इसे दोहरा मापदंड ही कहेंगे कि जिन नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई को जिहादियों के कारण अपनी जन्मभूमि पाकिस्तान छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा, वह भारत में चल रहे हिजाब जिहाद के पक्ष में खड़ी हैं। ये वही मलाला हैं, जो कहती थीं कि मजहब से ज्यादा जरूरी है शिक्षा और इस कारण वे लंदन में शर्ट-पैंट पहनकर स्कूल जाती थीं। अब वही मलाला कहती हैं,‘‘हिजाब पहने हुई लड़कियों को विद्यालयों में प्रवेश करने से रोकना भयावह है। पढ़ाई या हिजाब में से एक को चुनने के लिए मजबूर किया जा रहा है। भारतीय नेताओं को मुस्लिम महिलाओं को हाशिए पर जाने से रोकना चाहिए।’’
ये वही मलाला हैं, जिन्हें शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है। दुनिया यह सोच रही है कि मलाला तो ‘शांतिदूत’ हैं, लेकिन उनका असली चेहरा हिजाब जिहाद ने सामने ला दिया है। मलाला के ट्वीट के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्री सहित पांच अन्य मंत्रियों ने हिजाब जिहाद के लिए भारतीय मुसलमानों को उकसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसके साथ ही असदुद्दीन ओवैसी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, ममता बनर्जी जैसे नेताओं के बयानों ने इस जिहाद को पूरे भारत में फैला दिया। दिल्ली के शाहीनबाग में तो मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से लोगों को बुला—बुलाकर सड़कों पर उतार दिया गया। इसे वैसा ही मुद्दा बनाया जा रहा है, जैसे सीएए के विरोध को बनाया गया था।
अराजकता फैलाने का षड्यंत्र : विहिपविश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि हिजाब विवाद वास्तव में हिजाब की आड़ में जिहादी अराजकता फैलाने का षड्यंत्र है। पीएफआई जैसे कट्टर इस्लामिक संगठन संपूर्ण देश में अराजकता निर्माण करने का एक बड़ा षड्यंत्र रच रहे हैं। उन्होंने कहा है कि जितनी तेजी से संपूर्ण विश्व के इस्लामिक जगत व ‘टूलकिट गैंग’ ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी है, उससे साफ प्रकट होता है कि ये भारत में अराजकता फैलाने का कोई भी अवसर नहीं चूकना चाहते। विहिप इन सभी अराजक तत्वों को स्पष्ट करना चाहती है कि कर्नाटक सरकार की सजगता और हिंदू समाज की सक्रियता के कारण वे सफल नहीं हो पाएंगे। बड़ी पीठ करेगी निर्णयजिन लोगों ने हिजाब विवाद को खड़ा किया है, वही लोग कर्नाटक उच्च न्यायालय भी पहुंचे हैं। इस संबंध में चार याचिकाएं दायर हुई हैं। उन पर दो दिन तक न्यायमूर्ति कृष्ण श्रीपद दीक्षित ने की। 9 फरवरी को उन्होंने मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी से निवेदन किया कि वे इस मामले को एक बड़ी पीठ को सौप दें। इसके बाद उन्होंने एक पीठ का गठन किया है। इसमें मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त न्यायमूर्ति दीक्षित और न्यायमूर्ति जे.एम. काजी शामिल हैं। अब इसी पीठ के निर्णय पर सबकी निगाहें टिकी हैं। |
दुर्भाग्य से हिजाब जिहाद के पक्ष में बड़ी संख्या में वे मजहबी नेता और मुस्लिम बुद्धिजीवी भी खड़े हैं, जो कहते हैं कि ‘हर हाल में देश में सांप्रदायिक सद्भाव बना रहे’। ‘इंटर फेथ हारमोनी फाउंडेशन आफ इंडिया’ के अध्यक्ष और ‘वैचारिक समन्वय : एक व्यावहारिक पहल’ पुस्तक के लेखक डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार अहमद कहते हैं, ‘‘हमारे देश में सबको आजादी है कि वे क्या खाएं, क्या पहनें और क्या पिएं। लेकिन जब किसी स्कूल की वर्दी की बात हो तो उसका सम्मान और पालन हर किसी को करना चाहिए।’’ काश, डॉ. अहमद जैसे लोगों की संख्या अधिक होती तो कुछ लोग आज गली—गली में प्रदर्शन कर सांप्रदायिक सद्भाव को चुनौती नहीं देते। ऐसे प्रदर्शनों को देखते हुए ही देश के एक बड़े वर्ग के मन में यह बात बैठ रही है कि हिजाब जिहाद की आड़ में कट्टरवादी तत्व भारत में शरिया कानून को लागू करवाना चाहते हैं। श्री सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा दिल्ली के अध्यक्ष भूषणलाल पाराशर कहते हैं, ‘‘भारत की विशेषता है अनेकता में एकता और यह एकता तब तक रह सकती है, जब तक कि सभी लोग देश के कानून को मानते रहेंगे। यह गलत बात है कि एक वर्ग विशेष देश के कानून को न मानकर शरिया कानून की वकालत करने लगा है।’’
श्री पाराशर का इशारा चरमपंथी इस्लामी संगठन पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (पीएफआई) की ओर है, जिसका उद्देश्य है भारत को इस्लामी राज बनाकर शरिया कानून लागू करवाना। उल्लेखनीय है कि हिजाब जिहाद में पीएफआई पूरी तरह शामिल है। उसकी राजनीतिक इकाई सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आॅफ इंडिया (एसडीपीआई) और उसकी छात्र शाखा कैंपस फ्रंट आॅफ इंडिया (सीएफआई) से जुड़े लोगों ने ही उडुपी के सरकारी प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की छात्राओं को उकसाया है।
उत्तर ‘दिल्ली संत महामंडल’ के महामंत्री महंत नवलकिशोर दास जी महाराज से मिला! वे कहते हैं,‘‘कुछ तत्वों ने भारत को इस्लामी देश बनाने का लक्ष्य तय कर लिया है। उसी लक्ष्य को प्राप्त करने की एक कड़ी है हिजाब जिहाद। हिंदुओं को जाति, पंथ, प्रांत और भाषा के भेदों से ऊपर उठकर इसका विरोध करना होगा। हिंदू सजग और सतर्क नहीं हुए तो आने वाला समय हमें माफ नहीं करेगा।’’ उम्मीद है कि भारत के लोग इस हिजाब जिहाद को सफल नहीं होने देंगे।
उडुपी के भाजपा विधायक रघुपति भट्ट स्पष्ट रूप से कहते हैं, ‘‘एसडीपीआई और सीएफआई के लोगों ने छात्राओं को भड़का कर विवाद को खड़ा किया है।’’ इसके साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि इस विवाद में कांग्रेस भी शामिल है। उनका कहना है कि पहले कांग्रेस इस विवाद में नहीं थी,लेकिन जब उसे लगा कि वोट बैंक की राजनीति में वह एसडीपीआई से पिछड़ रही है, तो वह भी इसमें कूद गई।
कर्नाटक के अनेक लोगों ने भी आशंका व्यक्त की है कि हिजाब जिहाद के पीछे मुख्य रूप से सीएफआई ही है। इस आशंका के पीछे एक ठोस कारण है। उल्लेखनीय है कि दिसंबर, 2021 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (अभाविप) ने शुल्क और छात्रों की अन्य समस्याओं को लेकर उडुपी के एक कॉलेज के बाहर प्रदर्शन किया था। इसमें अनेक बुर्काधारी मुस्लिम छात्राओं ने भी हिस्सा लिया था। इनका वीडियो सोशल मीडिया में भी वायरल हुआ था। अभाविप के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. अल्लम प्रभु को आशंका है कि प्रदर्शन का वीडियो वायरल होने पर सीएफआई से जुड़े लोगों ने उन मुस्लिम छात्राओं से संपर्क किया और उन्हें अभाविप के कार्यक्रमों से दूर रहने को कहा। यह भी कहा जा रहा है कि इसके बाद सीएफआई ने मुस्लिम छात्राओं के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया और उसमें उन्हें हिजाब की घुट्टी पिलाई गई। फिर सीएफआई के इशारे पर ही कुछ मुस्लिम अभिभावकों ने अपनी बच्चियों के लिए कॉलेज से हिजाब पहनने की अनुमति मांगी थी।
स्वाभाविक है, कॉलेज प्रशासन ने उनकी इस मांग को स्वीकार नहीं किया। इसके बाद भी छह मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहनकर कॉलेज पहुंच गर्इं। कॉलेज प्रशासन ने उन्हें हिजाब में कॉलेज में प्रवेश करने तो दिया, लेकिन उन्हें कक्षा में नहीं जाने दिया। इसके बाद वे छात्राएं धरने पर बैठ गर्इं और उनके साथ गए सीएफआई के कार्यकर्ताओं ने उसे मुद्दा बना दिया। इस मुद्दे को पीएफआई से जुड़े लोगों ने इस तरह उठाया कि देखते ही देखते यह पूरी दुनिया में फैल गया। पाकिस्तान के चैनलों ने इसे उठाया। यही नहीं, अलजजीरा टीवी ने भी इसे सनसनीखेज बनाकर चलाया। बात जब पाकिस्तान और अरब तक पहुंच गई हो तब राहुल गांधी पीछे कहां रहने वाले थे। उन्होंने एक ट्वीट कर लिखा कि वे हिजाब की मांग करने वाली लड़कियों के साथ खड़े हैं। इसके बाद कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता एस. सिद्धारमैया ने भी इस जिहादी मांग का समर्थन किया। रही-सही कसर प्रियंका गांधी ने पूरी कर दी। प्रियंका गांधी ने एक ट्वीट में कहा,‘‘चाहे वह बिकिनी हो, घूंघट हो, जींस हो या हिजाब, यह तय करना एक महिला का अधिकार है कि वह क्या पहनना चाहती है। यह अधिकार भारतीय संविधान द्वारा संरक्षित है। महिलाओं को परेशान करना बंद करें।’’
हैदराबाद वाले असदुद्दुीन ओवैसी ने तो उत्तर प्रदेश के संभल में एक चुनावी सभा में मुसलमानों को भड़काते हुए कहा,‘‘यदि तुम झुक गए तो हमेशा के लिए झुक जाओगे।’’ एक अन्य चुनावी सभा में ओवैसी ने कहा,‘‘हमारी बेटी, हमारी पत्नी, हमारी मां क्या पहनेगी, यह हम तय करेंगे, तुम्हारे बाप से नहीं पूछेंगे।’’ इस तरह के भड़काऊ बयानों से ओवैसी क्या बताना चाहते हैं! इसका उत्तर ‘दिल्ली संत महामंडल’ के महामंत्री महंत नवलकिशोर दास जी महाराज से मिला! वे कहते हैं,‘‘कुछ तत्वों ने भारत को इस्लामी देश बनाने का लक्ष्य तय कर लिया है। उसी लक्ष्य को प्राप्त करने की एक कड़ी है हिजाब जिहाद। हिंदुओं को जाति, पंथ, प्रांत और भाषा के भेदों से ऊपर उठकर इसका विरोध करना होगा। हिंदू सजग और सतर्क नहीं हुए तो आने वाला समय हमें माफ नहीं करेगा।’’ उम्मीद है कि भारत के लोग इस हिजाब जिहाद को सफल नहीं होने देंगे।
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