अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का 16वां त्रैवार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन 25 एवं 26 दिसंबर, 2021 को हरदोई (उत्तर प्रदेश) में संपन्न हुआ। अधिवेशन का केंद्रीय विषय था- ‘साहित्य का प्रदेय।’ देशभर के भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों ने उपर्युक्त विषय पर अनेक सत्रों में चर्चा की। अधिवेशन का उद्घाटन पद्म पुरस्कार से सम्मानित कन्नड़ के विख्यात उपन्यासकार श्री एस.एल. भैरप्पा ने किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख श्री स्वान्त रंजन ने कहा कि अंग्रेजों ने सुनियोजित तरीके से भारत एक राष्ट्र नहीं है और आर्य बाहर से आए इत्यादि मनगढ़ंत बातें फैलार्इं। आज ये सब बातें असत्य सिद्ध हो चुकी हैं। भारत प्राचीन राष्ट्र है।
शहर में रहने वाले, गांव, वनवासी और गिरिवासी सभी मूल निवासी हैं। उन्होंने आगे कहा कि जैसे राष्ट्र और नेशन अलग हैं, उसी तरह धर्म और रिलीजन अलग हैं। आज आवश्यकता है इन सब बातों को हम साहित्य के विविध माध्यमों से समाज के सामने रखें। अधिवेशन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री श्रीधर पराड़कर ने कहा कि साहित्य का लेखन भारत की परंपरा व संस्कृति के अनुरूप होना चाहिए।
साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय महामंत्री श्री ऋषि कुमार मिश्र ने प्रतिवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि कोरोना के प्रकोप के कारण जब प्रत्यक्ष काम संभव नहीं था, उस समय हमारी लोकभाषाएं, हमारी लोकयात्राएं और हमारे लोक देवी-देवताओं पर देशभर में 350 स्थान पर आभासी माध्यम से संगोष्ठियों का आयोजन हुआ।
अधिवेशन में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. बलवंत भाई जानी, श्री देवेंद्र चंद्र दास, प्रो. संजीव शर्मा, ‘साहित्य परिक्रमा’ के संपादक डॉ. इन्दुशेखर तत्पुरुष, श्री अभिराम भट्ट आदि की सहभागिता उल्लेखनीय रही।
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