‘‘राष्ट्रीय हित और सैद्धांतिक राजनीति पर हम चट्टान की तरह अडिग हैं’’-अमित शाह
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‘‘राष्ट्रीय हित और सैद्धांतिक राजनीति पर हम चट्टान की तरह अडिग हैं’’-अमित शाह

by WEB DESK
Jan 19, 2022, 01:09 am IST
in भारत, साक्षात्कार, दिल्ली
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह

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2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष और वर्तमान में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने एक लंबा साक्षात्कार लिया था। वह साक्षात्कार 5 मई, 2019 के अंक में प्रकाशित हुआ था। उसे यहां संपादित करके फिर से प्रकाशित किया जा रहा है।

 

तीन चरणों के चुनाव के बाद भारतीय जनता पार्टी के प्रति देश के लोगों के उत्साह को कैसा पाते हैं आप?
देखिए, मत की अभिव्यक्ति अब हो रही है लेकिन भाजपा का प्रचार अभियान छह महीने पहले से ही जारी था। मैं लगातार देशभर में घूम रहा हूं, कार्यकर्ताओं से मिल रहा हूं और आम लोगों के बीच जाकर मिलता हूं तो भारतीय जनता पार्टी के प्रति एक अभूतपूर्व लहर के दर्शन होते हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए देश के सभी हिस्सों में एक प्रचंड लहर देखने को मिल रही है। 

विरोधी कह रहे हैं कि भाजपा अपने काम की बजाय पाकिस्तान और राष्ट्रभाव के नाम पर चुनाव लड़ रही है!
यह विरोधियों की छटपटाहट है। पांच वर्ष के सुशासन के बाद हम कह सकते हैं कि जितना काम भाजपा ने इस दौरान किया, वह अभूतपूर्व है। लोगों के जीवन में, देश के बुनियादी ढांचे में और भारत के बारे में दुनिया की सोच में बहुत बड़ा सकारात्मक अंतर आया है। पाकिस्तान और आतंकवाद को जैसी प्रतिक्रिया इस दौरान मिली, वह जरूरी थी। यह बात किसी और देश से ज्यादा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की है। रही बात देशभक्ति की तो हमारा मानना है कि यह देश के लिए, लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। देशभक्त नागरिकों के बिना देश की कल्पना कैसी?

आपने कहा कि भारतीय जनता पार्टी और राजग पहले के चुनाव से भी ज्यादा बहुमत के साथ यह चुनाव जीतेंगे। यह भावनात्मक आशा है या इसका कोई तार्किक आधार भी पाते हैं?
 देखिए, भावना से जनसमर्थन नहीं मिलता। जनसमर्थन सरकार के ठोस कामों से मिलता है। इसलिए मैं आपको बताना चाहता हूं कि देश की सुरक्षा के बारे में नरेंद्र मोदी जी ने एक भरोसा खड़ा किया है। आज आम लोग मानते हैं कि इस शासन में देश सुरक्षित है। दूसरा 50 करोड़ गरीबों में एक आशा का संचार देखा गया है। 22 करोड़ परिवारों को लाभ मिला है। 

यह सब 2014 के बाद हुआ, किन्तु क्या इससे पहले कुछ नहीं हुआ?
हुआ, किन्तु पूर्व की सरकार और इस सरकार में अंतर है। 2014 के पहले दस साल तक देश में संप्रग की सरकार रही। इस दौरान दुनिया में देश का गौरव रसातल में पहुंचता गया। आजादी के बाद पहली बार देश की जनता को लगता है कि एक ऐसा प्रधानमंत्री आया है जो 125 करोड़ लोगों के लोकतंत्र को दुनिया में उचित सम्मान दिला पाया है। इसके अलावा देश के अर्थतंत्र को चुस्त-दुरुस्त करने में सफलता मिली है। 
ल्ल    आपने परिवारवाद की कोशिश को रोकने की बात की, इस बार पार्टी के संस्थापक सदस्य भी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। उनकी भूमिका और योगदान को आप कैसे देखते हैं?
देखिए, यह निर्णय किसी एक नेता के लिए नहीं हुआ है। 75 वर्ष के ऊपर के 22 ऐसे नेता थे, जिन्हें टिकट नहीं दिया गया है। तो यह निर्णय सबके लिए समान है। पार्टी ने तय किया है कि 75 के ऊपर जिनकी आयु है, उनको अब चुनावी राजनीति में नहीं जाना चाहिए। पार्टी में और भी बहुत सारे दायित्व होते हैं तो उनका भी उपयोग होगा। इसलिए यह फैसला किसी नेता या समूह के लिए हो, ऐसा नहीं है। 
 
2014 के लोकसभा चुनाव में बात चाहे गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश की हो, भाजपा ने इन राज्यों में अधिकतर सीटें जीती थीं। इस बार के चुनाव में उन्हें बनाए रखना कितना चुनौतीपूर्ण है?
बिल्कुल चुनौतीपूर्ण है। लेकिन मुझे भरोसा है कि हम इस चुनौती को पार करेंगे और फिर एक बार जो हमारी ताकत बनी है, उसको व्यवस्थित करते हुए नए क्षेत्रों को भी साथ में जोड़ेंगे।

नागरिकता (संशोधन) विधेयक हमारी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता है। हम मानते हैं कि आस-पास के देशों में मजहबी प्रताड़ना के आधार पर वहां के धार्मिक अल्पसंख्यक जो यहां पर आए हैं, उनको घुसपैठिया नहीं मानना चाहिए। वे शरणार्थी हैं। वे स्वधर्म और स्वमान की रक्षा के लिए यहां आए हैं। इसलिए भारत का दायित्व है उनको शरण देना।

 

कुछ स्थानों से उतार-चढ़ाव की खबरें हैं। आपका मानना है कि ओडिशा के अलावा कई ऐसे राज्य हैं, जहां से भाजपा को मजबूती मिलती दिखाई दे रही है। आपको कहां-कहां से अधिक मजबूती मिलती दिखाई दे रही है?
देखिए, अकेले ओडिशा ही नहीं, पूर्वोत्तर में हमारी सीटें बढ़ रही हैं। बंगाल और कर्नाटक में भी हमारी सीटें बढ़ेंगी। 

आप उत्तर से दक्षिण तक संभावनाएं देख रहे हैं। इन संभावनाओं के बरअक्स कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस, उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा, बिहार में राजद-कांग्रेस ने गठबंधन किया है। इस तालमेल को आप कैसे देखते हैं?
आप अगर पुराने लिहाज से देखेंगे तो एक स्तर पर यह गठबंधन मायने रखता है। लेकिन अब यानी 2014 के बाद जितने भी चुनाव हुए उनमें स्पष्ट रूप से दिखा है कि दो नेताओं के ‘ड्राइंग रूम’ में बैठने से मतदाता अपने आपको उनके इशारे पर बदल देगा, अब यह संभव नहीं है। जातिवाद, तुष्टीकरण और परिवारवाद की राजनीति समाप्त हो गई है। 

आप अपने भाषणों में लगातार नागरिकता (संशोधन) विधेयक का उल्लेख कर रहे हैं। लेकिन कहीं न कहीं इसे लेकर कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। क्या इसका कुछ असर दिख रहा है आपको?
देखिए, नागरिकता (संशोधन) विधेयक हमारी सैद्धांतिक प्रतिबद्धता है। हम मानते हैं कि आस-पास के देशों में मजहबी प्रताड़ना के आधार पर वहां के धार्मिक अल्पसंख्यक जो यहां पर आए हैं, उनको घुसपैठिया नहीं मानना चाहिए। वे शरणार्थी हैं। वे स्वधर्म और स्वमान की रक्षा के लिए यहां आए हैं। इसलिए भारत का दायित्व है उनको शरण देना। और हम उनको नागरिकता देने के लिए अडिग हैं। राष्ट्रीय हित और सैद्धांतिक राजनीति पर हम चट्टान की तरह अडिग हैं। इसलिए जैसे ही राज्यसभा में हमारा बहुमत होगा, हम इस बिल को पारित करेंगे।
 
विपक्ष बार-बार ईवीएम को मुद्दा बना रहा है। क्या कहेंगे आप इस पर?
मेरा इस पर इतना ही कहना है कि विपक्ष को फिर तीन राज्यों में शपथ क्यों लेनी चाहिए थी? अगर ईवीएम गलत है तो फिर जो जीत ईवीएम से हुई है, उसे स्वीकार न करते। यानी जहां जीतते हैं वहां ईवीएम ठीक है, जहां हारते हैं, वहां ईवीएम ठीक नहीं है। और अभी तो मतगणना शुरू भी नहीं हुई, अभी से वे अपनी पराजय मान चुके हैं। इसलिए पहले चरण से ही उन्होंने यह बहाना निकालना शुरू कर दिया।    
 

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