कृषि को गति,  भारत को प्रगति
Wednesday, May 25, 2022
  • Circulation
  • Advertise
  • About Us
  • Contact Us
Panchjanya
  • ‌
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • मत अभिमत
    • रक्षा
    • संस्कृति
    • विज्ञान और तकनीक
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा
    • साक्षात्कार
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • श्रद्धांजलि
SUBSCRIBE
No Result
View All Result
Panchjanya
  • ‌
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • बिजनेस
  • अधिक ⋮
    • विश्लेषण
    • मत अभिमत
    • रक्षा
    • संस्कृति
    • विज्ञान और तकनीक
    • खेल
    • मनोरंजन
    • शिक्षा
    • साक्षात्कार
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • श्रद्धांजलि
No Result
View All Result
Panchjanya
No Result
View All Result
  • होम
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • संघ
  • Subscribe
होम भारत

कृषि को गति,  भारत को प्रगति

अरुण कुमार सिंह by अरुण कुमार सिंह
Mar 26, 2022, 11:07 am IST
in भारत, साक्षात्कार, दिल्ली
डॉ. अशोक कुमार सिंह (बाएं) से बातचीत करते अरुण कुमार सिंह

डॉ. अशोक कुमार सिंह (बाएं) से बातचीत करते अरुण कुमार सिंह

Share on FacebookShare on TwitterTelegramEmail
नई दिल्ली स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, जो पूसा संस्थान के नाम से विख्यात है, का मुख्य काम है देश में अन्न के उत्पादन को बढ़ावा देना और कृषि के क्षेत्र में शोध करना। बिहार के पूसा में 1905 में स्थापित इस संस्थान को 1934 में आए भूकंप के बाद दिल्ली स्थानांतरित किया गया। इसका परिसर लगभग 1,200 एकड़ में है। जिस सड़क पर यह परिसर है, उसे पूसा रोड कहते हैं। भारत को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में इसका बहुत बड़ा योगदान है। संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह से पाञ्चजन्य के समाचार सम्पादक अरुण कुमार सिंह ने बातचीत की। प्रस्तुत हैं वार्ता के प्रमुख अंश-  

पूसा संस्थान अन्न के उत्पादन को बढ़ावा देने में किस तरह की भूमिका निभा रहा है? 
देश में अन्न के उत्पादन को बढ़ावा देने में पूसा संस्थान की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे एक उदाहरण से समझ सकते हैं। 1960 के दशक में भारत में गेहूं का उत्पादन मात्र एक करोड़ बीस लाख टन था। देश की आवश्यकता को पूरी करने के लिए 700-800 लाख (7-8 मिलियन) टन गेहूं आयात करना पड़ता था। उन्हीं दिनों डॉ. स्वामीनाथन और डॉ. बी.पी. पाल के नेतृत्व में और मास्को में अंतरराष्ट्रीय गेहूं एवं मक्का संस्थान का नेतृत्व कर रहे डॉ. नोर्मन बोरलंग के सहयोग से गेहूं की एक बौनी प्रजाति लाई गई, जिसे ‘मैक्सिकन व्हीट’ के नाम से जाना जाता है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने मैक्सिकन गेहूं और भारतीय गेहूं को मिलाकर एक नई प्रजाति को तैयार किया। उन दिनों जो गेहूं आयात किया जाता था, उसका रंग लाल होता था। रोटी का रंग भी किसी को पसंद नहीं आता था और उस गेहूं की रोटी जल्दी सूख भी जाती थी। इसे देखते हुए हमारे विशेषज्ञों ने भारतीय गेहूं के सुनहरे रंग को आयातित गेहूं की प्रजातियों में समाहित किया। इस प्रकार गेहूं की अनेक बौनी किस्मों का विकास किया गया। इस कारण 1970 के आते-आते गेहूं के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। आज देश में गेहूं का उत्पादन करीब 111 मिलियन टन के आसपास हो रहा है।  अभी देश में गेहूं  का कुल रकबा लगभग 32 मिलियन हेक्टेयर है, जिसमें से 15 मिलियन हेक्टेयर में पूसा संस्थान द्वारा विकसित गेहूं की प्रजातियां लगाई जा रही हैं। 

आज बासमती की धूम विदेशों तक में है। इसकी गुणवत्ता बढ़ाने में पूसा की जो भूमिका रही है, उसके बारे में बताएं। 
हमारे संस्थान ने बासमती चावल की कई किस्मों को विकसित किया है। हम सब जानते हैं कि भारत बासमती चावल का उद्गम स्थल है और विशेष रूप से हिमालय की तलहटी में बासमती की खेती की जाती है। बासमती की जो परंपरागत किस्में थीं, उनके पौधों की ऊंचाई लगभग डेढ़ मीटर के आसपास होती थी। जब उनमें दाना भरता था और हल्की हवा चलती थी, तो पौधे गिर जाते थे। इस कारण चावल की गुणवत्ता खराब होती थी और पैदावार भी  20-25 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती थी। डॉ. स्वामीनाथन का मानना था कि अगर हम बासमती की बौनी प्रजातियां विकसित कर पाएंगे तो इनकी उत्पादकता को बढ़ा सकते हैं। इसलिए इस क्षेत्र में शोध शुरू किया गया। इसके फलस्वरूप 1989 में बासमती की पहली बौनी किस्म पूसा ने विकसित की, जिसे किसान ‘उछल’ के नाम से जानते हैं और इसकी बहुत बड़े पैमाने पर खेती हुई। इसके बाद बासमती की कई किस्में विकसित की गई। आज इन किस्मों की 20 लाख हेक्टेयर में खेती की जा रही है। बासमती चावल के निर्यात से भारत को प्रतिवर्ष करीब 30,000 करोड़ रु. की विदेशी मुद्रा मिल रही है। इसका सीधा प्रभाव किसानों की जिंदगी पर पड़ता है।

 

पूसा संस्थान के प्रयासों से 1970 के आते-आते गेहूं के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। आज देश में गेहूं का उत्पादन करीब 111 मिलियन टन के आसपास हो रहा है। देश में गेहंू का कुल रकबा लगभग 32 मिलियन हेक्टेयर है, जिसमें से 15 मिलियन हेक्टेयर में पूसा संस्थान द्वारा विकसित गेहूं की प्रजातियां लगाई जा रही हैं। 

 

हम लोग बासमती के पौधों को लगने वाले झोका रोग, जिसे गर्दन तोड़ बीमारी भी कहते हैं, से बचाव के लिए काम कर चुके हैं। पत्तियों में रोग रोधी क्षमता को विकसित किया गया है। इससे किसानों को किसी तरह का छिड़काव नहीं करना पड़ता है। इस कारण किसान को प्रति हेक्टेयर लगभग 4,000 रु. की बचत होती है। इसी श्रृंखला में पिछले वर्ष ही हम लोगों ने बासमती की तीन किस्में विकसित की हैं। इसमें एक पूसा 1847 है, जिसे पूसा बासमती 1509 में सुधार करके बनाई गई है। दूसरी, पूसा बासमती 1885 है, जिसे 1122 में सुधार के बाद लाया गया है। तीसरी, 1886 है, जिसको पूसा बासमती 1401 में सुधार करके तैयार किया गया है। इन तीनों नई किस्मों में पत्ती का झुलसा रोग और झोका रोग नहीं लगता है। 

 

 तिलहन फसलों में हो रहे अनुसंधानों में कहां तक प्रगति हुई है?
हमारा संस्थान मुख्य रूप से सरसों पर काम कर रहा है। कुछ जल्दी पककर तैयार होने वाली, जल्दी बुआई वाली और कुछ देर से बुआई वाली किस्में तैयार की गई हैं। संस्थान की पुरानी किस्मों में पूसा गोल्ड, पूसा मस्टर्ड 25, 26, 27, 28 आदि शामिल हैं। हमारे यहां सरसों की जो किस्में बनी हैं, उन्हें हम ‘जीरो मस्टर्ड’ बोलते हैं। इसको हम लोग इंडोला के नाम से बाजार में ला रहे हैं। यह पूर्णरूपेण स्वदेशी है और इसकी गुणवत्ता वैसी ही है जैसी बाहर से मंगाई गई सरसों में होती है। दरअसल, हमारे यहां जो सरसों की प्रजातियां हैं उनमें एरोसिक अम्ल की मात्रा 45 प्रतिशत तक पाई जाती है और बाहर की सरसों में यह केवल दो प्रतिशत है। इसका सीधा संबंध ह्दय विकार से है। इसलिए हम लोगों ने सरसों की अच्छी किस्मों को तैयार किया है।

 

दलहनी फसलों के विकास और संरक्षण के क्या कदम उठाए गए हैं?  
हाल ही हम लोगों ने चने की एक नई किस्म विकसित की है, जिसमें सूखा रोग, कुंठा रोग नहीं लगता है और इसकी पैदावार 26 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। इसी तरह चने की ऐसी किस्में विकसित की हैं, जो मशीन से कटाई के लिए उपयुक्त हैं। ऐसे ही अरहर की एक किस्म ‘अरहर पूसा 16’ विकसित की गई है, जो कम समय यानी 125 दिन में पककर तैयार होती है।

 

फल और सब्जी के लिए किस तरह के शोध हो रहे हैं!
विभिन्न प्रकार के फल हैं, जिन पर शोध कार्य हो रहे हैं। इसमें प्रमुखता से आम की बात बताना चाहूंगा। वैश्विक बाजार को ध्यान में रखते हुए थोड़े कम मीठे वाले आम की कुछ किस्में विकसित की गई हैं। जैसे पूसा लालिमा, दीपशिखा, मनोहरी, प्रतिभा, पूसा श्रेष्ठ आदि प्रजातियां हैं। दरअसल, दुनिया के बाजारों में कम मीठे वाले आमों की अधिक मांग है। हमारे यहां के लंगड़ा, चौसा, दसहरी बहुत मीठे होते हैं। इस कारण वैश्विक बाजार में भारत से अधिक फिलिपींस, मैक्सिको आदि देशों से आम पहुंचते हैं। इसे देखते हुए पूसा ने कम मीठे वाले आम की किस्में तैयार की हैं। इनकी भंडारण क्षमता ज्यादा है। करीब 11-12 दिन तक आम खराब नहीं होता है। इस कारण इनका निर्यात करना भी आसान है। इन किस्मों के पौधों को अधिक से अधिक किसानों तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है।

 

किसान की एक सबसे बड़ी समस्या है कि उसे यह नहीं पता है कि कितनी मात्रा में कौन सी दवाई डाली जाए। इस कारण मिट्टी तो खराब होती ही है, किसान 'को नुकसान भी होता है। इस बारे में संस्थान क्या कर रहा है?
इस समस्या का निदान प्राकृतिक संसाधनों का उचित प्रबंधन है। चाहे मिट्टी का स्वास्थ्य हो, मिट्टी की उर्वरता हो या जल की उपलब्धता। अगर हम इन संसाधनों का सदुपयोग की जगह दुरुपयोग करेंगे तो इनका क्षरण होगा और इसका प्रतिकूल प्रभाव आगे आने वाले समय में उत्पादकता पर पड़ेगा। इस दिशा में हम लोग काफी काम कर रहे हैं। संस्थान द्वारा एक ‘पूसा एसटीएफआर मीटर’ विकसित किया गया है। इसके माध्यम से आप मृदा के अंदर मौजूद पोषक तत्वों को पता लगा सकते हैं। इस मीटर को कहीं भी ले जा सकते हैं और खर्चा भी बहुत ही कम पड़ता है। पोषक तत्वों के पता चलने के बाद आप आसानी से तय कर सकते हैं कि जमीन को और किस उर्वरक की आवश्यकता है। इससे उर्वरकों की काफी बचत होगी और उसके ज्यादा प्रयोग से जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है वह भी कम होगा।

 

कुछ वर्षों से पंजाब, हरियाणा आदि राज्यों में पराली एक समस्या बन गई है। किसान पराली को जला देते हैं। इसका असर दिल्ली में भी देखने को मिलता है। इसका कोई निदान!
इस पर संस्थान ने निजी क्षेत्र की कुछ कंपनियों के साथ मिलकर ‘पूसा डिकम्पोजर’ नाम से एक घोल तैयार किया है। धान की कटाई करने के बाद इसका छिड़काव करने से 25 दिन के अंदर पराली मिट्टी में मिल जाती है। इससे मृदा का स्वास्थ्य भी बढ़ता है और मिट्टी की ऊपरी सतह पर 5-6 सेंटीमीटर के अंतर्गत जो जीवाणु होते हैं वे भी नहीं मरते हैं,  जबकि पराली को जलाने से ऐसे जीवाणु मर जाते हैं। इसके साथ ही वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता है।

ऐसी कई फसलें हैं, जिनमें पानी की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। क्या संस्थान ऐसी फसलों के लिए भी कुछ कर रहा है?
यह बात सही है कि सिंचाई में अधिक पानी लगने से कई स्थानों पर भू जल स्तर बहुत नीचे जा रहा है। विशेषकर पंजाब में तो जल स्तर 35 मीटर तक नीचे चला गया है। एक किलो चावल के उत्पादन में करीब 3,000 लीटर पानी लगता है। इसलिए हम लोग कम पानी में भी फसल तैयार हो सकें, इस पर शोध कर रहे हैं। पिछले वर्ष हम लोगों ने धान की दो किस्में विकसित की हैं।

 

हाल ही में पूसा संस्थान ने चने की एक नई किस्म विकसित की है, जिसमें सूखा रोग, कुंठा रोग नहीं लगता है और इसकी पैदावार 26 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। इसी तरह चने की ऐसी किस्में विकसित की हैं, जो मशीन से कटाई के लिए उपयुक्त हैं। ऐसे ही अरहर की एक किस्म ‘अरहर पूसा 16’ विकसित की गई है, जो कम समय यानी 125 दिन में पककर तैयार होती है।

 

अब कृषि में तकनीक का भी प्रयोग बढ़ गया है। क्या संस्थान किसानों को तकनीकी ज्ञान देने के लिए कुछ कर रहा है?
इसके लिए हम लोग किसान मेला लगाते हैं। तकनीक के प्रयोग से कृषि की लागत को कम किया जा सकता है और उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है। जैसे ड्रोन या सेंसर द्वारा यह पता लगता है कि जमीन के अंदर पोषक तत्वों की कितनी मात्रा है। यदि जिस खेत में नाइट्रोजन की मात्रा कम है, तो उस पर  यूरिया का छिड़काव ज्यादा करेंगे और जहां नाइट्रोजन की मात्रा ज्यादा है वहां पर यूरिया का छिड़काव कम करेंगे। इसी तरह  सेंसर के माध्यम से खेत में किस जगह कीड़ा लगा है, उसका पता चलता है। ऐसे में केवल उसी जगह दवा का छिड़काव कर कीड़ों को मारा जा सकता है। इससे दवा कम खर्च होगी। 

पूसा संस्थान देश के हर जिले में कृषि विज्ञान केंद्र चलाता है। इन केंद्रों का कार्य क्या है?
पूसा संस्थान का एक भाग प्रसार विभाग है। इसकी देखरेख में पूरे देश में 700 से अधिक कृषि विज्ञान केंद्र हैं। हर केंद्र पर 10-12 वैज्ञानिक, विशेषज्ञ होते हैं जो अलग-अलग विषयों के होते हैं और अपने क्षेत्र के किसानों से सीधा संपर्क रखते हैं।  संस्थान में जो भी तकनीक विकसित की जाती है उसका प्रदर्शन कृषि विज्ञान केंद्रों पर किया जाता है। किसानों को बुलाकर दिखाया जाता है। उनको प्रशिक्षित किया जाता है। इस प्रकार कृषि विज्ञान केंद्र तकनीक के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन कृषि विज्ञान केंद्रों से प्रशिक्षण लेकर बहुत सारे लोग अपना काम कर रहे हैं और अच्छा काम कर रहे हैं। कई लोगों ने तो राष्टÑीय स्तर पर पुरस्कार भी जीते हैं।  चित्रकूट में नानाजी देशमुख द्वारा स्थापित दीनदयाल शोध संस्थान के संरक्षण में कृषि विज्ञान केंद्र शुरू किए गए हैं, जो जनजाति क्षेत्र में तकनीक का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।

ShareTweetSendShareSend
Previous News

इंदौर: पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को 11 साल पुराने मामले में हुई सजा

Next News

संघ मुख्यालय सहित 3 इमारतों की फोटोग्राफी पर प्रतिबंध, इस वजह से लिया गया फैसला

संबंधित समाचार

जम्मू-कश्मीर: नियंत्रण रेखा के पार लॉन्च पैड पर सक्रिय आतंकी, घाटी में अराजकता फैलाने की कोशिश में पाकिस्तान

जम्मू कश्मीर : जैश-ए-मोहम्मद के माड्यूल का भंडाफोड़, आठ मददगार गिरफ्तार

जम्मू कश्मीर : पुलिस पदकों से हटेगा शेख अब्दुल्ला का चित्र, अब राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न बनेगा पहचान

जम्मू कश्मीर : पुलिस पदकों से हटेगा शेख अब्दुल्ला का चित्र, अब राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न बनेगा पहचान

निकाह में “मैउद्द्दीन” को चहिए थी बुलेट, नहीं मिली तो लड़की के पिता व भाइयों को पीटा

निकाह में “मैउद्द्दीन” को चहिए थी बुलेट, नहीं मिली तो लड़की के पिता व भाइयों को पीटा

भारत के साथ सबसे अच्छी दोस्ती के लिए अमेरिका प्रतिबद्ध : बाइडेन

भारत के साथ सबसे अच्छी दोस्ती के लिए अमेरिका प्रतिबद्ध : बाइडेन

स्कूलों में राष्ट्रगान की तरह वन्दे मातरम् भी गाया जाए, अश्विनी उपाध्याय ने दायर की याचिका

स्कूलों में राष्ट्रगान की तरह वन्दे मातरम् भी गाया जाए, अश्विनी उपाध्याय ने दायर की याचिका

आतंकियों की कायराना हरकत, पुलिसकर्मी और बेटी पर हमला, जांबाज बलिदान

आतंकियों की कायराना हरकत, पुलिसकर्मी और बेटी पर हमला, जांबाज बलिदान

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

जम्मू-कश्मीर: नियंत्रण रेखा के पार लॉन्च पैड पर सक्रिय आतंकी, घाटी में अराजकता फैलाने की कोशिश में पाकिस्तान

जम्मू कश्मीर : जैश-ए-मोहम्मद के माड्यूल का भंडाफोड़, आठ मददगार गिरफ्तार

जम्मू कश्मीर : पुलिस पदकों से हटेगा शेख अब्दुल्ला का चित्र, अब राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न बनेगा पहचान

जम्मू कश्मीर : पुलिस पदकों से हटेगा शेख अब्दुल्ला का चित्र, अब राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न बनेगा पहचान

निकाह में “मैउद्द्दीन” को चहिए थी बुलेट, नहीं मिली तो लड़की के पिता व भाइयों को पीटा

निकाह में “मैउद्द्दीन” को चहिए थी बुलेट, नहीं मिली तो लड़की के पिता व भाइयों को पीटा

भारत के साथ सबसे अच्छी दोस्ती के लिए अमेरिका प्रतिबद्ध : बाइडेन

भारत के साथ सबसे अच्छी दोस्ती के लिए अमेरिका प्रतिबद्ध : बाइडेन

स्कूलों में राष्ट्रगान की तरह वन्दे मातरम् भी गाया जाए, अश्विनी उपाध्याय ने दायर की याचिका

स्कूलों में राष्ट्रगान की तरह वन्दे मातरम् भी गाया जाए, अश्विनी उपाध्याय ने दायर की याचिका

आतंकियों की कायराना हरकत, पुलिसकर्मी और बेटी पर हमला, जांबाज बलिदान

आतंकियों की कायराना हरकत, पुलिसकर्मी और बेटी पर हमला, जांबाज बलिदान

बर्फबारी और बारिश से प्रभावित हुई केदारनाथ धाम यात्रा

बर्फबारी और बारिश से प्रभावित हुई केदारनाथ धाम यात्रा

आंध्र प्रदेश में जिले का नाम बदलने पर हिंसा, मंत्री और विधायक के घरों में लगाई आग

आंध्र प्रदेश में जिले का नाम बदलने पर हिंसा, मंत्री और विधायक के घरों में लगाई आग

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मामला : हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी मथुरा न्यायालय में दाखिल, सुनवाई एक जुलाई को

श्रीकृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मामला : हाईकोर्ट के आदेश की कॉपी मथुरा न्यायालय में दाखिल, सुनवाई एक जुलाई को

लक्ष्य सेन ने बढ़ाया भारत और उत्तराखंड का मान : सीएम धामी

लक्ष्य सेन ने बढ़ाया भारत और उत्तराखंड का मान : सीएम धामी

  • About Us
  • Contact Us
  • Advertise
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Privacy Policy
  • Cookie Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

No Result
View All Result
  • होम
  • भारत
  • विश्व
  • सम्पादकीय
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • संघ
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • Vocal4Local
  • विज्ञान और तकनीक
  • खेल
  • मनोरंजन
  • शिक्षा
  • साक्षात्कार
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • श्रद्धांजलि
  • Subscribe
  • About Us
  • Contact Us
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies