नर्मदा साहित्य मंथन "राष्ट्र सर्वोपरि" की भावना रखने वाले साहित्यकारों को एकत्र करने का एक मंच हैं। साथ ही "सार्थक संवाद" का भी अवसर है। कार्यक्रम में पत्रकारिता के विद्यार्थियों की उपस्थिति से स्पष्ट है कि यह नर्मदा साहित्य मंथन वरिष्ठ साहित्यकारों एवं युवा साहित्यकारों के मध्य सेतु का कार्य करेगा। उक्त विचार प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक जे नंदकुमार ने नर्मदा साहित्य मंथन के उद्घाटन समारोह में व्यक्त किए।
“नर्मदा साहित्य मंथन” का शुभारम्भ महेश्वर स्थित नर्मदा रिट्रीट में हुआ। प्रात: 9 बजे माँ नर्मदा के पवित्र जल का कलश भरकर कार्यक्रम स्थल पर प्रतिष्ठित किया गया। इसके बाद मंचस्थ अतिथियों ने दीप प्रज्वल्लित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। उद्घाटन सत्र में साहित्य अकादमी मध्यप्रदेश के निदेशक डॉ विकास दवे ने कार्यक्रम की संकल्पना के बारे में जानकारी दी। डॉ विकास दवे ने कहा कि इंदौर जैसे महानगर को छोड़कर महेश्वर जैसे छोटे स्थान पर कार्यक्रम रखने से सबके मन में स्थान चयन को लेकर सहज ही प्रश्न उठ सकते हैं, लेकिन यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अतीत में इसी महेश्वर से भारत के विमर्श का निर्माण हुआ है। इस कार्यक्रम का विमर्श चाहे छोटा हो, लेकिन इसका निष्कर्ष बहुत बड़ा होने वाला है।
उद्घाटन सत्र के बाद कई सत्रों का क्रम चलता रहा। सत्यता के मुखौटे में असभ्यता के कार्य विषय पर प्रशांत पोल, जनजातीय क्षेत्रों में बढ़ते अलगाववादी षड्यंत्र विषय पर डॉ लक्ष्मण मरकाम, अनुसूचित जाति के प्रश्न और सामाजिक उत्तरदायित्व विषय पर डॉ राजेश लाल मेहरा एवं मोहन नारायण, स्त्री विमर्श के भारतीय प्रतिमान विषय पर डॉ कविता भट, पटकथा लेखन पर संजय जी मेहता, आज़ाद जैन जी व मनोज शर्मा, सनातन धर्म में मन्दिर की अवधारणा विषय पर पंकज जी सक्सेना ने विचार रखे। रात में कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ, जिसमें डॉ राहुल अवस्थी, डॉ रामकिशोर उपाध्याय एवं डॉ शम्भु मनहर ने काव्यपाठ कर श्रोताओं के हृदय पर अमिट छाप छोड़ी।
कार्यक्रम में मालवा-निमाड़ के साहित्यकार, पत्रकारिता के विद्यार्थी एवं साहित्य के श्रोता बढ़ी संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम के दूसरे दिन भी अनिवार्य विषयों पर सत्रों के क्रम चलेंगे। इसकी सम्पूर्ण जानकारी विश्व संवाद केंद्र मालवा एवं नर्मदा साहित्य मंथन के सोशल मीडिया पर उपलब्ध रहेगी।
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