रूस और यूक्रेन के बीच कई दिनों से मंडराते युद्ध के बादल, 22 फरवरी को अपने चरम पर पहुंच गए। रूस की संसद से दूसरे देश की सीमा में रूसी सेना के प्रवेश की अनुमति मिलने के बाद, माना जा रहा है कि राष्ट्रपति पुतिन किसी भी पल यूक्रेन पर सीधा हमला बोल सकते हैं। इससे एक दिन पहले पुतिन ने कहा था कि शांति के सभी मार्ग अब बंद हो चुके हैं। 22 फरवरी की देर शाम नाटो के महानिदेशक जेन्स स्टोल्टेनबर्ग ने स्पष्ट कहा कि अगर रूस ने यूक्रेन से कदम वापस नहीं खींचे तो उसे बहुत बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा। लेकिन नाटो और अमेरिका के ऐसे तमाम बयानों और प्रतिबंधों के बावजूद पुतिन ने यूक्रेन पर हमले को छोड़कर सभी विकल्पों के लिए दरवाजे लगभग बंद कर लिए हैं।
आखिर रूस और यूक्रेन के बीच विवाद क्या है? रूस के मुकाबले कहीं छोटे संप्रभु देश यूक्रेन की सामरिक और रणनीतिक स्थिति क्या है? दोनों देशों के बीच नाटो सहयोगी देशों की भूमिका क्या है? अमेरिका इस विवाद में कहां है? मिन्स्क समझौता क्या है जिसकी बार बार चर्चा सुनाई देती है? 2014 से ही यूक्रेन में रूस समर्थित विद्रोहियों ने तनाव क्यों पैदा किया हुआ है? भारत के दोनों देशों के साथ कूटनीतिक संबंध हैं, ऐसे में भारत खुद को कहां देखता है?
ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो आज बहुत महत्वपूर्ण हो चले हैं। तो आइए, सबसे पहले बात शुरू करते हैं यूक्रेन और पड़ोसी रूस की भौगोलिक स्थितियों से। यूक्रेन आखिर है कहां? इसकी बात करें तो शायद बहुत से लोग दुनिया के नक्शे पर यूक्रेन को चिन्हित तक न कर पाएं। दरअसल, यूरोप के पूर्वी कोने में पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहे यूक्रेन की, रूस और बेलारूस से सीमाएं एकदम सटी हुई हैं।
देखा जाए तो, रूस और यूक्रेन विवाद की जड़ें पूर्व सोवियत संघ के बिखरने के काल में हैं। वाशिंटगटन पोस्ट में संवाददाता रहे डेविड रैमनिक ने अपनी किताब 'Lenin’s Tomb: Last Days of the Soviet Empire' में लिखा है कि लेनिन मानते थे, यूक्रेन का हाथ से निकलना रूस के सिर कट जाने जैसा है। राष्ट्रपति पुतिन ने भी माना है कि सोवियत संघ का विघटन पिछली सदी की सबसे बड़ी त्रासदी रही है। वो लगातार सोवियत संघ के बिखराव से अलग होने वाले देशों में, रूस की ताकत का प्रभाव दुबारा कायम करने की कोशिश करते रहे हैं। पुतिन मानते हैं कि रूस और यूक्रेन का इतिहास और आध्यात्मिक विरासत एक ही है।

यूक्रेन की सीमाओं पर तैनात रूस का पूरा अत्याधुनिक जंगी अमला अगले आदेश के इंतजार में है। इतना ही नहीं, उसके मित्र देश बेलारूस की यूक्रेन से सटी सीमाओं पर भी रूसी टैंक और सैनिकों का बड़ा भारी जमावड़ा मॉस्को से हमला बोलने के इशारे का इंतजार कर रहा है। नाटो महानिदेशक की मानें तो यूक्रेन की सीमा पर रूस के डेढ़ लाख से ज्यादा सैनिक युद्ध छेड़ने के लिए तैयार हैं।
ध्यान देने की बात है कि 90 के दशक में शीत युद्ध खत्म होने के बाद, नाटो यानी नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी आर्गेनाइजेशन का पूर्व की ओर विस्तार हुआ था। इसके चलते वो देश भी इससे जुड़ गए जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा रहे थे। जाहिर है, रूस ने इसे खतरा माना। यूक्रेन ने जब नाटो देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास किया और अमेरिका से एंटी-टैंक मिसाइल्स जैसे हथियार लिए, तो रूस और सतर्क हुआ। पुतिन का मानना है कि नाटो यूक्रेन को लॉन्चपैड बनाकर रूस पर मिसाइल दाग सकता है। नाटो की वेबसाइट पर टारस कुजियो का एक लेख है, जिसमें वे लिखते हैं कि वर्तमान संकट के पीछे सबसे बड़ी वजह यही है कि रूस यूक्रेन को फिर से अपने प्रभाव में शामिल करना चाहता है।
इस विवाद की एक और वजह है, जिसके आर्थिक आयाम हैं। भौगोलिक स्थिति की बात करें तो रूस के बाद यूक्रेन यूरोप का दूसरा सबसे बड़ा देश है। यूक्रेन के पास काला सागर है और इसकी सरहदें चार नाटो देशों से सटी हैं। रूस वह देश है जो यूरोप की कुल जरूरत की एक तिहाई नेचुरल गैस सप्लाई करता है। इसकी एक बड़ी पाइपलाइन यूक्रेन से होकर गुजरती है। यूक्रेन को अपने प्रभाव में लेकर रूस इस पाइपलाइन की सुरक्षा को और मजबूत करना चाहता है।
दिसंबर 2021 के मध्य में इस विवाद में एक नया मोड़ आया था। रूस ने अमेरिका सहित पश्चिमी देशों से यह लिखित आश्वासन मांगा था कि नाटो पूर्वी यूरोप में अपने पांव न पसारे। इतना ही नहीं, रूस ने पोलैंड और बाल्टिक राज्यों से नाटो सेनाओं की वापसी और यूरोप से अमेरिकी मिसाइलें आदि को हटाने की मांग की थी। रूस की सबसे अहम मांग है कि यूक्रेन को नाटो में शामिल न किया जाए। लेकिन, जैसी आशंका थी, न अमेरिका ने और न ही नाटो देशों ने रूस की इन शर्तों के लिए हामी भरी।
इधर रूस ने यूक्रेन पर भी दबाव बढ़ाते हुए कहा कि अगर नाटो नहीं झुकता तो कीव खुद को गुटनिरपेक्ष घोषित कर दे। पुतिन का कहना था कि अगर नाटो उसे जबरदस्ती सदस्य बनाए रखे है वो अपनी तरफ से खुद को गुटनिरपेक्ष घोषित कर दे। मॉस्को ने यह आरोप भी लगाया है कि यूक्रेन 16 जुलाई 1990 के समझौते का भी पालन नहीं कर रहा है। इस समझौते में यूक्रेन ने यह वादा किया था कि वो किसी भी सैन्य गुट का सदस्य नहीं बनेगा। तब वहां सत्ता में रूस समर्थित सरकार थी।
लेकिन 2014 में उस रूस समर्थित सरकार के गिरने पर यूक्रेन ने फरवरी 2019 में अपने संविधान में व्यापक संशोधन किए। इनमें यूक्रेन के नाटो से जुड़ने का प्रावधान भी शामिल है। रूस ने तब आरोप लगाया था कि यूक्रेन ने संविधान में ये संशोधन अमेरिका और नाटो से जुड़े पश्चिमी देशों के कहने में आकर किए हैं।
कारण जो भी हो, पर इसके बाद से ही रूस नाटो और यूक्रेन को सावधान करता आ रहा था कि अगर रूस की सीमा के पास नाटो ने हथियारों की तैनाती की तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। लिहाजा यूक्रेन की सीमाओं पर 2014 से ही तनाव बनना शुरू हो चुका था। कुछ अपुष्ट खबरें बताती हैं कि रूस के सैनिक बड़ी संख्या में यूक्रेन की सीमाओं के अंदर भी मौजूद रहे हैं।
इस बीच 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में हुआ समझौता भी एक प्रमुख पहलू रहा है। अमेरिका और नाटो देशों का रूस पर आरोप है कि वो मिन्स्क समझौते का उल्लंघन कर रहा है। उनका कहना है कि रूसी सेना के यूक्रेन में दाखिल होने के साथ ही "मिंस्क समझौता" तार—तार कर दिया गया है।
दरअसल साल 2014 में यूक्रेन के डोंबास इलाके में चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए यूक्रेन, रूस और यूरोपीय संस्था ओएससीई के बीच एक समझौता हुआ था। इस समझौते का मुख्य उद्देश्य था युद्धविराम। डोंबास रूस से सटा यूक्रेन का इलाका है, जहां के दो क्षेत्रों डोनेस्क और लुहांस्क में 2014 से अलगाववादी आंदोलन छिड़ा हुआ था। विशेषज्ञ कहते हैं कि इन अलगाववादियों को रूस से वैचारिक और रणनीतिक समर्थन प्राप्त था। वहां नागरिकों की एक बड़ी संख्या रूस की ओर झुकाव रखती है। लेकिन बदकिस्मती से उक्त समझौते के बाद भी युद्धविराम नहीं हुआ। तब एक और समझौते का खाका तैयार हुआ जिसे मिंस्क द्वितीय कहा जाता है। इस समझौते पर 2015 में हस्ताक्षर किए गए थे। समझौते के तहत सभी पक्षों ने यह माना था कि भविष्य में विवाद का हल इसी समझौते के आधार पर होगा। लेकिन अब रूस पर आरोप है कि उसने उस समझौते को लांघ दिया है।
यह विवाद बढ़ता गया, और 2021 के अंत में रूस ने यूक्रेन सीमा पर अपनी सेनाएं तैनात करनी शुरू कर दीं। इस बीच दोनों पक्षों की तरफ से अनेक बयान आए। कूटनीतिक प्रयास चले। लेकिन किसी कदम से कोई हल नहीं निकला।
अब अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी आदि पश्चिमी देशों ने आर्थिक पाबंदियों से रूस को जकड़ दिया है। लेकिन यूक्रेन की सीमाओं पर तैनात रूस का पूरा अत्याधुनिक जंगी अमला अगले आदेश के इंतजार में है। इतना ही नहीं, उसके मित्र देश बेलारूस की यूक्रेन से सटी सीमाओं पर भी रूसी टैंक और सैनिकों का बड़ा भारी जमावड़ा मॉस्को से हमला बोलने के इशारे का इंतजार कर रहा है। नाटो महानिदेशक की मानें तो यूक्रेन की सीमा पर रूस के डेढ़ लाख से ज्यादा सैनिक युद्ध छेड़ने के लिए तैयार हैं। 22 फरवरी को डोनेस्क और लुहांस्क को रूस द्वारा स्वतंत्र देशों के रूप में मान्यता देने के साथ ही वार्ता से विवाद सुलझने की सारी संभावनाएं अब खत्म होती दिख रही हैं।
भारत ने अभी तक इस विवाद में बहुत सावधानी कदम उठाए हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत का यही कहना रहा है कि तनाव नहीं, वार्ता से इस विवाद को सुलझाना होगा। बता दें कि भारत के हजारों छात्र यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं। इसी तरह रूस के साथ भी भारत के एक लंबे समय से सामरिक और रणनीतिक रिश्ते रहे हैं। भारत को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति बहुत हद तक रूस से ही होती है। भारत ने यूक्रेन से अपने नागरिकों और छात्रों को सुरक्षित भारत लाना शुरू कर दिया है।
फिलहाल रूस और यूक्रेन में हर घंटे बदलते हालात के समाचार पूरी दुनिया को चिंता में डाले हुए हैं। दुनिया दो खेमों में बंट चुकी है। कहीं ऐसा न हो कि शीत युद्ध के बाद रूस और यूक्रेन का यह टकराव पूरे विश्व को हिलाकर रख दे।
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