डॉ. आनंद पाटील
देश में किसी की हत्या केवल इसलिए होने लग जाए कि वे अपने आपको ‘हिन्द’ कहते-समझते-लिखते हैं, तो अत्यंत चिंतित होकर कहना पड़ेगा कि आपके सामने कट्टरपंथी ‘बारूद का ढेर’ तैयार है। कर्नाटक के शिमोगा में हुई 26 वर्षीय हिन्दू युवक हर्ष की बर्बर हत्या को इसी धरातल पर देखा-समझा जा सकता है। उनकी हत्या के उपरांत यह तथ्य उभर कर आया है कि हर्ष सोशल मीडिया पर अपना नाम हर्ष ‘हिन्दू’ लिखा करते थे और इसी मुखरता ने उनके प्राण ले लिये। राष्ट्रचेता हिन्दू कार्यकर्ताओं की हत्या के पीछे दो कारण सहजत: स्पष्ट हैं, हिंदुओं की अतिशय सहिष्णुता और दूसरे, मजहबी मानसिकता से ग्रस्त जिहादियों की सामूहिक एकता एवं शक्ति-परीक्षण की चरम पराकाष्ठा। हर्ष की हत्या से देश के विभिन्न हिस्सों में और सोशल मीडिया पर आक्रोश दिख रहा है और #जस्टिसफॉरहर्ष हैशटैग लगातार ट्रेंड कर रहा है। लोग न्याय की मांग कर रहे हैं।
20 फरवरी की रात शिमोगा के भारती नगर में कामत पेट्रोल पंप के पास एनटी रोड पर हर्ष ‘हिन्दू’ की चाकू गोदकर हत्या कर दी गई। वे बजरंग दल के सक्रिय एवं सुसंस्कारी कार्यकर्ता थे। कर्नाटक में उठे हिजाब विवाद के दौरान विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में ड्रेस कोड की दृष्टि से एकरूपता की मांग करने हेतु भगवा अंगवस्त्र पहन कर विरोध प्रदर्शन करने वाले राष्ट्रचेता युवाओं में हर्ष को देखा गया था।
मजहबी कट्टरपंथियों की धमकियां
घटना की तह एक सनसनीखेज खुलासे से खुल रही है कि हर्ष के द्वारा सोशल मीडिया पर कथित ‘ईशनिंदा’ की पोस्ट के उपरांत 31 दिसंबर, 2015 को मजहबी कट्टरपंथियों ने उनकी हत्या की धमकियां दी थीं। खुलासों में निकल कर आए तथ्यों में फेसबुक पर इस्लामिक पेज ‘मैंगलोर मुस्लिम’ तथा एक अन्य फेसबुक पेज ‘करावली मुस्लिम्स’ पर साझा संदेश देखे जा सकते हैं। वहीं, 3 जनवरी, 2016 को ‘शिमोगा मुस्लिम्स’ नामक फेसबुक पेज पर इसी तरह का एक संदेश साझा किया गया था।
हर्ष की हत्या के बाद स्थानीय माध्यमों में कहा जा रहा है कि उसे निकटवर्ती क्षेत्रों के मजहबी मुसलमानों से धमकियां मिली थीं और गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी गई थी। स्थानीय लोगों का यह कहना अचम्भित करने वाला है कि गाय खाने वालों को गौ-सेवक भी हलाल करने के लिए उपयुक्त प्रतीत होने लगे हैं। स्मरणीय है कि हर्ष गो-सेवा एवं गो-रक्षा के कार्योें में भी सक्रिय थे।
स्थानीय मीडिया में हर्ष के पिता ने यह खुलासा किया है कि ‘हत्या से पूर्व 8 बार हर्ष की हत्या के प्रयास हो चुके थे। हर्ष को मारने के लिए 10 लाख की सुपारी भी दी गई थी।’ हर्ष के पिता की बातचीत से स्पष्ट होता है कि गौसेवा और हिन्दू धर्म रक्षार्थ सक्रिय सच्चरित्र युवक की सक्रियता से मजहबी उन्मादियों को परेशानी थी। अत: उसकी हत्या कर दी गई।
हर्ष के पिता ने बताया कि ‘20 फरवरी को रात करीब आठ बजे वह एक होटल में खाना खाने गया था। लगभग साढ़े नौ बजे मुझे फोन आया कि कुछ मुस्लिम बदमाशों ने हर्ष पर कामत पेट्रोल बंक के पास एनटी रोड पर घातक हथियारों से हमला किया है।’ हर्ष के पिता और बहन जब अस्पताल पहुंचे तो हर्ष खून से लथपथ पड़ा हुआ था। ज्ञातव्य है कि हर्ष का परिवार पिछड़ी जाति से है और अत्यंत गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहा है। उसके पिता जीवनयापन के लिए दर्जी का काम करते हैं। हर्ष भी यथावश्यकता अपने कामकाज से फुर्सत पाने पर अपने पिता का काम में हाथ बंटाता था।
हर्ष की बहन उसके चरित्र को रेखांकित करते हुए बताती हैं कि ‘हर्ष भारतीय डाक कार्यालय में संविदा पर कार्यरत था। साथ ही, वह बजरंग दल का सक्रिय कार्यकर्ता था और धार्मिक कार्यों के साथ-साथ सहायतार्थियों की सेवा किया करता था। इतना ही नहीं, दुर्घटनाग्रस्त लोगों को खून देने के लिए वह सदैव तत्पर रहता था।’
मजहबी उन्माद के विरोधी
हिन्दू जनजागृति समिति, कर्नाटक के राज्य प्रवक्ता मोहन गौड़ा ने संदर्भित विषय पर बातचीत करते हुए हर्ष के चरित्र और कर्मठता पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘हर्ष जन्म एवं कर्म से हिन्दू था। अहिंसा का पक्षधर परंतु मजहबी उन्माद का सख्त विरोधी। शिव और सनातन में इतना विश्वास कि वक्ष एवं हाथ पर ओइम के टैटू गुदवा रखे थे। सोशल मीडिया पर बहुत सक्रिय था और हिजाब विवाद के दौरान भी फेसबुक पर कई पोस्ट लिखे थे। एक पोस्ट में उसने लिखा था कि 'शिमोगा में अब कोरोना की लहर नहीं, केसरी लहर है।’ और प्रतिक्रिया में असलम पाशा नामक मजहबी युवक ने लिखा था कि ‘इस केसरी लहर के लिए वैक्सीन भी आ चुकी है। एक सप्ताह में इस लहर को खत्म करेंगे।’ और एक सप्ताह बाद यह हत्या हुई है।
केरल की तर्ज पर हत्याएं
केरल के साथ-साथ कर्नाटक में राष्ट्रचेता हिन्दू कार्यकर्ताओं की हत्या का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। राष्ट्रचेता हिन्दू कार्यकर्ताओं की हत्या की दृष्टि से केरल और कर्नाटक हॉटस्पॉट बन रहे हैं। बातचीत के दौरान मोहन गौड़ा ने बताया कि ‘2013-18 तक कर्नाटक में जिस प्रकार 23 हिन्दू कार्यकर्ताओं की बर्बर हत्या हो चुकी हैं, उसी प्रकार इस हत्या में भी वही तरीका अपनाया गया है। इनमें 12 से अधिक मामलों में पीएफआई का नाम आया है। कर्नाटक में होने वाली हत्या में एक ही प्रकार के हथियारों का प्रयोग किया गया है। अब तक 12 संदिग्धों को गिरफ्तार किया गया है और हमेशा की ही तरह सभी मुस्लिम हैं। इनमें से 2 संदिग्धों पर पहले से ही कई मामले दर्ज हैं और ये राउडीशीटर करार दिए जा चुके हैं। एनआईए ने 2016 में रुद्रेश की हत्या की जांच की थी और पीएफआई की संलिप्तता उजागर हुई थी। उसी जांच के दौरान एनआईए ने खुलासा किया था कि हत्यारे केरल में प्रशिक्षण प्राप्त हैं। ऐसे हत्यारों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के अंतर्गत कार्रवाई होनी चाहिए ताकि इन्हें जमानत न मिल सके परंतु यूएपीए के अंतर्गत कार्रवाई न करने के कारण ऐसे जघन्य अपराधी हर बार जमानत पर छूट जाते हैं और इस प्रकार हमारे हिन्दू युवाओं की हत्या हो जाती हैं।’
जिहादियों का शक्ति परीक्षण
विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने संदर्भित हत्या पर बातचीत के दौरान कहा कि ‘यह घटना जिहादियों के शक्ति-परीक्षण की पराकाष्ठा भी है और हिन्दुओं में आतंक पैदा करने की मानसिकता की परिचायक भी। जब तक पीएफआई, एसडीपीआई जैसी संस्थाओं पर अंकुश नहीं लगाया जाएगा और उनकी सहयोगी पार्टियां एवं नेता-चाहे राहुल-प्रियंका की सोच हो या दारुल उलूम देवबन्द की, जो कि किसी-न-किसी रूप में जिहादी-आतंकियों के सहयोगी हैं और न्यायालय से दोषी साबित होने के बावजूद उन्हें प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से बार-बार समर्थन और सहयोग देते हैं, बंद नहीं होगा, तब तक हिन्दुओं की ऐसी ही स्थिति रहेगी।’
यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि हिन्दुओं की ऐसी हत्या बिना किसी पूर्वपीठिका और एजेंडा के नहीं होतीं। भटके हुए समुदाय के ऐसे युवा कितनी सहजता से राष्ट्रचेता हिन्दू युवकों को ‘हलाल’ कर देते हैं। विनोद बंसल ने पीएफआई, एसडीपीआई, दारुल उलूम देवबन्द के तथाकथित सेकुलर सहयोगियों की तुष्टीकरण और वोटबैंक की राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि ‘इन लोगों के समर्थन एवं सहयोग से बलवती होने वाली मानसिकता के कारण ही हिन्दुओं पर हमले और उनकी हत्या हो रही हैं। ऐसी संस्थाओं पर अविलंब अंकुश लगाया जाना चाहिए अन्यथा हिन्दू समाज को अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं ही चिंता करनी पड़ेगी। बजरंग दल के कार्यकर्ता इस बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे। हम प्रदर्शन कर रहे हैं कि इन संस्थाओं पर अविलंब प्रतिबंध लगाया जाए। इनकी गतिविधियां अब कहीं संदेहास्पद नहीं हैं, अपितु काफी हद तक स्पष्ट हैं। हम लोग स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और मजहबी सोच के साथ हिजाब को लेकर विवाद खड़ा किया जा रहा है। हिजाब विवाद जिहादी मानसिकता से ही उपजा और इस हत्या के पीछे कहीं-न-कहीं हिजाब विवाद है। अब जिहादी मानसिकता से देश को स्वतंत्र करना अनिवार्य है।’
हिजाब विरोधी स्टेट्स पर दिलीप को चाकुओं से गोदाकर्नाटक के दावणगेरे जिले के मालेबेन्नूर कस्बे में 9 फरवरी को एक हिंदू युवक दिलीप मालागिमाने द्वारा हिजाब पर पाबंदी का समर्थन करते हुए व्हाट्सऐप स्टेटस लगाने पर 300 से अधिक मुस्लिम कट्टरपंथियों ने उसे दुकान से खींचकर बेरहमी से पीटने के बाद चाकुओं से गोद दिया। उन्मादी कट्टरपंथियों ने बचाने आए पुलिस अधिकारियों से भी मारपीट की। उन्होंने थाने पर भी पथराव किया और पुलिस वाहनों को क्षतिग्रस्त कर दिया।
हिजाब विरोधी पोस्ट शेयर करने पर हमला, तोड़फोड़एक अन्य घटना 11 फरवरी को दावणगेरे जिले के नल्लूर गांव में हुई। नल्लूर निवासी नवीन (25) ने हिजाब विवाद पर एक सोशल मीडिया पोस्ट शेयर किया तो इस्लामिक कट्टरपंथियों की भीड़ ने नवीन और उसकी 60 वर्षीया मां सरोजम्मा पर हमला कर उनके घर में तोड़फोड़ कर दी। गंभीर रूप से घायल मां-बेटे को एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है। हिजाब विरोधी पोस्ट पर चाकुओं से गोद किया अधमराझारखंड के चतरा के ईटखोरी में नगवां निवासी धिरेन्द्र कुमार दांगी को सोशल मीडिया पर हिजाब विवाद पर पोस्ट डालने पर 11 फरवरी को कट्टरवादियों ने उनकी दुकान हमला कर उन्हें चाकुओं से गोद दिया। वहां खड़े कुछ हिंदुओं ने हमलावरों का मुकाबला किया तब धीरेन्द्र की जान बची। पुलिस ने कुछ हमलावरों को गिरफ्तार किया है। घटना से आक्रोशित हिन्दुओं ने हजारों की संख्या में एकत्रित होकर चतरा—ईटखोरी मुख्य पथ को लगभग पांच घंटे तक जाम कर दिया।
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वर्तमान भारत में राष्ट्रचेता हिन्दू जनमानस की नांव भंवर में फंसी है। एक ओर हिन्दुत्व शब्द का न केवल विद्रूपीकरण किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सर्वसमावेशी सनातनी भावधारा का निर्वाह करते हुए राष्ट्र को ही मातृभूमि, पितृभूमि और कर्मभूमि मानने वाले हिन्दुओं के प्रतिरोधी स्वर को कुचलने का कुत्सित प्रयास हो रहा है। इन प्रयासों के पीछे गजवा-ए-हिंद को सहज ही देखा जा सकता है।
मुस्लिमों का पीड़ित होने का स्वांग
हर्ष की हत्या से क्रोधित युवकों को लक्ष्य बनाकर कुछ मजहबी हिजाब एवं बुरकाधारी युवतियों ने गुल गपाड़ा मचाते हुए स्वयं को हिन्दू युवाओं से आतंकित बताने का उपक्रम आरंभ कर दिया है। जबकि उल्लेखनीय है कि हर्ष की शवयात्रा के दौरान एकत्रित भीड़ पर पथराव के समाचार वाइरल हो चुके हैं। यह भी कि विद्यालय एवं महाविद्यालयों में हिजाब के विरुद्ध हुए अभियान के दौरान किसी भी हिजाबधारी या बुर्काधारी युवती के साथ किसी भी प्रकार की अभद्रता नहीं हुई है। हर्ष के सच्चरित्र होने के संबंध में आईं टिप्पणियों से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक तबके द्वारा हिन्दुत्व को भले ही बदनाम करने की कोशिश हो रही हो, हिन्दुत्व में स्त्री की प्रतिष्ठा को संस्कारों की घुट्टी में पिलाया जाता है। अत: मजहबी हिजाबधारी एवं बुर्काधारी युवतियों द्वारा स्वयं को हिन्दू युवाओं से आतंकित बताने का उपक्रम षड्यंत्रकारी ही कहा जा सकता है। ‘विक्टिम कार्ड’ का यह खेल हिन्दुत्व को कलंकित करने का ही उपक्रम है।
एक ओर भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान’ चला रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मजहबीयत से ग्रस्त युवतियां हिजाब की आड़ में मजहबी सामंतवाद की भेंट चढ़ रही हैं। मोदी द्वारा प्रस्तावित 'एक हाथ में कम्प्यूटर और दूसरे हाथ में कुरान' के ध्येय को विफल बनाने हेतु मजहबीयत से ग्रस्त युवतियां मैदान में उतर चुकी हैं। हिजाब विरोध के रूप में मुस्लिम युवतियों की स्वतंत्रता एवं मजहबी सामंतवाद से मुक्ति हेतु संघर्षरत हर्ष जैसे राष्ट्रचेता हिन्दू युवाओं को मजहबी उन्माद का शिकार होना पड़ रहा है।
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