प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रही भारतीय संस्थाओं से आग्रह किया कि वह भारत की छवि को धूमिल करने के वैश्विक स्तर पर हो रहे षड्यंत्रों का मुकाबला करते हुए देश की सही छवि दुनिया के समक्ष प्रस्तुत करें। प्रधानमंत्री ने ब्रह्मकुमारी संस्था के ‘आजादी के अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर’ कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए कहा कि सालभर चलने वाले इस कार्यक्रम में स्वर्णिम भारत के लिए भावना और साधना दोनों हैं। इसमें देश के लिए प्रेरणा भी है और ब्रह्मकुमारियों के प्रयास भी हैं। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम देश के लिए प्रेरणास्रोत है। प्रधानमंत्री ने देश के विकास में निरंतर समर्थन के लिए ब्रह्मकुमारी संस्था का आभार व्यक्त किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की छवि को धूमिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-अलग प्रयास चलते रहते हैं। इससे हम यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकते कि ये सिर्फ राजनीति है। यहां राजनीति नहीं, बल्कि हमारे देश का सवाल है। आजादी का अमृत महोत्सव मनाते समय हमारा दायित्व है कि दुनिया भारत को सही रूप में जाने। ब्रह्मकुमारी जैसी संस्थाओं को दूसरे देशों के लोगों तक भारत की सही बात को पहुंचाना चाहिए। भारत के बारे में फैल रही अफवाहों की सच्चाई उन्हें बताकर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। प्रधानमंत्री ने देश के प्रत्येक नागरिक से अपने दिल में कर्तव्य का दीया जलाने का आह्वान करते हुए कहा कि हम सभी मिलकर देश को आगे बढ़ाएंगे, जिससे समाज में व्याप्त बुराइयां भी दूर होंगी और देश नई ऊंचाईयों को छूएगा। उन्होंने कहा कि हम ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं, जहां भेदभाव के बजाय समानता हो।
उन्होंने कर्तव्यों के बजाय केवल अधिकारों की बात करने को देश के लिए घातक बताता और कहा कि आजादी के बाद के 75 वर्षों में हमारे समाज और राष्ट्र में एक बुराई सबके भीतर घर कर गई है। ये बुराई है, अपने कर्तव्यों से विमुख होना, अपने कर्तव्यों को सर्वोपरि न रखना। उन्होंने कहा कि अब तक हमने सिर्फ अधिकारों की बात की, अधिकारों के लिए झगड़े, जूझे, समय खपाते रहे। अधिकार की बात, कुछ हद तक, कुछ समय के लिए, किसी एक परिस्थिति में सही हो सकती है, लेकिन अपने कर्तव्यों को पूरी तरह भूल जाना, इस बात ने भारत को कमजोर रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अमृतकाल का यह समय सोते हुए सपने देखने का नहीं, बल्कि जागृत होकर अपने संकल्प पूरे करने का है। आने वाले 25 साल, परिश्रम की पराकाष्ठा, त्याग, तप-तपस्या के 25 वर्ष हैं। सैकड़ों वर्षों की गुलामी में हमारे समाज ने जो गंवाया है, ये 25 वर्ष का कालखंड, उसे दोबारा प्राप्त करने का है। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की प्रगति में ही हमारी प्रगति है। हमसे ही राष्ट्र का अस्तित्व है, और राष्ट्र से ही हमारा अस्तित्व है। ये भाव, ये बोध नए भारत के निर्माण में हम भारतवासियों की सबसे बड़ी ताकत बन रहा है। आज देश जो कुछ कर रहा है उसमें ‘सबका प्रयास’ शामिल है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम एक ऐसी व्यवस्था बना रहे हैं, जिसमें भेदभाव की कोई जगह न हो, एक ऐसा समाज बना रहे हैं, जो समानता और सामाजिक न्याय की बुनियाद पर मजबूती से खड़ा हो, हम एक ऐसे भारत को उभरते देख रहे हैं, जिसकी सोच और अप्रोच नई है, और जिसके निर्णय प्रगतिशील हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया जब अंधकार के गहरे दौर में थी, महिलाओं को लेकर पुरानी सोच में जकड़ी थी, तब भारत मातृशक्ति की पूजा, देवी के रूप में करता था। हमारे यहां गार्गी, मैत्रेयी, अनुसूया, अरुंधति और मदालसा जैसी विदुषियां समाज को ज्ञान देती थीं। कठिनाइयों से भरे मध्यकाल में भी इस देश में पन्नाधाय और मीराबाई जैसी महान नारियां हुईं। अमृत महोत्सव में देश जिस स्वाधीनता संग्राम के इतिहास को याद कर रहा है, उसमें भी कितनी ही महिलाओं ने अपने बलिदान दिये हैं। कित्तूर की रानी चेनम्मा, मतंगिनी हाजरा, रानी लक्ष्मीबाई, वीरांगना झलकारी बाई से लेकर सामाजिक क्षेत्र में अहिल्याबाई होल्कर और सावित्रीबाई फुले तक, इन देवियों ने भारत की पहचान बनाए रखी।
प्रधानमंत्री ने इससे पहले वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से ब्रह्म कुमारी संस्था द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित सालभर चलने वाली पहलों का अनावरण किया गया, जिसमें 30 से अधिक अभियान, 15,000 से अधिक कार्यक्रम और आयोजन शामिल हैं। प्रधानमंत्री ने ब्रह्मकुमारी की सात पहलों को हरी झंडी दिखाई। इन पहलों में ‘मेरा भारत स्वस्थ भारत’आत्म निर्भर भारत , आत्मनिर्भर किसान, महिलाएं, भारत की ध्वजवाहक, शांति बस अभियान की शक्ति, अनदेखा भारत साइकिल रैली, यूनाइटेड इंडिया मोटर बाइक अभियान और स्वच्छ भारत अभियान के तहत हरित पहल शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि ब्रह्मकुमारी एक विश्वव्यापी आध्यात्मिक आंदोलन है, जो व्यक्तिगत बदलाव और विश्व नवीकरण के लिए समर्पित है। ब्रह्मकुमारी की स्थापना वर्ष 1937 में हुई थी, जिसका 130 से अधिक देशों में विस्तार हो गया है। यह आयोजन ब्रह्मकुमारियों के संस्थापक पिता पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा की 53वीं अधिरोहण वर्षगांठ के अवसर पर हो रहा है।
(सौजन्य सिंडिकेट फीड)
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