भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए खेती का भारत की जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। अन्नदाता को हमारे यहां देवता माना जाता है। इसीलिए कोरोना संक्रमण काल में और वैसे भी सरकार ने किसानों के हित में कई कदम उठाए हैं। आपकी दृष्टि में ऐसे कुछ प्रमुख कदम क्या हैं?
जब 2020 में कोरोना महामारी आई थी, तब देश के लिए गुणवत्तापूर्ण भोजन तक सबकी पहुंच सरकार की उतनी ही प्राथमिकता थी, जितनी कि लोगों के स्वास्थ्य की थी। केंद्र की प्राथमिकता थी कि खेती-किसानी का काम किसी भी हालत में थमना नहीं चाहिए, इसके लिए जहां कृषि क्षेत्र को सभी प्रकार की आवश्यक छूट प्रदान की गई, वहीं केंद्र के साथ पूरा समन्वय करते हुए राज्यों व संगठनों ने भी सहभागिता कर इस संकट से से न केवल उबरने में मदद की, बल्कि इसे अवसर में बदल दिया। कोहिमा के ग्रीन कारवां समूह ने नागालैंड के सभी गांवों से शहरी क्षेत्रों में सब्जियों के लिए बाजार तक के पहुंच माध्यम तैयार किए, तो महाराष्ट्र में एफपीओ द्वारा फलों व सब्जियों की आॅनलाइन बिक्री तथा पंजाब में विशेष डिजाइन की गई इलेक्ट्रिक वैन के माध्यम से घर-घर डिलीवरी की गई। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।
एक आंकड़ा देखने में आया कि कोरोना संकटकाल में भी खाद्यान्न का रिकार्ड उत्पादन हुआ। क्या यह सही है?
कोरोना संकट के दौरान ही खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 316 मिलियन टन हुआ है, वहीं प्रधानमंत्री जी के कुशल नेतृत्व में किसान हितैषी नीतियों, किसानों के अथक परिश्रम व वैज्ञानिकों के अनुसंधान के फलस्वरूप वर्ष 2020-21 में बागवानी उत्पादन 331.05 मिलियन टन (अब तक का सबसे अधिक) है। सरकार ने पूरी संवेदनशीलता व गंभीरता के साथ खरीफ, रबी व अन्य व्यावसायिक फसलों के लिए एमएसपी में बढ़ोतरी की है। वहीं किसानों से एमएसपी पर उपज खरीद में वृद्धि करने के साथ ही अधिक खरीदी केंद्र खोले गए। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि द्वारा किसानों को आय सहायता प्रदान करते हुए अभी तक करीब पौने बारह करोड़ किसानों के बैंक खातों में सीधे 1.82 लाख करोड़ रु. जमा कराए गए हैं।
इसी तरह, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत किसानों ने लगभग 24 हजार करोड़ रु. प्रीमियम अंशदान के रूप में दिए, जिसकी तुलना में उन्हें 1.07 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा राशि दावों के रूप में मिली है। अब बीमित किसानों की सुविधा के लिए ‘मेरी पॉलिसी-मेरे हाथ’ अभियान भी केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों के सहयोग से चलाया जा रहा है। किसानों को रियायती ऋण उपलब्ध कराने की दिशा में बैंकों एवं अन्य हितधारकों द्वारा सतत् और ठोस प्रयासों के परिणामस्वरूप केसीसी योजना के तहत किसानों के लिए 3.22 लाख करोड़ रु. की स्वीकृत ऋण सीमा के साथ लगभग तीन करोड़ किसानों को कवर करके महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की गई है। केंद्र द्वारा स्थापित एक लाख करोड़ रु. के कृषि इन्फ्रा फंड से गांव-गांव में किसानों के लिए काफी सुविधाएं विकसित की जा रही हैं। अभी तक लगभग पौने 11 हजार परियोजनाएं मंजूर की गई हैं।
पिछली सरकारों की तुलना में मोदी सरकार द्वारा कृषि बजट कितना बढ़ाया गया है?
मैं पिछली सरकारों की आलोचना में नहीं जाना चाहता, लेकिन यह वास्तविकता है कि वर्ष 2013-14 तक जहां देश में कृषि क्षेत्र का कुल बजट मात्र लगभग 22 हजार करोड़ रुपये के आसपास रहता था, वहीं अब प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में गांव-गरीब-किसान को प्राथमिकता देते हुए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का बजट 1.32 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है, जो गत वर्ष 1.23 लाख करोड़ रु. था। इससे कृषि के प्रति हमारी प्रतिबद्धता सिद्ध होती है।
पानी की कमी वाले क्षेत्रों में सिंचाई को तरसते खेतों की प्यास बुझाने में सरकार ने क्या प्रयास किए हैं?
मोदी सरकार के पिछले 7 साल से ज्यादा के अभी तक के कार्यकाल में पहले से ही सिंचाई योजनाओं के माध्यम से देशभर के किसानों को लाभ पहुंचाया जा रहा है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (प्रति बूंद-अधिक फसल) लागू करते हुए वर्ष 2015-16 से अब तक 60 लाख हेक्टेयर से ज्यादा अतिरिक्त क्षेत्र को कवर किया गया, वहीं राज्यों को सहायता रूप में 14,548 करोड़ रु. उपलब्ध कराए जा चुके हैं। सिंचाई लाभ उपलब्ध कराने व पेयजल आपूर्ति में वृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट को केंद्र सरकार ने बजट में मंजूरी दी है।
प्राकृतिक/जैविक खेती वक़्त की जरूरत है। किसानों को इस ओर आकर्षित करने के लिए क्या योजनाएं हैं?
भारत में प्राकृतिक खेती कोई नई अवधारणा नहीं है, क्योंकि हमारे किसान भाई-बहन प्राचीनकाल से ही बड़े पैमाने पर जैविक अवशेषों, गाय के गोबर, खाद आदि पर निर्भर रहते हुए रसायनों के उपयोग के बिना खेती करते रहे हैं। बदलते वक्त के साथ-साथ प्राकृतिक खेती शिथिल पड़ी, जिसे फिर से बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री जी ने विशेष रूप से ध्यान दिया है। किसानों को प्राकृतिक/जैविक खेती के लाभों के विषय में शिक्षित करके इसके क्षेत्रफल को बढ़ाने की आवश्यकता है, जिसके लिए भारत सरकार ने पिछले दिनों प्रस्तुत बजट में महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं। यह बजट नए युग की कृषि प्रथाओं, संसाधनों के इष्टतम उपयोग व नवाचार को बढ़ावा देने के साथ-साथ भारतीय कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों के विकास में तेजी लाएगा। बजट की घोषणाएं कृषि क्षेत्र में प्रधानमंत्री द्वारा किए गए सुधारों के अनुरूप हैं। इसमें हरित कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहन के साथ ही गंगा नदी किनारे कॉरिडोर पर फोकस करने के साथ ही देशभर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। साथ ही, किसानों को खुदरा व थोक खरीददारों से सीधे जोड़ने के लिए जैविक ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म www.jaivikkheti.in को मजबूत किया जा रहा है।
भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति और जैविक खेती, आधुनिक कृषि, मूल्य संवर्धन व प्रबंधन की जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्यों को कृषि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम को संशोधित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अभी तक 737.36 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। प्रधानमंत्री जी के विजन के अनुसार भारत की आजादी के अमृत महोत्सव में 75 ग्राम पंचायतों के कम से कम एक-एक गांव को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है।
खेती में आज अनेक किसान नवाचार अपना रहे हैं, नई तरह की लाभप्रद फसलें उगा रहे हैं। इन उत्साही किसानों को प्रोत्साहन के लिए मंत्रालय क्या सहयोग दे रहा है?
प्रधानमंत्री जी की विशेष रुचि है कि कृषि क्षेत्र में टेक्नोलॉजी को बढ़ावा दिया जाए। इस दिशा में सरकार फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण व कीटनाशकों के छिड़काव के लिए 'किसान ड्रोन' के उपयोग का समर्थन कर रही है, जिसके लिए बाकायदा पॉलिसी बनाई गई है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ड्रोन की खरीद के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर, कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) व सहकारी संस्थाओं को चालीस प्रतिशत या अधिकतम चार लाख रुपये तक का अनुदान प्रदान कर रहा है, वहीं एग्रीकल्चर स्नातक को पचास प्रतिशत या अधिकतम पांच लाख रु. तक का अनुदान दिया जा रहा है। ड्रोन की खरीदी के लिए सब्सिडी प्रदान करने से ये अधिक सुलभ हो जाएंगे और घरेलू ड्रोन उत्पादन को भी प्रोत्साहन मिलेगा।
इसके साथ ही, सरकार देश में एग्री इकोसिस्टम विकसित करने के लिए कृषि स्टार्टअप्स और ग्रामीण उद्यमियों को सुविधा प्रदान कर रही है। डिजिटल कृषि में खेती को अधिक उत्पादक, अधिक सुसंगत बनाने व समय और संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग करने की क्षमता है। ताप विद्युत संयंत्रों में बायोमास पेलेट के उपयोग से कार्बन रहित अर्थव्यवस्था के संबंध में भी ध्यान दिया जाएगा, जिससे किसानों को आय का एक अतिरिक्त स्रोत उपलब्ध हो सकेगा।
कृषि-ग्रामीण उद्यमों के लिए स्टार्ट-अप वित्तपोषित करने हेतु नाबार्ड के जरिये नए कोष की स्थापना, किसानों को 2.37 लाख करोड़ रु. एमएसपी के सीधे भुगतान द्वारा उनकी आय में वृद्धि करना, डाकघर बचत योजना से कभी भी-कहीं भी किसानों के बैंक खातों व डाकघर खातों को लिंक करना, अनुसूचित जाति/जनजाति वर्गों के किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान कर कृषि वानिकी को बढ़ावा देना जैसे अनेक ठोस कदम सरकार द्वारा उठाए गए हैं। वहीं छोटे किसानों को लाभ पहुंचाने हेतु 6,865 करोड़ रु. के खर्च से 10 हजार एफपीओ बनाने की योजना लागू की गई है।
खाद्य तेलों का बहुतायत में आयात किया जा रहा है। इसे लेकर सरकार कितनी चिंतित है?
खाद्य तेलों के आयात पर देश की निर्भरता को कम करने के लिए 11 हजार करोड़ रुपये के खर्च से राष्ट्रीय आयल पाम मिशन शुरू किया गया है। इसके माध्यम से पूर्वोत्तर के राज्यों तथा अंदमान-निकोबार द्वीप समूह क्षेत्र में आयल पाम की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जहां पर इसकी खेती की काफी गुंजाइश है। अगले कुछ वर्षों में इसके परिपूर्ण होने पर खाद्य तेलों के मामले में देश की आयात पर निर्भरता कम हो सकेगी, क्योंकि खाद्य तेलों में अधिकांश हिस्सा पाम आयल का ही है।
मैं यहां यह भी बता दूं कि भारत सरकार पोषक-अनाज का उत्पादन व खपत बढ़ाने के लिए वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष के रूप में मनाएगी, जिसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने भारत सरकार के प्रस्ताव पर की।
अधिक से अधिक युवा कृषि क्षेत्र की ओर आकर्षित हों, इसके लिए सरकार क्या प्रयास कर रही है?
कृषि क्षेत्र में निरंतर अंदर को पाटते हुए तथा नए-नए सुधारों के माध्यम से रोजगार सृजन किया जा रहा है। युवाओं के लिए कृषि व संबद्ध क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का सृजन करने पर केंद्र सरकार का पूरा ध्यान है। कृषि व संबद्ध क्षेत्र में स्टार्ट-अप इकोसिस्टम के निर्माण से अब तक वित्त वर्ष 2019-20 से 2021-22 के दौरान 799 स्टार्टअप्स को विभिन्न ‘नॉलेज पार्टनर’ व कृषि व्यवसाय ‘इन्क्यूबेटरों’ द्वारा चयनित किया गया है और संबंधित ‘नॉलेज पार्टनर’ व कृषि व्यवसाय ‘इन्क्यूबेटरों’ को कुल 3790.11 लाख रु. सहायता अनुदान राशि जारी की गई है। इससे कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन में मदद मिली है। इसी प्रकार, सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली की स्थापना और रखरखाव के लिए कुशल व अकुशल व्यक्तियों, विशेष रूप से बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के अवसर तैयार हुए है ।
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