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होम भारत

इमरान खान का जाना तय

by WEB DESK
Mar 2, 2022, 06:30 am IST
in भारत, दिल्ली
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पाकिस्तान में विपक्षी दलों ने इमरान खान सरकार को गिराने की पूरी तैयारी कर ली है। सरकार के मददगार माने जाने वाले संसद अध्यक्ष भी विपक्ष के निशाने पर हैं। लामबंद विपक्ष दो बड़े विरोध प्रदर्शन करने वाला है। एक 27 फरवरी को कराची से, दूसरा 23 मार्च को शुरू होगा। इसी दौरान संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने की तारीख घोषित की जाएगी 

 महेश दत्त

पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख रशीद ने 22 फरवरी की शाम एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और अपने प्रधानमंत्री को सलाह दी कि उन्हें अपनी पार्टी के असंतुष्ट धड़े तरीन ग्रुप के साथ बातचीत कर समझौता कर लेना चाहिए। इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब उनसे पूछा गया कि क्या संभावित अविश्वास प्रस्ताव को लेकर सेना से कोई संकेत मिला है, तो उनका जवाब शायराना था:
‘‘पल्ला मार के बुझा गई दीवा 
ते अंख नाल गल कर गई’’

पिछले सप्ताह से पाकिस्तान में राजनीतिक घटनाक्रम बहुत तेजी से बदल रहा है। शहबाज शरीफ, जरदारी और मौलाना फजल-उर-रहमान के बीच मुलाकातें हो चुकी हैं और अविश्वास प्रस्ताव को लेकर रणनीति तय की जा चुकी है। यह भी तय पाया गया है कि अविश्वास प्रस्ताव को लेकर पंजाब के चौधरी बंधु और सिंधी एमक्यूएम को अलग रखा जाएगा। तरीन ग्रुप को अपने साथ मिला लिया गया है। जहांगीर तरीन ने शुरुआत में कहा था कि उनके सदस्यों को स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना चाहिए। लेकिन पीएमएल- नवाज का मानना था कि बिना उनकी पार्टी के चुनाव चिह्न यानी शेर को लिए जनता में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे सदस्यों को वोट लेने में मुश्किल हो सकती है। इस पर तरीन ग्रुप के सदस्यों ने स्वतंत्र रूप से विपक्षी दलों से अपने टिकट के लिए शर्तों पर बात की और तमाम रणनीति तय हो गई। तरीन ग्रुप के सदस्यों के साथ आने के बाद अविश्वास प्रस्ताव को पारित करने के लिए जरूरी संख्या पूरी हो जाती है। ऐसे में पंजाब के चौधरी बंधुओं और एमक्यूएम के हाथों ब्लैकमेल होने का कोई बहुत औचित्य नहीं रह जाता। माना जाता है कि जैसे ही चौधरी बंधुओं और एमक्यूएम को यह ज्ञात होगा कि अविश्वास प्रस्ताव के लिए जरूरी मत विप  क्ष के पास पहले ही मौजूद हैं, ऐसे में उनको अपने साथ मिलाने की शर्तें बहुत कड़ी नहीं होंगी।

 

इमरान के बेटे पर मुकदमा 

इमरान खान का सौतेला बेटा मूसा खाबर

इस्लाम में शराब हराम है। लेकिन अगर कोई पाकिस्तान में शराब पिए या शराब ले जाता हुआ पकड़ा जाए, तो पुलिस क्या कार्रवाई करेगी? शराब पीने वाले व्यक्ति की जांच करेगी, शराब की बोतलें जब्त करेगी और प्राथमिकी दर्ज करेगी। लेकिन पाकिस्तान में व्यावहारिक जीवन में इसका बिल्कुल उलट होता है। यदि ऐसे किसी भी व्यक्ति के पास विदेशी शराब पकड़ी जाती है तो उसे जब्त किया जाता है, आरोेपी से 5,000 से 10,000 रुपये वसूल कर छोड़ दिया जाता है। यानी पुलिस वालों की शाम रंगीन। एफआईआर की नौबत तभी आती है, जब शराब भारी मात्रा में बरामद हो। 

22 फरवरी की रात दो बजे लाहौर के थाना मुगलपुर के प्रशिक्षु एएसआई शाहबाज खान ने नाके पर एक होंडा सिविक कार को रोका। कार में तीन लोग सवार थे। अहमद, जो गाड़ी चला रहा था, मूसा खाबर, जो अहमद के साथ बैठा था और गाड़ी की पिछली सीट पर बैठे शख्स का नाम भी अहमद ही था। जांच करने पर कार के अंदर शराब मिली। परिचय पूछे जाने पर बताया गया कि मूसा खाबर प्रधानमंत्री इमरान खान का सौतेला बेटा है। आप समझ सकते हैं कि एक प्रशिक्षु एएसआई को बीच सड़क पर प्रधानमंत्री के बेटे को पकड़ने पर कैसा महसूस हुआ होगा। स्पष्ट है कि उसे अपनी नौकरी खतरे में नजर आई होगी। सुबह आठ बजे गालिब मार्केट, लाहौर के एएसआई अमजद अली ने इसकी एफआईआर दर्ज की, जिसमें बताया गया कि कार में देसी मूनलाइट नामी शराब की बोतलें बरामद की गर्इं। कल्पना कीजिए कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का बेटा देसी ठर्रा पीता है।

कार में रात दो बजे मिली शराब की प्राथमिकी सुबह आठ बजे दर्ज की गई। साफ है कि इन छह घंटों में न जाने कहां-कहां फोन किए गए होंगे और अगली कार्यवाही के निर्देश लिए गए होंगे। एफआईआर में बताया गया कि कार की पिछली सीट पर बैठे व्यक्ति की गोद में शराब की बोतलें मिली थीं। कानून के अनुसार, कार में मौजूद सभी लोगों के विरुद्ध एफआईआर होनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कार चलाने वाले की मेडिकल जांच की गई और कार के पीछे बैठे व्यक्ति के खिलाफ शराब की बोतलें रखने का आरोप लगाया गया। प्रधानमंत्री के सौतेले बेटे मूसा खाबर को छोड़ दिया गया।

इस घटना को पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य में रखकर देखे जाने की आवश्यकता है। कोई है जो प्रधानमंत्री को यह संदेश दे रहा है कि वह उसके खिलाफ कुछ भी कर सकता है। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को पाकिस्तानी समाज में उसकी असली जगह, असली औकात दिखाई जा रही है। प्रधानमंत्री के बेटे की कार में देसी शराब की बोतलें दिखाया जाना उसी तरफ इशारा करता है। समझने वाले इस घटना में यह देख सकते हैं कि वह कौन है जो पाकिस्तान में वास्तविक रूप से सत्ता का भोग लगाता है।

 

लॉन्ग मार्च में विपक्षी सहयोग
पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट यानी पीडीएम ने यह भी तय किया है कि 27 फरवरी को कराची से शुरू होने वाले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के लॉन्ग मार्च को सहयोग दिया जाएगा। विपक्ष द्वारा अगले एक महीने में तय किए गए दो लॉन्ग मार्च में से यह पहला है। दूसरा लॉन्ग मार्च 23 मार्च से पाकिस्तान मुस्लिम लीग ने तय कर रखा है। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को इस तरह की विपक्षी राजनीति करने का अच्छा-खासा अनुभव है। यह तय किया गया है कि हर शहर में इस मार्च का स्वागत किया जाएगा और रणनीतिक तौर से हर प्रकार का सहयोग उपलब्ध कराया जाएगा।

जहां एक तरफ इसकी जिम्मेदारी पंजाब में पाकिस्तान मुस्लिम लीग उठाएगी तो दूसरी तरफ खैबर पख्तूनख्वा में जमात-ए-इस्लामी का फजलुर रहमान का धड़ा। इस मार्च को लेकर यह फैसला है कि इस्लामाबाद पहुंच कर इसे किसी धरने का रूप नहीं दिया जाएगा। लॉन्ग मार्च जीटी रोड के रास्ते इस्लामाबाद की तरफ कूच करेगा। इस्लामाबाद से पहले रावलपिंडी पहुंचकर, वहां के लियाकत बाग में एक समारोह किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस लियाकत बाग में ही पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की नेता और आसिफ अली जरदारी की पत्नी बेनजीर भुट्टो की हत्या की गई थी।

इस्लामाबाद पहुंचकर यह मार्च रेड जोन में प्रवेश नहीं करेगा। इस्लामाबाद के मध्य में स्थित इस रेड जोन को ‘डिप्लोमेटिक एनक्लेव’ भी कहा जाता है, जहां की सुरक्षा व्यवस्था बहुत सख्त है। अधिकतर देशों के दूतावास इसी क्षेत्र में हैं। अभी तक यह तय नहीं किया गया है कि इस्लामाबाद पहुंचकर जब यह प्रदर्शन एक समारोह का रूप लेगा, उस समय सभी विपक्षी पार्टियां इस समारोह को संबोधित करेंगी या नहीं। लेकिन यह तय है कि इस समारोह के दौरान अविश्वास प्रस्ताव संसद में दाखिल करने की तारीख घोषित कर दी जाएगी। यह माना जा रहा है कि यह समारोह 8 या 9 मार्च को होगा और 17 मार्च से पहले अविश्वास प्रस्ताव नेशनल असेंबली में प्रस्तुत कर दिया जाएगा। अगले दस दिनों के भीतर इस पर मतदान होगा। सूत्र बताते हैं कि यदि अविश्वास प्रस्ताव पारित हुआ तो इसके तुरंत बाद उसी समय संसद अध्यक्ष असद कैसर के खिलाफ भी अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा।


इमरान खान सरकार संसद में 180 सदस्यों के समर्थन का दावा कर रही है, लेकिन उसके पास सहयोगियों समेत 178 सदस्य हैं। विपक्ष के पास 162 सदस्य हैं, जिसमें अली वजीर शामिल नहीं हैं। सरकार गिराने के लिए विपक्ष को 172 वोटों की जरूरत है यानी विपक्ष के पास 10 वोट कम हैं। 22 फरवरी की शाम अंतिम सूचना आने तक विपक्ष ने अतिरिक्त 15 से 16 वोट निश्चित कर लिए थे


 

नई सरकार का स्वरूप तय नहीं
सरकार के सहयोगी दल के सदस्य जब अविश्वास प्रस्ताव में विपक्ष के साथ मतदान करेंगे तो पूरी संभावना है कि इमरान खान की पार्टी उन्हें दल-बदल कानून के तहत बेदखल करवाएगी। लेकिन सरकार गिरने के साथ ही नई सरकार का गठन होना है और माना जाता है कि चुनाव शीघ्र-अतिशीघ्र कराए जाएंगे, जिसमें इन सदस्यों को फिर से चुनाव में भाग लेने का मौका मिल जाएगा। यह देखते हुए कि विपक्षी दल आने वाली सरकार का स्वरूप अभी तक तय नहीं कर पाए हैं, एक संभावना यह भी है कि विपक्ष सरकार बनाना ही नहीं चाहे। यदि संसद नेता चुनने में असफल रहती है तो सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दी जा सकती है, जिसके तहत शीर्ष अदालत एक अंतरिम सरकार का गठन कर देगी, जो मात्र चुनाव कराने के लिए होगी। कानूनी रूप से इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता।

इस संभावना की तरफ ध्यान आकर्षित करने के पीछे यह संशय है कि तमाम बातचीत होने के बावजूद विपक्षी दलों ने अभी तक अपने भावी नेता का चुनाव क्यों नहीं किया? संभव है कि संसद के बचे हुए डेढ़ साल के लिए किसी भी दल की कोई भी सरकार बनाकर चलाने का भार नहीं लेना चाहेगा। पाकिस्तान जिन दुष्कर परिस्थितियों का सामना कर रहा है, उनसे निकालने के लिए डेढ़ साल का समय किसी भी सरकार के लिए अपर्याप्त है। ऐसे में यदि डेढ़ साल बाद चुनाव कराए जाते हैं तो अंतरिम समय में जनता पर बढ़ता हुआ आर्थिक बोझ आगामी चुनाव में सत्तारूढ़ दल पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा।

विपक्ष ने जुटाए पर्याप्त वोट
हालांकि इमरान खान सरकार संसद में 180 सदस्यों के समर्थन का दावा कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसके पास सहयोगियों समेत 178 सदस्य हैं। दूसरी तरफ, विपक्ष के पास 162 सदस्य हैं, जिसमें अली वजीर शामिल नहीं हैं। सरकार गिराने के लिए विपक्ष को 172 वोटों की जरूरत है यानी विपक्ष के पास 10 वोट कम हैं। 22 फरवरी की शाम अंतिम सूचना आने तक विपक्ष के पास 15 से 16 वोट निश्चित किए जा चुके थे। मतलब स्पष्ट है, सरकार गिराने के लिए आवश्यक वोट विपक्ष के पास पहले ही मौजूद है। चौधरी बंधुओं के आने और एमक्यूएम के सदस्यों के जुड़ने से इस संख्या में बढ़ोतरी तो हो सकती है, लेकिन विपक्ष ने सरकार के बचने की उम्मीद पहले ही खत्म कर दी है। खबर तो यह भी है कि सरकार का सहयोग कर रहे कम से कम दो दल साथ छोड़ने की तैयारी में हैं। 

अली वजीर पख्तून तहफ्फुज मूवमेंट पार्टी के नेता हैं और उन्हें इमरान सरकार ने बेतुके कारणों से जेल में डाल रखा है। इतना ही नहीं, संसद के सत्र के दौरान कानून के मुताबिक अली वजीर को संसद में आने की अनुमति होनी चाहिए, लेकिन अध्यक्ष इसके लिए जरूरी अनुमति नहीं दे रहे हैं। संसद के अध्यक्ष का सरकार के प्रति नरम रुख होने के कारण ही विपक्ष उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहता है। व्यक्तिगत मुलाकातों में अध्यक्ष को कई बार यह कहते पाया गया है कि वे 8-10 वोट कभी भी दाएं-बाएं कर सकते हैं। बता दें कि स्पीकर असद कैसर तंबाकू लॉबी के बल पर चुनाव जीते थे और हमेशा उनके गैरकानूनी उद्योग को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका निभाते हैं। पाकिस्तान में नकली सिगरेट तंबाकू का व्यापार चलन में है।

कुछ सप्ताह पहले हमने आईएसआई के निदेशक जनरल फैज हमीद के बारे में बताया था। आपको यह भी याद होगा कि उनके तबादले को लेकर ही इमरान सरकार की पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष से पहले अनबन हुई थी। फैज हमीद अब तक इमरान खान की तमाम मुश्किलों को हल करने में अपनी ओर से सहयोग दे रहे थे, जिसके कारण सरकार चिंता मुक्त थी। लेकिन अब उनका तबादला पेशावर किया जा चुका है, जहां वे कोर कमांडर बने हैं। दो दिन पहले पाकिस्तान मुस्लिम लीग की प्रवक्ता मरियम औरंगजेब ने आरोप लगाया कि इमरान सरकार हाल ही में पेशावर में नियुक्त किए गए एक अधिकारी का इस्तेमाल करते हुए वहां से संसद सदस्यों को फोन करवा रही है ताकि वे विपक्ष का साथ न दें। लेकिन सूत्र बताते हैं कि जब इसकी जांच की गई तो पाया गया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है।

मरियम औरंगजेब का बयान यह सुनिश्चित करने के लिए था कि यदि ऐसे किसी फोन की आशा भी हो तो वह खत्म हो जाए। अभी तक सेना की ओर से किसी भी विपक्षी दल को इस संबंध में फोन नहीं किया गया है कि उन्हें क्या करना है। यहां तक कि राजनीतिक परिदृश्य में मौजूद ऐसे नेता जो सेना के निर्देश पर काम करते रहे हैं, जब उन्होंने सेना में अपने संपर्कों से पूछा कि उन्हें क्या करना है, तो उन्हें यही बताया गया कि वे अपने विवेकानुसार काम करें। एक समय था, जब इमरान खान सेना के लाडले थे। इमरान जो कुछ भी चाहते थे, सेना उनके लिए वह सब करने के साधन उपलब्ध करा देती थी। इमरान और सेना का संबंध कुछ ऐसा था, जिसके लिए कहा जा सकता था- ‘अनोखा लाडला खेलन को मांगे चांद।’ लेकिन समय के साथ वक्त बदल गया और अब मोहरों के बदलने की बारी है।   

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