प्राप्त समाचारों के अनुसार, लाहौर से लगभग 180 किलोमीटर दूर फैसलाबाद के टांडलियांवाला क्षेत्र में 'ईशनिंदा' के नाम पर एक व्यक्ति पर हिंसक भीड़ का कहर टूटा है। इस बार इस 'बर्बर कानून' के तहत एक शिया व्यक्ति को निशाना बनाया गया है, जिसके घर पर लाठियों और पत्थरों से लैस सैकड़ों उन्मादियों की भीड़ टूट पड़ी थी। बताया गया कि अगर समय रहते पुलिस दखल न देती तो उसे भी लोग पीट—पीटकर मार डालते जैसा कि अभी तीन दिन पहले ही एक व्यक्ति को मारा गया था।
जिस व्यक्ति पर गुस्से से तमतमाती मजहबी उन्मादियों की भीड़ टूटी थी वह एक स्थानीय शिया विद्वान बताया जाता है। उस पर कुरान के पन्नों को जलाने का कथित आरोप लगाकर भीड़ ने घेर लिया और मारपीट शुरू कर दी। बुरी तरह जख्मी हुए उस व्यक्ति को पुलिस ने आकर किसी तरह बचाया। स्थानीय पुलिस के अफसर मुबाशर ने बताया है कि टांडलियांवाला में लाठी-ईंटों और दूसरे जानलेवा हथियारों से लैस दर्जन से ज्यादा लोगों की भीड़ उस पर ईशनिंदा करने का आरोप लगाते हुए उस शिया के घर को घेरने लगी। मारपीट में उसे काफी चोट आई। लेकिन वक्त रहते मौके पर पहुंचकर पुलिस उसकी जान बचाने में कामयाब हो गई। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में यूं भी शियाओं को सुन्नी उन्मादी फूटी आंख नहीं देखना चाहते।
पुलिस की ओर से बताया गया है कि घटना के फौरन बाद पुलिस उस शिया व्यक्ति को किसी अज्ञात जगह पर ले गई है। उसके परिवार को भी घर से दूर किसी और जगह ले जाया गया है जिससे उनकी जान पर कोई खतरा न आए।
लाहौर से लगभग 180 किलोमीटर दूर फैसलाबाद के टांडलियांवाला क्षेत्र में 'ईशनिंदा' के नाम पर एक शिया व्यक्ति पर हिंसक भीड़ का कहर टूटा है। उसके घर पर लाठियों और पत्थरों से लैस सैकड़ों उन्मादियों की भीड़ टूट पड़ी। बताया गया कि अगर समय रहते पुलिस दखल न देती तो उसे भी लोग पीट—पीटकर मार डालते.
जैसा पहले बताया, गत 12 फरवरी को भी ईशनिंदा के आरोप में एक अधेड़ और मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति पर गुस्साए लोग टूट पड़े थे। उन्होंने पत्थर मार-मार कर आखिरकार उसे जान से ही मार डाला।
यह घटना लाहौर से 275 किलोमीटर दूर जंगल डेरावाला गांव में घटी थी। वहां नमाज के बाद मस्जिद शाहमुकीम मुआजा से घोषणा की गई कि एक आदमी मुश्ताक अहमद ने कुरान के पन्ने फाड़कर कथित तौर पर उन्हें आग लगा दी है। बस इतना सुनकर मजहबी उन्मादियों की भीड़ जमा हो गई। लेकिन उनके उस व्यक्ति तक पहुंचने से पहले ही पुलिस वाले गांव में पहुंच गए और उस व्यक्ति को अपनी हिरासत में ले लिया। परन्तु भीड़ इतने आक्रोश में थी कि 'आरोपी' को पुलिस की हिरासत से छुड़ाकर पेड़ से लटकाया और उन्मादी नारों के बीच, उस पर चारों तरफ से पत्थर बरसने लगे। आखिरकार उसकी हत्या कर दी गई। हालांकि इस बीच वह व्यक्ति हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाता रहा था कि उसने ऐसा कुछ नहीं किया है, वह बेकसूर है। लेकिन गुस्साई भीड़ उसकी सुनने को तैयार न थी।
इससे पूर्व दिसंबर 2021 में मजहबी उन्मादियों की भीड़ ने इसी 'ईशनिंदा के आरोप' में श्रीलंका के एक नागरिक 47 साल के प्रियंथा कुमारा की पीट—पीटकर हत्या कर दी और बेजान शरीर को आग लगा दी थी। इसमें संदेह नहीं है कि पाकिस्तान के मजहबी उन्मादी विशेषरूप से हिन्दुओं व अन्य अल्पसंख्यकों पर ईशनिंदा के आरोप लगाकर उन्हें जेलों में बंद करा देते हैं या उनकी जान ही ले लेते हैं। आरोप सच है या झूठ, इसका फैसला होने का भी इंतजार नहीं किया जाता।
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