रूस की यूक्रेन पर भीषण बमबारी और कई शहरों में रूसी सैनिकों की चढ़ाई के बीच भारतीयों का सुरक्षित भारत लौटना जारी है। वहां पढ़ रहे 20 हजार से ज्यादा भारतीय छात्रों में से अधिकांश लौटने की प्रक्रिया में हैं। उनके अलावा वहां बड़ी संख्या में बसे भारतीय परिवार भी भारत आतीं उड़ानों पर जैसे—तैसे सवार हो रहे हैं। लेकिन उनका वहां अब तक का जमाया काम—धंधा सब चौपट जैसा हो चला है।
यूक्रेन की राजधानी कीव व अन्य शहरों से मिले समाचारों से पता चला है कि भारतीय परिवार अपने संपत्ति, मकान, दुकान, होटल, कारोबार सब जैसे का तैसा छोड़कर, अपने पड़ोसियों को उसकी चाबी थमाकर लौट रहे हैं। कुछ तो अपने मकान और गाड़ियों औने—पौने दामों पर बेचकर किसी तरह यूक्रेन से भारत का रुख कर रहे हैं। वे अपने घरों आदि की चाबी पड़ोसियों को थमाकर यही कह रहे हैं कि 'अब ये तुम्हारे हवाले है, लौटकर आए तो हमें दे देना'।
यह कहानी उन कई भारतीयों की है जो सुनहरे भविष्य की तलाश में वर्षों पहले यूक्रेन जाकर अपने काम को जमाने और उसे बढ़ाने में लगे थे। ऐसे ही कुछ दोस्त साथ मिलकर काम करने के उद्देश्य से कीव गए थे और वहां कुछ कारोबार शुरू किया था। वे वहीं बस गए और उनका परिवार भी वहीं का हो गया। लेकिन रूस के हमला बोलने के साथ सब चौपट होने लगा। ये दोस्त किसी तरह यूक्रेन सीमा पार करके पोलैंड पहुंचकर भारत की उड़ान का इंतजार करने लगे।
आंध्र प्रदेश से यूक्रेन गए श्रीकांत फिलहाल पोलैंड पहुंचे हैं। यूक्रेन से पोलैंड आने के लिए उन्हें एक दिन से ज्यादा सीमा पर इंतजार करना पड़ा था। किसी तरह उन्हें ट्रांजिट वीसा नसीब हुआ। उनके पास जो कार भी उसे वे पोलैंड में ही किसी भी दाम बेचने की बात कर रहे हैं। अन्यथा, वे कहते हैं, इसे ऐसे ही छोड़कर हवाई जहाज में बैठ जाएंगे।
श्रीकांत का कहना है कि वे अपने घर तथा रेस्टोरेंट की चाबियां अपने पड़ोसियों के हवाले कर आए हैं। उनके अनुसार, उनके रेस्टोरेंट को एक बंकर बना दिया गया है। वे अपने यूक्रेनियाई दोस्तों से कह आए हैं कि वे उस बंकर में छिपकर प्राणरक्षा करें। श्रीकांत नहीं जानते कि अब वे कभी लौटकर वहां जा भी पाएंगे कि नहीं।
श्रीकांत के लिए घर से निकलना एक बड़े सदमे जैसा है। वे 8 साल पहले भारत से यूक्रेन गए थे। सोचा था कि अब परिवार के साथ यहीं काम—धंधा जमाकर रहेंगे। जिंदगी सुधर जाएगी। लेकिन अब, श्रीकांत को नहीं पता आगे क्या होगा। वे अपनी सारी कमाई ऐसे ही छोड़कर भारत लौटने को मजबूर हैं।
श्रीकांत का कहना है कि वे अपने घर तथा रेस्टोरेंट की चाबियां अपने पड़ोसियों के हवाले कर आए हैं। उनके अनुसार, उनके रेस्टोरेंट को एक बंकर बना दिया गया है। वे अपने यूक्रेनियाई दोस्तों से कह आए हैं कि वे उस बंकर में छिपकर प्राणरक्षा करें। हालात सही होने पर वे लौट आएंगे, नहीं तो वे ही इस काम को आगे बढ़ाएं। श्रीकांत नहीं जानते कि अब वे कभी लौटकर वहां जा भी पाएंगे कि नहीं।
कुछ इसी तरह की कहानी है मुंबई के अभिनव की। वे बताते हैं कि वे 3 साल पहले ही यूक्रेन में अपना काम खड़ा करने के लिए गए थे। वे वहां बेकरी चलाते थे। लेकिन युद्ध शुरू होने पर उन्हें इतना वक्त भी नहीं मिलर कि घर में रखे पैसे या बैंक खाते में जमा पैसे निकालकर ला पाते।
वे अपनी बेकरी भी खुली छोड़ आए हैं, क्योंकि उसमें बंकर बना दिया गया था। वहां के उनके कई जानने वाले परिवार उनकी बेकरी में बने बंकर में जान बचाने के लिए रहने लगे हैं।
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