भारत में विज्ञान के विकास और उसकी यात्रा को समझना, प्राचीन पूर्व-वैदिक युग से आधुनिक समय तक विज्ञान की प्रगति उसके विकास को समझ कर एक संक्षिप्त परिचय के साथ प्रस्तुत करना लेखक का उद्देश्य है। 'ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ साइंस इन इंडिया' पुस्तक (जेएनयू) पीएचडी के शोधार्थी सबरीश पीए द्वारा लिखित है। इसमें सर्वप्रथम विभिन्न भारतीय भाषाओं में उपलब्ध विशाल वैज्ञानिक साहित्य द्वारा समर्थित विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत के योगदान और गौरवशाली उपलब्धियों का नक्शा तैयार करने का सफल व सार्थक प्रयास किया गया है।
गरुड़ प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ साइंस इन इंडिया' पुस्तक में भारत के वैज्ञानिक इतिहास को समझाने के लिए तथ्यों, अवधारणाओं, विवरणों और तुलनाओं को एक कथा के रूप में शामिल करने का प्रयास किया गया है। लेखक इस अवधारणा का विरोध करते हैं कि पश्चिमी विज्ञान का विकास पूरी तरह से प्राचीन ग्रीक परंपरा या पश्चिम से जुड़ा हुआ है। उनका मानना है कि विज्ञान भारतीय दार्शनिक परंपराओं की देन है। यह विचार भारत और भारतीयों की राष्ट्रीय चेतना में पश्चिमी उपनिवेशवाद की शुरुआत के बाद से, पुर्तगालियों और विशेष रूप से, अंग्रेजों के आगमन के बाद से प्रभावी ढंग से उनके मन- मस्तिष्क में डाल दिया गया। विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध विविध वैज्ञानिक ज्ञान के आधार पर आज भी विभिन्न भषाओं में विज्ञान की उपस्थिति का प्रमाण देख सकते है – संस्कृत, पाली, अरबी, फारसी, तमिल, मलयालम और कई अन्य भाषा भारत की विविध वैज्ञानिक संस्कृति और विरासत का प्रमाण है।
पुस्तक का पहला खण्ड, ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ साइंस इन इंडिया प्राचीन भारत में विज्ञान और रसायन विज्ञान और धातु विज्ञान, भौतिकी और पृथ्वी विज्ञान, गणित और खगोल विज्ञान, चिकित्सा, इंजीनियरिंग विज्ञान, कृषि और पशु विज्ञान के संदर्भ में वैदिक विरासत की यादों को छूता है।
पुस्तक का दूसरा खण्ड पाठकों को मध्यकालीन और आधुनिक भारत में विज्ञान की ओर आकर्षित करता है, जिसमें समुद्री जहाजरानी संस्कृति के इतिहास को समर्पित अध्याय हैं; भारत की स्वदेशी शिक्षा प्रणाली और पश्चिम का 'बौद्धिक साम्राज्यवाद'; मध्यकालीन और ब्रिटिश भारत में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रयास; स्वतंत्र भारत में विज्ञान; आत्मनिर्भर भारत: तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए भारत की खोज आदि अध्याय है।
इस पुस्तक के माध्यम से भारतीय सभ्यता के विकास में वैज्ञानिक तर्क के महत्व को जान सकते है साथ ही यह पुस्तक इस बात पर भी जोर देती है कि भारत में विज्ञान और समाज कैसे एक साथ रह सकते हैं।
इस पुस्तक का विमोचन विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के केंद्रीय राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह जी और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. शांतिश्री धूलिपुडी पंडित जी ने 21 मार्च को जेएनयू परिसर में 2.30 बजे किया।
पुस्तक विमोचन के अवसर पर जेएनयू कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धूलिपुडी पंडित यह कहती है कि यह बेहद महत्वपूर्ण पुस्तक है जो वैज्ञानिक नवाचार की भारतीय सभ्यता की परंपरा के निर्माण में एक आदर्श बदलाव में योगदान कर सकती है। आशा है कि अन्य विद्वान इसका अनुसरण करेंगे।
पुस्तक garudabooks.com और प्रमुख बुकस्टोर्स पर उपलब्ध है।
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