हरियाणा के धान उत्पादक किसान पानी बचाने के लिए नई तकनीक अपना रहे हैं। वे धान रोपाई के पारंपरिक तरीके की जगह धान की सीधी बुआई कर रहे हैं। इसे डायरेक्ट सीडेड राइस (डीएसआर) विधि कहा जाता है। इस विधि से सिंचाई के लिए अधिक पानी की जरूरत नहीं पड़ती और 50 से 70 प्रतिशत तक पानी की बचत होती है। आईआईटी कानपुर के एक शोध-पत्र के अनुसार, धान की खेती के लिए पानी के अत्यधिक दोहन से भू-जल स्तर खतरनाक स्तर पर चला गया है। इसके लिए पंजाब व हरियाणा जैसे राज्यों में की जा रही धान की खेती को जिम्मेदार ठहराया गया है। लेकिन हरियाणा के किसानों ने इस समस्या का हल निकाल लिया है।
ऐसे ही एक किसान हैं, सिरसा जिले के शहीदावाला गांव के 31 वर्षीय सुनील कम्बोज। उन्होंने बताया कि ‘‘मेरे गांव में भू-जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। इसके कारण हर साल बड़ी संख्या में नलकूप बंद हो जाते हैं। हमारे सामने यह समस्या है कि हम धान की खेती नहीं छोड़ सकते, क्योंकि इस मौसम में कोई अन्य फसल नहीं उगती। सीधे शब्दों में कहंू तो धान की खेती बंद कर दी तो हमारे लिए आर्थिक संकट पैदा हो जाएगा।’’ इसे देखते हुए सुनील ने कृषि विभाग से संपर्क किया और डीएसआर पद्धति के बारे में सीखा। पिछले साल उन्होंने 5 एकड़ जमीन में डीएसआर पद्धति से धान की बुआई की थी। प्रयोग सफल रहा। इससे 30 से 40 प्रतिशत पानी की बचत हुई। इस बार उन्होेंने 40 एकड़ में इस विधि से धान की बिजाई की है। उनसे प्रेरणा लेकर गांव के दस किसान इसी विधि से धान की खेती कर रहे हैं। इस बार तो पूरा गांव ही धान की सीधी बिजाई के लिए तैयार है। खास बात यह है कि इस तकनीक से न तो उत्पादन पर कोई असर पड़ता है और न ही फसल की गुणवत्ता पर।
शहीदावाला गांव के एक 55 वर्षीय किसान मेहर सिंह कहते हैं कि पिछले साल सुनील जब धान की सीधी बुआई कर रहे थे तो ज्यादातर किसानों ने उनका मजाक उड़ाया। उन्हें लगता था कि इस तरह से धान की खेती हो ही नहीं सकती। कारण, वे अभी तक धान की पारंपरिक विधि से ही अवगत थे, जिसमें पहले भूमि को दलदली बनाने के लिए खेत में पानी भरा जाता है, इसके बाद रोपाई होती है। पर अधिकांश लोग धान की सीधी बुआई के इस नए प्रयोग को समझ नहीं पाए। मेहर सिंह कहते हैं कि जब हमने परिणाम देखा तो हम भी उत्साहित हो गए। इसलिए मैंने दस एकड़ जमीन में से पांच एकड़ में धान की सीधी बुआई की है।
तेजी से गिर रहा भू-जल स्तरहरियाणा कृषि विभाग के पूर्व अतिरिक्त निदेशक सुरेश गहलोत ने बताया कि राज्य के 22 में से 14 जिलों में भू-जल स्तर खतरनाक स्थिति को पार कर गया है। 2004 में राज्य में लाल श्रेणी के ब्लॉकों की संख्या 55 थी, जो अब बढ़कर 85 हो गई है। यह राज्य का 48 प्रतिशत है। अब हमें पानी बचाने के उपायों पर काम करना होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया तो कुछ वर्षों में राज्य में भू-जल स्तर और नीचे चला जाएगा। तब भू-जल को प्राकृतिक तरीके से रिचार्ज करना लगभग नामुमकिन होगा। एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा में बीएससी कृषि के छात्र रोहित चौहान हरियाणा में जल संकट पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ''भू-जल दोहन की कोई सीमा नहीं है। हरियाणा के किसानों द्वारा धान की खेती के लिए भू-जल के दोहन का असर आसपास के राज्यों पर भी पड़ सकता है। यह न केवल जल संकट का कारण बन सकता है, बल्कि भू-जल के अत्यधिक दोहन से जमीन के अंदर बदलाव भी आ सकते हैं, जो भूकंप की वजह बन सकते हैं। इससे जमीन के नीचे की संरचना बदल सकती है, जो भविष्य के लिए गंभीर संकट भी बन सकती है। इससे जमीन में दरार आने जैसी समस्या हो सकती है। इसलिए धान की खेती में जिस सीधी बुआई विधि का प्रयोग किया जा रहा है, वह अच्छा प्रयास है।’’ |
इसी तरह, करनाल जिले के नगला गांव के 43 वर्षीय किसान मेहताब कादियान ने 54 एकड़ जमीन में धान की बुआई की थी। वे बताते हैं, ‘‘कृषि विभाग ने मुझे धान की सीधी बिजाई के लिए प्रेरित किया। शुरुआत में मैंने कम जमीन पर प्रयोग किया। मैं थोड़ा डरा हुआ भी था। लेकिन सरकार ने जब इसके लिए प्रोत्साहित किया तो हिम्मत बढ़ी। फिर चार एकड़ जमीन में यह प्रयोग किया।’’ इसके परिणाम इतने उत्साहवर्धक आए कि वे धान की सीधी बुआई के लिए पूरी जमीन का इस्तेमाल करने लगे। अब वे दूसरे किसानों को भी इस पद्धति से खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कादियान कहते हैं, ‘‘किसान एक-दूसरे को देखकर सीखते हैं। इसलिए मैं एक मॉडल पेश कर रहा हूं, जो अन्य किसानों को इस बारे में सिखा रहा है। निश्चित तौर पर अगले साल बड़ी संख्या में किसान हरियाणा में धान की सीधी बुआई करेंगे।’’
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी धान की खेती में प्रयोग की जा रही नई विधि को लेकर आशान्वित हैं। उन्हें उम्मीद है कि इस बार धान की सीधी बुआई का रकबा बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि इस साल कुछ सफल फसल देखने के बाद कई किसान इस तकनीक के बारे में पूछ रहे हैं। सरकार धान की सीधी बिजाई के लिए किसानों को प्रति एकड़ 5,000 पांच हजार रुपये प्रोत्साहन राशि भी देती है।
हरियाणा के कृषि मंत्री जेपी दलाल ने कहा, ‘‘जब धान की खेती की शुरुआत हुई थी, तो इसकी खेती दलदली जमीन में होती थी। यानी जहां पानी जमा रहता था। लेकिन बाद में नलकूप और बिजली का प्रयोग शुरू हुआ तो किसान उस जमीन में भी धान की खेती करने लगे जो दलदली नहीं थी। अब पहले जमीन में पानी जमा कर उसे दलदली बनाया जाता है। इसके बाद धान की रोपाई होती है। किसानों के मन में यह धारणा है कि यदि खेत में पानी नहीं होगा तो फसल अच्छी नहीं होगी। किसान इस तरीके को बदलना नहीं चाहते। उन्हें डर है कि इससे धान के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए किसानों की इस सोच को बदलने की जरूरत है। इसके अलावा, उन्हें खरपतवार की समस्या भी हो सकती है। जिन किसानों ने सीधी बुआई के तरीके को अपना लिया है, वे निश्चित रूप से पानी बचाने में रोल मॉडल हैं। सरकार उनके प्रयासों की सराहना करती है।’’ जेपी दलाल ने बताया कि सरकार अब इस प्रयोग को राज्य के हर किसान तक ले जाना चाहती हैं, क्योंकि इससे भू-जल स्तर को बचाने और इसे फिर से भरने में मदद मिलेगी।
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