दृढ़ता और कड़े फैसलों की राह पर जर्मनी
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दृढ़ता और कड़े फैसलों की राह पर जर्मनी

by WEB DESK
Dec 24, 2021, 10:07 am IST
in भारत, दिल्ली
जर्मनी के नए चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और निवर्तमान चांसलर एंजिला मर्केल (सीएनबीसी से साभार)

जर्मनी के नए चांसलर ओलाफ शॉल्त्स और निवर्तमान चांसलर एंजिला मर्केल (सीएनबीसी से साभार)

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ओलाफ शॉल्त्स खुद को मर्केल के सच्चे वारिस के रूप में पेश कर जर्मनी के नए चांसलर बने। परंतु गठबंधन के दवाब में नई सरकार की नीतियां बदलने के संकेत। आधुनिकीकरण, डिजिटलीकरण, शरणार्थियों को नागरिकता, ईयू की ऊर्जा संप्रभुता और चीन के प्रति ज्यादा सख्ती नई सरकार की प्राथमिकता

आदर्श सिंह

जर्मनी में 16 वर्ष बाद एंजिला मर्केल युग का अंत होने के साथ ओलाफ शॉल्त्स नए चांसलर बन गए हैं। मर्केल ने इन वर्षों में एक तरह से यूरोपीय समुदाय (ईयू) की बागडोर अपने हाथों में थामे रखी, जर्मनी को यूरोप के नेता के तौर पर स्थापित किया और यूक्रेन या शरणार्थी संकट के समय हमेशा संकटमोचन की भूमिका में रहीं। एक अरसे तक पश्चिम के लिए वे रूस व उसके राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के साथ मध्यस्थ की भूमिका में रहीं। निस्संदेह वे करिश्माई नेता थीं लेकिन हमेशा से जर्मन राजनीति में ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाने वाली उनकी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी को 2017 के 32.9 प्रतिशत की तुलना में इस चुनाव में सिर्फ 24.1 प्रतिशत वोटों से संतोष करना पड़ा जो उसके सबसे खराब प्रदर्शन में से एक है।

मर्केल के आखिरी कार्यकाल में उनके वित्त मंत्री रहे सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसडीपी) के नेता ओलाफ शॉल्त्स जर्मनी के नए चांसलर बने हैं। यह एक तरह से अप्रत्याशित जीत है क्योंकि इस वर्ष की शुरुआत तक ऐसा लग रहा था कि एक पार्टी के रूप में एसपीडी अब खत्म होने के कगार पर है। सर्वेक्षणों में उसे सिर्फ 12 से 14 प्रतिशत वोट मिल रहे थे। शॉल्त्स पार्टी का चेहरा बनकर उभर चुके थे लेकिन इसके बावजूद एसडीपी ने एस्केन और वाल्टर-बोरजांस को अपना नेता चुन लिया। हालंकि शॉल्त्स ने हिम्मत नहीं हारी और खुद को इस तरह पेश किया मानों वे मर्केल की विरासत के सच्चे उत्तराधिकारी हैं।

यह दांव कारगर साबित हुआ क्योंकि शॉल्त्स को पता था कि मर्केल इस बार चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगी। लिहाजा मर्केल के समर्पित वोट शॉल्त्स को चले गए और 26 सितंबर को हुए चुनावों में 25.7 प्रतिशत वोटों के साथ एसडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। चुनाव के बाद जर्मनी के एक अखबार का शीर्षक था, ‘मर्केल के उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) की जीत’। लेकिन जर्मनी में जैसी कि परिपाटी है, चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता और सरकार गठन के लिए विभिन्न दलों में लंबे समय तक बातचीत का दौर चलता है। इस बार भी कोई अपवाद नहीं रहा। सरकार बनाने के लिए एसडीपी, फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी (एफडीपी) और ग्रीन पार्टी में लंबे समय तक समझौता वार्ता चली। यह आसान नहीं था। एसडीपी और ग्रीन पार्टी का जोर कल्याणकारी नीतियों की ओर ज्यादा है जबकि एफडीपी मुक्त व्यापार और कम करों की हिमायती है।

नए दौर में जर्मनी
प्रश्न यह है कि शॉल्त्स क्या बिलकुल मर्केल जैसे ही रहेंगे या कुछ बदलाव होगा? वैसे जर्मनी में सातत्य और परिवर्तन साथ-साथ ही चलते हैं लेकिन दस्तावेज से स्पष्ट है कि जर्मनी एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है। इसमें खास जोर आधुनिकीकरण पर है जिसके लिए मर्केल को नहीं जाना जाता था। नई सरकार के कुछ प्रस्तावों पर नजर डालें तो मर्केल की उदार दक्षिणपंथी सरकार के समय यह असंभव था। जैसे गांजा-भांग की खरीद और बिक्री को वैधता प्रदान करना, मतदान की आयु 16 वर्ष करना और चिकित्सकों द्वारा गर्भपात के विज्ञापन को अनुमति देना इत्यादि। खास तौर से कभी हाशिए पर रही ग्रीन पार्टी अपने एजेंडे को पूरा करने में काफी हद तक सफल रही है। नतीजतन गठबंधन के एजेंडे में जर्मनी में कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों को 2038 की तय समयसीमा से आठ साल पहले 2030 तक बंद करने और 80 प्रतिशत नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य है। साथ ही रेल से मालवहन में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी और 2030 तक डेढ़ करोड़ इलेक्ट्रिक कारें सड़कों पर उतारने का लक्ष्य रखा गया है। शरणार्थियों के प्रति उदारता जारी रहेगी। श़ॉल्त्स सरकार एक नया विधेयक पेश करेगी जिससे शरणार्थियों को नागरिकता मिलनी आसान हो जाएगी। अब जर्मनी में तीन साल से निवास कर रहे लोग भी वहां की नागरिकता के पात्र होंगे और साथ ही वे अपनी पुरानी नागरिकता भी रख सकते हैं।

चीन पर सख्ती के संकेत
जर्मनी की नई गठबंधन सरकार में वामपंथी रुझान की प्रमुखता है लेकिन इसकी विदेश नीति अगर मर्केल से भी ज्यादा दक्षिणपंथी हो तो आश्चर्य की कोई बात नहीं। चांसलर शॉल्त्स ईयू के हिमायती हैं और उनकी पहली विदेश यात्रा फ्रांस और ब्रूसेल्स (ईयू का मुख्यालय) की होगी। शॉल्त्स का कहना है कि फ्रांस और जर्मनी के बीच मैत्री यूरोपीय समुदाय (ईयू) के लिए अत्यंत आवश्यक शर्त है। हालांकि खबरों के मुताबिक उन्होंने अक्तूबर में यूरोपीय काउंसिल के अध्यक्ष को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को यह संदेश देने को कहा था कि वे मर्केल की व्यावहारिक नीतियों को जारी रखेंगे लेकिन बाद में उनके सुर बदल गए। इसके कारण गठबंधन में हैं। जर्मनी की नई विदेश मंत्री और ग्रीन पार्टी नेता अन्नालेना बेअरबाख पहले ही कह चुकी हैं कि चीन के साथ संबंधों में उनका रुख ‘संवाद और दृढ़ रवैये’ का होगा। पिछले 151 साल में जर्मनी की पहली महिला विदेश मंत्री बेअरबाख ने कहा कि हम जितने हैं, उससे हमें खुद को कमतर नहीं आंकना चाहिए। यूरोप दुनिया के सबसे बड़े एकल बाजार में से एक है और चीन के इसमें बहुत सारे हित हैं।

जर्मनी अपनी विदेश में और मुखर होगा भले ही इसके पीछे गठबंधन सहयोगियों का दबाव ही क्यों न काम कर रहा हो। इसका उदाहरण है रूस की नोर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइप लाइन जो कि बनकर तैयार पड़ी है लेकिन रूस के तमाम दबावों के बावजूद इसका परिचालन शुरू नहीं हो पाया है। ग्रीन पार्टी ने अपने गठबंधन सहयोगियों को इस बात के लिए मना लिया है

दूसरी तरफ वित्त मंत्री और एफडीपी के नेता क्रिस्टियन लिंडनर लंबे समय से चीन के खिलाफ सख्त रवैये के लिए जाने जाते हैं। वे लोकतंत्र समर्थकों के प्रदर्शनों के साथ एकजुटता दर्शाने के लिए 2019 में हांगकांग भी जा चुके हैं। निश्चित रूप से गठबंधन के अहम घटक के नेता और वित्त मंत्री के रूप में चीन के प्रति उनका रवैया वैसा नहीं रहेगा जैसा मर्केल सरकार के समय था। इसका अर्थ यह भी है कि ईयू ने चीन को लेकर जो समग्र यूरोपीय रणनीति बनाने का वादा किया है, उसे चाहकर भी रोका नहीं जा सकता।

रूस पर दबाव
स्पष्ट है कि जर्मनी अपनी विदेश में और मुखर होगा भले ही इसके पीछे गठबंधन सहयोगियों का दबाव ही क्यों न काम कर रहा हो। इसका उदाहरण है रूस की नोर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइप लाइन जो कि बनकर तैयार पड़ी है लेकिन रूस के तमाम दबावों के बावजूद इसका परिचालन शुरू नहीं हो पाया है। ग्रीन पार्टी ने अपने गठबंधन सहयोगियों को इस बात के लिए मना लिया है कि इस परियोजना में यूरोपीय नियम-कानूनों का पालन करना होगा अर्थात् पहले जर्मन नियामकों की मंजूरी से एक जर्मन कंपनी बनाई जाएगी और परियोजना में यूरोपीय आयोग का भी दखल होगा। ग्रीन ने इस तरह से रूस पर काफी दबाव डाल दिया है और ऐसे में यदि वह यूक्रेन पर हमले जैसा कोई कदम उठाता है तो परियोजना के खटाई में पड़ने के पूरे आसार हैं। जर्मनी पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि ऐसी किसी भी स्थिति में वह अमेरिका व अन्य सहयोगी देशों के साथ खड़ा रहेगा और रूस के खिलाफ व्यापक आर्थिक पाबंदियां लगाने में नहीं हिचकेगा।
(लेखक साइंस डिवाइन फाउंडेशन से जुड़े हैं और रक्षा एवं वैदेशिक मामलों में रुचि रखते हैं)

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