केरल से टी. सतीशन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहनराव भागवत और कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति थोट्टाटिल बी. राधाकृष्णन ने गत 19 जनवरी को संघ के पूर्व अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री रंगाहरि की मलयालम में लिखी पुस्तक "व्यास भारततिले भीष्मर" (व्यास भारत में भीष्म) का विमोचन किया। कार्यक्रम का आयोजन कोच्चि स्थित संघ के प्रांत कार्यालय, माधव निवास में किया गया था। पुस्तक का परिचय लिखा है प्रसिद्ध कवि प्रो. वी. मधुसूदनन नायर ने।
रंगाहरि जी की यह नई पुस्तक उनकी पूर्व में लिखीं महाभारत से प्रेरित पुस्तकों की अगली कड़ी के तौर पर देखा जा सकता है। इससे पहले उनकी मलयालम भाषा में ही 'व्यास भारत में कृष्ण', 'व्यास भारत में कर्ण', 'व्यास भारत में द्रौपदी' और 'व्यास भारत में नारद' जैसी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। रंगाहरि जी की इन पुस्तकों में से हर एक अत्यंच रोचक है और महाभारत के पात्रों को एक अलग आयाम में प्रस्तुत करती है।
इससे पहले रंगाहरिजी की मलयालम भाषा में ही 'व्यास भारत में कृष्ण', 'व्यास भारत में कर्ण', 'व्यास भारत में द्रौपदी' और 'व्यास भारत में नारद' जैसी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। रंगाहरि जी की इन पुस्तकों में से हर एक अत्यंच रोचक है और महाभारत के पात्रों को एक अलग आयाम में प्रस्तुत करती है।
उल्लेखनीय है कि संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री रंगाहरि 1944 में 14 साल की किशोरावस्था में संघ के स्वयंसेवक बने थे। महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन नेहरू सरकार द्वारा संघ पर लगाए गए प्रतिबंध के विरोध में उन्होंने राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह में भाग लिया और कई महीने जेल में रहे। इस वजह से उनकी कॉलेज की शिक्षा में बाधा आ गई। लेकिन जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी।
1951 में संस्कृत में स्नातक की उपाधि लेने के बाद वे संघ के पूर्ण कालिक प्रचारक बन गए। अपने व्यक्तित्व से उन्होंने अनेक कार्यकर्ता खड़े किए और अथक प्रयास करते हुए संगठन को मजबूत किया। 1975 में आपातकाल के दौरान वे वरिष्ठ प्रचारक पी. माधव जी के साथ तत्कालीन प्रांत प्रचारक के. भास्करराव के सहयोगी रहे। रंगाहरि जी ने उस दौरान भूमिगत रहते हुए साहित्य का प्रसार किया और संघ कार्यकर्ताओं तथा प्रमुख नागरिकों के साथ बैठकें करते हुए पूरे राज्य के दौरे किए।
1982 में श्री रंगाहरि ने प्रांत प्रचारक का दायित्व संभाला। 1990 में वे अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख बने और अगले साल बौद्धिक प्रमुख। उन्होंने करीब 15 साल तक यह दायित्व संभाला। अद्भुत मेधा के धनी रंगाहरि जी लगभग दस भाषाओं में पारंगत हैं- मलयालम, तमिल, संस्कृत, कोंकणी, मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, बंगाली, गुजराती और असमिया। उन्होंने विभिन्न भाषाओं में साठ से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। प्रस्तुति की विशिष्टता और भाषा की सरलता के कारण पाठक उनकी पुस्तकों को बहुत चाव से पढ़ते हैं। पूज्य श्रीगुरुजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर "गुरुजी समग्र" नाम से प्रकाशित बारह खंडों के ग्रंथ को साकार करने में उनका अमूल्य योगदान रहा। आज रंगाजी 92 साल के हैं, लेकिन अपने सहज स्वभाव के साथ कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन करते रहते हैं।
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