भूजल में सबसे अधिक आर्सेनिक पाए जाने वाले राज्यों में शुमार पश्चिम बंगाल के निवासियों के लिए चिंता बढ़ती ही जा रही है। इसकी वजह है कि यहां पानी के साथ अब चावल में भी बड़े पैमाने पर आर्सेनिक पाया गया है। बंगाल देश का एक ऐसा राज्य है, जहां सालभर धान की खेती होती है। यहां के मूल निवासी बंगाली समुदाय रोटी के बजाय चावल ही सबसे अधिक खाता है और रिसर्च में इस बात का खुलासा हुआ है कि आर्सेनिक की मौजूदगी पानी के अलावा चावल में अधिक है। इतना ही नहीं चावल के डंठल जो धान झाड़ने के बाद जानवरों को खिलाने के लिए इस्तेमाल होता है, उसमें भी आर्सेनिक की मात्रा चौंकाने वाले स्तर पर मिला है। यानी लोगों के साथ-साथ मवेशी भी आर्सेनिकयुक्त चारा खाने को मजबूर हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने पहले ही बता दिया है कि आर्सेनिकयुक्त भोजन शरीर में कैंसर की शुरुआत का कारण बनता है, इसलिए अब इस नए रिसर्च से लोगों की चिंता बढ़ने लगी है।
भूजल प्रबंधन और सुधार के लिए पिछले 20 सालों से काम करने वाले जादवपुर के मशहूर प्रोफेसर डॉ. तड़ित राय चौधरी ने बताया कि यहां चावल में भी आर्सेनिक की मौजूदगी चिंता बढ़ाने वाली है। अगर इस पर जल्द कुछ नहीं किया गया तो यह बड़ी आबादी की सेहत के लिए खतरा होगा। स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट स्टडीज के डायरेक्टर और शोधकर्ताओं में शामिल चौधरी कहते हैं, "शोध में धान का बीज लगाने के शुरुआती दौर में यानी 28 दिनों में पौधों में ज्यादा आर्सेनिक पाया गया। इसके बाद 29 से 56 दिनों की अवधि में पौधों में आर्सेनिक की मात्रा कम रही, लेकिन फसल की कटाई के समय दोबारा आर्सेनिक की मात्रा बढ़ गई।" उन्होंने आगे कहा, "शोध से पता चलता है कि आयरन में आर्सेनिक को सोखने की क्षमता है। यानी अगर धान की बुआई से लेकर कटाई तक अगर खेतों में आयरन का इस्तेमाल किया जाये, तो चावल में आर्सेनिक के प्रवेश को रोका जा सकता है।"
बंगाल में एक करोड़ से अधिक लोग प्रभावित
पश्चिम बंगाल के मालदह, मुर्शिदाबाद, नदिया, उत्तर एवं दक्षिण 24 परगना, बर्दवान, हावड़ा और हुगली समेत कुल 9 जिलों के 79 ब्लॉकों में रहने वाले एक करोड़ से ज्यादा लोग आर्सेनिक के शिकंजे में हैं। पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक की मौजूदगी की जानकारी तीन दशक पहले वर्ष 1983 में ही मिल गई थी। सबसे पहले उत्तर 24 परगना के बारासात और दक्षिण 24 परगना जिले के बारुईपुर में आर्सेनिकयुक्त पानी मिला था। इसके बाद मुर्शिदाबाद, मालदा, नदिया व अन्य जिलों में इसकी मौजूदगी पाई गई। महानगर कोलकाता का दक्षिणी हिस्सा भी आर्सेनिक से अछूता नहीं है। कोलकाता शहर में यादवपुर, बांसद्रोणी, रानीकुठी, नाकतला, गरिया, बाघाजतिन, बोड़ाल व टॉलीगंज में भी भूगर्भ जल में आर्सेनिक मिला है। राय चौधरी ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन व इंडियन वाटर क्वालिटी स्टैंडर्ड के अनुसार, पानी में आर्सेनिक की सर्वोच्च मात्रा प्रति लीटर 10 माइक्रोग्राम होनी चाहिए, लेकिन कई जगहों पर इसकी मात्रा काफी अधिक है। कहीं-कहीं तो प्रति लीटर पानी में 3700 माइक्रोग्राम आर्सेनिक पाया गया है, अर्थात उपयुक्त मात्रा से लगभग 370 गुना अधिक।
आर्सेनिक मुक्त जलापूर्ति के सरकारी दावे खोखले
पश्चिम बंगाल सरकार दावा करती है कि 90 फीसदी से ज्यादा लोगों को आर्सेनिकमुक्त पानी मुहैया कराया जा रहा है। सरकार का यह भी दावा है कि लोगों को साफ पानी उपलब्ध कराने के लिये हर साल सरकार लाखों रुपये खर्च कर रही है, लेकिन शोध में सामने आये तथ्य बता रहे हैं कि पानी ही नहीं अब तो खाने में भी आर्सेनिक है। राज्य सरकार साफ पानी मुहैया कराने की योजनाओं पर भले ही लाखों रुपए खर्च करने का दावा कर रही है, लेकिन ये शोध बताते हैं कि जमीनी स्तर पर इसका फायदा नहीं मिल रहा है। खासकर आम लोगों को इस बारे में कोई जानकारी भी नहीं है, जिसकी वजह से लोग बचने के लिए भी कोई उपाय नहीं करते। तीन दशक पहले भूजल में धुले इस जहर के बारे में जानकारी मिल जाने के बावजूद लोग उसी पानी को और वैसे ही अन्न को पीने-खाने के लिए मजबूर हैं।
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