नई दिल्ली के चितरंजन पार्क में रहने वाले रामावतार प्रसाद ने कोटा में मेडिकल की तैयारी करने वाले अपने पोते को फोन कर कहा कि तुम अपने साथियों के साथ फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को जरूर देखना। 75 वर्षीय रामावतार उन लोगों में से एक हैं, जो मानते हैं कि फिल्म देखने से बच्चे बिगड़ जाते हैं, लेकिन ‘द कश्मीर फाइल्स’ को वे खुद ही देखने के लिए कह रहे हैं। वे ऐसा क्यों कर रहे हैं! इसके उत्तर में उन्होंने कहा, ''आने वाले समय में 'द बंगाल फाइल्स', 'द केरल फाइल्स' जैसी फिल्में न बनें, इसके लिए नई पीढ़ी को तैयार करना होगा। ‘द कश्मीर फाइल्स’ युवाओं को जगाने वाली फिल्म है। इसलिए मैं अपने संपर्क में आने वाले सभी युवाओं से कह रहा हूं कि इसे अवश्य देखो। यदि पैसे न हों तो मुझसे ले लो, लेकिन देखो जरूर।''
बिहार के नालंदा में रहने वाले डॉ. कामेश्वर गुप्ता के दो बच्चे दिल्ली में प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने भी भी अपने बच्चों से कहा कि एक दिन भले ही न पढ़ना, लेकिन ‘द कश्मीर फाइल्स’ को अवश्य देखना।
इनसे अनुमान लगा सकते हैं कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर देश में किस तरह का वातावरण है। जम्मू, अमदाबाद, भोपाल, रांची, इंदौर जैसे शहरों में लोग जुलूस के साथ सिनेमा हॉल तक पहुंच रहे हैं। वडोदरा के सामाजिक कार्यकर्ता दीप अग्रवाल उन लोगों में शामिल हैं, जो समूह बनाकर लोगों को सिनेमा हॉल तक पहुंचा रहे हैं। कहते हैं,''इस फिल्म को देखने से हमें अपने बच्चों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए योजना बनाने में मदद मिलेगी।''
दर्शकों में ऐसा जोश है कि सिनेमा हॉल के अंदर 'भारत माता की जय', 'वन्दे मातरम्' जैसे नारे गूंज रहे हैं। अमेरिका में हिंदुओं ने 5,000 डॉलर खर्च करके ‘द कश्मीर फाइल्स’ को दिखाने के लिए टाइम स्क्वायर पर विशेष व्यवस्था की।
भारत के कुछ सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन गरीबी रेखा से नीचे वालों को मुफ्त में फिल्म दिखा रहे हैं। केशव क्लब, जनकपुरी, नई दिल्ली के अध्यक्ष सर्वेश महाजन ने तो सोशल मीडिया पर एक अपील जारी की है। इसमें उन्होंने कहा है कि छात्र और बुजुर्ग केवल 100 रु में और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले मुफ्त में फिल्म देखने के लिए केशव क्लब से संपर्क कर सकते हैं। केशव क्लब ने ऐसे बहुत सारे लोगों को फिल्म दिखा भी दी है।
फिल्म को देखकर लोग अपनी भावनाएं रोक नहीं पा रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी इस फिल्म को देखकर अपने आँसू नहीं रोक सके। वे बहुत ही भावुक हो गए। यही हाल हर दर्शक का है। सोशल मीडिया में ऐसे अनगिनत वीडियो हैं, जिनमें देखा जा सकता है कि लोग फिल्म को देखकर रो पड़े। एक दर्शक ने तो यहां तक कहा कि इसे फिल्म नहीं, देश की सचाई कहिए। वह सचाई, जिसे आज तक सेकुलरों ने बाहर नहीं आने दिया था। वह सचाई है भारत में हिंदुओं की स्थिति। 90 के दशक में रातों-रात एक ऐसा बवंडर खड़ा किया गया जिसने हिंदुओं को कश्मीर घाटी छोड़ने के लिए विवश कर दिया था। पड़ोस में रहने वाले मुसलमानों ने ही आतंकवादियों को पनाह दी और उनके जरिए हिंदुओं को भगाया। हिंदू लड़कियों और महिलाओं के साथ उनके घर वालों के सामने ही बलात्कार किया गया। जिसने भी अपनी बहन-बेटियों को बचाने का प्रयास किया, उन्हें मार दिया गया। मस्जिदों से घोषणा की जाती थी, ‘‘यदि हिंदू कश्मीर घाटी में जिंदा रहना चाहते हैं, तो वे मुसलमान बन जाएं। यदि जो मुसलमान नहीं बनना चाहते हैं, वे अपने घर की महिलाओं को यहीं छोड़कर कहीं चले जाएं।’’
25 जून, 1990 को गिरिजा टिक्कू नाम की कश्मीरी हिंदू की हत्या के बारे में आप जानेंगे तो सिहर जाएंगे। वे सरकारी स्कूल में प्रयोगशाला सहायक का काम करती थीं। आतंकवादियों के डर से वे कश्मीर छोड़कर जम्मू में रहने लगीं। एक दिन किसी ने उन्हें बताया कि स्थिति शांत हो गई है, बांदीपुरा आकर अपनी तनख्वाह ले जाएं। वे अपने किसी मुस्लिम सहकर्मी के घर रुकी थीं, तभी आतंकवादी आए और उन्हें घसीट कर ले गए। वहां के स्थानीय मुसलमान चुप रहे, क्योंकि किसी काफिर की परिस्थितियों से उन्हें क्या लेना-देना। गिरिजा का सामूहिक बलात्कार किया गया और जिंदा ही उन्हें आरी से चीर दिया गया।
ऐसे ही 4 नवंबर, 1989 को न्यायमूर्ति नीलकंठ गंजू को दिनदहाड़े उच्च न्यायालय के सामने मार दिया गया। उन्होंने आतंकी मकबूल भट्ट को इंस्पेक्टर अमरचंद की हत्या के मामले में फांसी की सजा सुनाई थी। 1984 में न्यायमूर्ति नीलकंठ के घर पर बम से भी हमला किया गया था। उनकी हत्या कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या की शुरुआत थी।
फिल्म में इन सारी घटनाओं को दिखाने का प्रयास किया गया है। अब तक ये घटनाएं दबी हुई थीं। फिल्म के जरिए लोगों तक पहुंच रही हैं। इसलिए लोग इसे देखने के लिए उमड़ रहे हैं।
समाचार संपादक, पाञ्चजन्य | अरुण कुमार सिंह लगभग 25 वर्ष से पत्रकारिता में हैं। वर्तमान में साप्ताहिक पाञ्चजन्य के समाचार संपादक हैं।
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