारत, अमेरिका, इंग्लैंड में अपनी जान-पहचान का बखान तो किया ही, लगे हाथ सफाई भी दी कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ है। अमेरिका में 9/11 आतंकी हमले में पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने कहा कि जिस अमेरिका के साथ आतंकवाद के खिलाफ हमने लड़ाई लड़ी, उसी ने पाकिस्तान पर पाबंदियां लगार्इं। पाकिस्तान में 80 हजार लोग आतंकवाद की भेंट चढ़ गए। साथ ही, कबाइली इलाकों का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि वे बेवजह मारे गए। वे तो जिहाद कर रहे हैं, जिसे अमेरिकी आतंकवाद कहते हैं। लेकिन अब वे पाकिस्तान के खिलाफ हो गए। जिन जिहादियों को हमने प्रशिक्षित किया, वे भी पाकिस्तान के खिलाफ हो गए।
संबोधन के बीच, इमरान ने उस पत्र का भी जिक्र किया, जो कथित तौर पर उन्हें भेजा गया था। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश भी नहीं किया था, लेकिन पत्र भेजने वाले देश को पहले से ही सब कुछ मालूम था। इस दौरान उनकी जबान फिसली और उन्होंने कहा कि पत्र अमेरिका ने भेजा। फिर सफाई देते हुए बोले कि उनके निशाने पर सरकार नहीं, बल्कि मैं हूं। वे चाहते हैं कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में हार जाऊं तो वे देश को माफ कर देंगे। लेकिन अगर अविश्वास प्रस्ताव गिर गया तो पाकिस्तान के साथ संबंध तो खराब होंगे ही, देश को मुश्किलों का भी सामना करना पड़ेगा। इसी तरह, उन्होंने रूस जाने के मुद्दे पर भी सफाई दी कि इसका फैसला उन्होंने अकेले नहीं लिया। पाकिस्तान के नेताओं को विदेशी गुलाम बताते हुए कहा कि वे चाहते हैं कि इमरान खान जाए और वे सत्ता में आएंगे तो सब ठीक हो जाएगा।
अपने भाषण की शुरुआत में उन्होंने कहा कि देश अभी दोराहे पर खड़ा है। हमें यह फैसला लेना है कि किस ओर जाना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि वे राजनीति में क्यों आए। इस दौरान उन्होंने केवल दो लोगों को सराहा, जिनमें मोहम्मद अली जिन्ना और अल्लामा इकबाल शामिल थे। देश के बाकी नेताओं के बारे में कहा कि राजनीति में आने से पहले उनकी न तो कोई हैसियत थी और न ही कोई उपलब्धि। फिर अपने बारे में कहा कि उन्हें जितनी शोहरत मिली, उतनी शायद ही किसी को मिले। उनके पास किसी चीज की कमी नहीं है। वे तो कौम की खुद्दारी के लिए राजनीति में आए। राजनीति में आने के बाद उन्होंने अपने घोषणा-पत्र में तीन बातों को शामिल किया- इन्साफ, इन्सानियत और खुद्दारी।
टिप्पणियाँ