कनाडा उबल रहा है। राजधानी ओटावा अस्त-व्यस्त है। देश असमंजस में है। नेता संसद में भाषणों तक सीमित हैं। सुरक्षाबल हैरान-परेशान हैं। और आम नागरिक गुस्से में हैं। इस गुस्से के निशाने पर हैं कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो। करीब 12 दिनों से कनाडा में ऐसी असमंजस की स्थिति बनी है वहां देशभर से आकर घेराव करने वाले ट्रकों से। राजधानी ओटावा शहर जकड़ा हुआ है, जनजीवन पस्त और परेशान है। सरकार ने आपातकाल लगा दिया, लेकिन हालात नहीं सुधरे। 8 फरवरी को खबर आई कि आंदोलनकारी ट्रक चालकों ने वहां की संसद के चारों तरफ अपने ट्रकों से घेरा बना दिया है।
कनाडा में टीकाकरणदुनिया में अन्य देशों के मुकाबले कनाडा में वैक्सीनेशन दर सबसे ज्यादा है। यहां करीब 79 प्रतिशत आबादी कोरोना की दोनों खुराकें ले चुकी है। कनाडा के ट्रक संगठन का कहना है कि देश के ऐसे 120,000 ट्रक चालकों में से लगभग 90 प्रतिशत को वैक्सीन लग चुकी है, जो एक से दूसरे देश में जाते हैं। इस संगठन ने ट्रक चालकों के आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया।
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अपने निवास को ट्रकों से घिरता देख किसी सुरक्षित जगह जाने वाले जस्टिन ट्रूडो वही हैं जो भारत में कथित किसान आंदोलन के समर्थन में कूदे थे। उन्होंने एक वीडियो जारी करके भारत सरकार को आंदोलनकारियों की बात सुनने की ‘बेमांगी हिदायत’ दी थी, बल्कि आंदोलनकारियों को एक तरह से धरना जारी रखने की शह भी दी थी।
यह स्थिति वहां पैदा कैसे हुई? 29 जनवरी से ओटावा में ट्रक चालक धरना दे रहे हैं क्योंकि ट्रूडो सरकार ने कनाडा में दाखिल होने वाले सभी ट्रक चालकों के लिए कोरोना वैक्सीन लगाकर ही अपने देश में प्रवेश का आदेश जारी किया था। इतना ही नहीं, ट्रूडो ने कथित तौर पर बयान में कहा कि ‘ट्रक वाले दूसरे लोगों के लिए खतरा हंै।’ ट्रूडो ने उन्हें ‘महत्व न रखने वाले अल्पसंख्यक’ बताते हुए उनके लिए 15 फरवरी तक वैक्सीन का प्रमाणपत्र दिखाना अनिवार्य कर दिया।
कनाडा में दाखिल होने वाले ज्यादातर ट्रक अमेरिका के रास्ते आते हैं। ट्रूडो के उक्त बयान से ट्रक चालक आंदोलन पर उतारू हो गए और ‘फ्रीडम मूवमेंट’ शुरू कर दिया। शुरू में वे राजधानी ओटावा के बाहरी हिस्सों तक ही जमे रहे थे, लेकिन आम लोगों के बढ़ते समर्थन को देखते हुए उन्होंने ओटावा शहर को जाम करना शुरू कर दिया। उनके साथ आम नागरिक भी प्रदर्शन में आ जुटे और ट्रूडो से इस्तीफा देने की मांग करने लगे।
उल्लेखनीय है कि प्रदर्शनकारियों ने वैक्सीन जनादेश को ‘फासीवाद’ बताते हुए सरकार के आदेश की भर्त्सना की है। हर बीतते दिन के साथ ट्रकों के नए काफिले ओटावा को घेरने लगे और 8 फरवरी तक आकर उन्होंने संसद का घेराव कर दिया। इस बीच सरकार की तरफ से सुलह—सफाई के तमाम प्रयास बेकार साबित हुए हैं।

जिसे एक आंदोलन समर्थक ने ट्विटर पर साझा किया था
दरअसल, कनाडा में कोरोना पाबंदियों को सख्त तथा टीकाकरण को अनिवार्य बना दिया गया था। लेकिन प्रधानमंत्री ट्रूडो को अंदाजा नहीं था कि मामला यहां तक जा पहुंचेगा। देखते ही देखते 50 हजार से ज्यादा ट्रक चालकों ने राजधानी ओटावा की सड़कों को पहुंच से दूर कर दिया और 20 हजार से ज्यादा ट्रक प्रधानमंत्री के निवास का घेरा डालकर अड़ गए। तब खबर आई कि सुरक्षा कारणों से ट्रूडो अपने परिवार सहित पीछे के रास्ते से किसी अनजान ठिकाने पर चले गए हैं। फिर खबर आई कि वे कोरोना संक्रमित हो गए हैं। लेकिन इस बीच भी वे कैमरे के सामने आकर अपने रवैए को और सख्त करने के संकेत देते रहे। उनके इस व्यवहार ने आंदोलनकारियों को और नाराज कर दिया, लिहाजा उनसे उनका आदेश वापस लेने की मांग उनके इस्तीफे की मांग तक जा पहुंची।
हर बीतते दिन के साथ ट्रकों का काफिला 70 किलोमीटर लंबा हो गया। इनमें ज्यादातर ट्रक अमेरिका के हैं, लेकिन उन्हें उन कनाडा के लोगों का समर्थन मिला जिनके लिए जरूरी सामान वही पहुंचाते हैं। ट्रक चालकों ने अपने आंदोलनकारी काफिले को ‘फ्रीडम कान्वॉय’ नाम दे दिया। उधर देश के परिवहन मंत्री उमर का कहना है कि किसी भी फैसले को पलटा नहीं जाएगा। जबकि प्रदर्शनकारी ट्रक चालक अब न सिर्फ बार्डर पार करने के लिए वैक्सीन की अनिवार्यता खत्म करने की मांग कर रहे हैं, बल्कि वे नागरिकों के साथ मिलकर देश भर में ऐसे सभी जनादेशों की वापसी की भी मांग कर रहे हैं।
किसान आंदोलन के समर्थन में उतरे थे ट्रूडो
अपने निवास को ट्रकों से घिरता देख किसी सुरक्षित जगह जाने वाले जस्टिन ट्रूडो वही नेता हैं जो भारत में कथित किसान आंदोलन के समर्थन में कूदे थे। उन्होंने एक वीडियो जारी करके भारत सरकार को आंदोलनकारियों की बात सुनने की ‘बेमांगी हिदायत’ दी थी, बल्कि आंदोलनकारियों को एक तरह से धरना जारी रखने की शह भी दी थी। उस वीडियो में उन्होंने कहा था,‘कनाडा हमेशा शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के अधिकार के बचाव में खड़ा होगा। हम बातचीत में विश्वास करते हैं।’
लेकिन बातचीत के पैरोकार त्रूदो अपने यहां ट्रक चालकों के खिलाफ ही कड़ा रुख अपनाते दिखे हैं। ट्रूडो ने अब अपनी संसद में कहा कि ‘प्रदर्शनकारी हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे लोकतंत्र और हमारे साथी नागरिकों के दैनिक जीवन को अवरुद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे रोकना होगा। ओटावा के लोग सड़क के किनारे जारी हिंसा को सामना नहीं कर सकते’। उनके इस बयान पर अभिनेत्री कंगना रनौत ने चुटकी लेते हुए 31 जनवरी को इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट में लिखा, ‘कर्म का फल भुगतना पड़ता है।’ उनका इशारा भारत के किसान आंदोलन को त्रूदो की बेवजह शह की तरफ था।
ये वही ट्रूडो हैं जो तब किसानों के अधिकारों की बात कर रहे थे, लेकिन डब्ल्यूटीओ में भारत सरकार के किसानों के हित के फैसलों का विरोध कर रहे थे। किसानों को लेकर आंसू बहाने वाले ट्रूडो की सरकार ने सितंबर 2020 को डब्ल्यूटीओ बैठक में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि कार्यक्रम को लेकर संदेह जताए था। कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत की फसल बीमा योजना पर भी सवाल खड़े किए थे।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रधानमंत्री ट्रूडो ओटावा में अपने सरकारी निवास में नहीं लौटे हैं। ट्रक चालकों का आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब यह राजधानी ओटावा सहित देश में अन्य बड़े शहरों तक फैलता जा रहा है। टोरंटो, क्यूबेक, रेजीना, वेंकुवर, अल्बर्टा व अन्य स्थानों पर प्रदर्शन किए जाने के समाचार प्राप्त हुए हैं।
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