पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री एवं वर्तमान में बिहार विधान परिषद के सदस्य डाॅ. संजय पासवान की बेटी अदिति राज के विवाह में कई प्रचलित नियम टूटे। उनका विवाह पौष शुक्ल पक्ष पंचमी अर्थात् विवाह पंचमी को हुआ और वह भी दिन में। अमूमन लोग इस दिन विवाह करने से परहेज करते हैं। बिहार में सामान्यतः दिन में विवाह नहीं होता है। अंतर्जातीय विवाह को आज भी उतनी मान्यता नहीं मिली है। इसके बावजूद उनका विवाह दूसरी जाति के लड़के से हुआ। विवाह वैदिक रीति से हुआ और वह भी महिला पुरोहित द्वारा। यानी इस विवाह ने कई वर्जनाओं को तोड़ दिया। इसे सामाजिक समरसता के लिए अच्छी पहल कह सकते हैं।
दिल्ली के मैत्रेयी काॅलेज में संस्कृत की अध्यापक अदिति का विवाह प्रयागराज निवासी अधिवक्ता एवं उद्यमी राज सिंह के साथ संपन्न हुआ। इस विवाह में पुरोहित थीं महाराष्ट्र के ठाणे जिले की गौरी खुंटे और वृंदा दांडेकर। गौरी खुंटे गत 15 वर्ष से यह कर्मकांड करा रही हैं। उन्होंने वैदिक कर्मकांड की शिक्षा सुनील जोशी से ग्रहण की है। समाज में महिला पुरोहितों को प्रतिष्ठापित करने के लिए उन्होंने यह कर्मकांड 1997 से सीखना प्रारंभ किया। प्रारंभ में छोटे-मोटे धार्मिक अनुष्ठान कराती थीं। उन्होंने लोगों को प्रेरित किया कि महिला पुरोहितों की भी हिन्दू परंपरा में भूमिका रही है। यह शास्त्र—सम्मत है। प्रारंभ में काफी दिक्कतें आईं, लेकिन धीरे-धीरे मार्ग सुगम होता चला गया। इन्हें वृंदा दांडेकर का साथ मिला। अब ये दोनों सप्ताह में तीन दिन- बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को वैदिक कर्मकांड की निःशुल्क शिक्षा महिलाओं को देती हैं। इनका केंद्र मुंबई के समीप ठाणे जिले के डोंभीवली में है। अब इन्हें सहयोगी भी मिलने लगे हैं। एक छोटी टोली इस क्षेत्र में कार्य कर रही है, जिसमें गौरी और वृंदा के अलावा निशा भावे और अलका जैसी महिलाएं हैं।
महिलाओं को प्रारंभ में पुराणों की शिक्षा दी जाती है। फिर वैदिक कर्मकांड बताए जाते हैं। गौरी कहती हैं, ''हमारे केंद्र में महिलाओं के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था है, परंतु दुर्भाग्य से कुछ ही महिलाएं पूरी शिक्षा प्राप्त करती हैं। पहले लोग महिला पुरोहित की बात सुनकर खिल्ली उड़ाते थे, लेकिन अब धीरे-धीेरे स्वीकार करने लगे हैं। यज्ञोपवीत हो या फिर विवाह, मुंडन संस्कार हो या फिर गृह प्रवेश अथवा भूमिपूजन; सभी मांगलिक अवसरों पर लोग बुलाने लगे हैं।''
विशेष बात यह है कि कोई संस्कार संपन्न कराने के लिए ये महिला पुरोहित किसी तरह की मांग नहीं करती हैं। उन्हें जो कुछ श्रद्धा से दिया जाता है, उसे ही वह ग्रहण कर वापस चली जाती हैं। इस कारण अब इनकी मांग बढ़ती जा रही है।
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