पूनम नेगी
बाबा विश्वनाथ यानी भगवान शंकर काशी के राजा हैं और काल भैरव उनके कोतवाल। बाबा की नगरी के ये अनोखे कोतवाल लोगों को आशीर्वाद भी देते हैं और दंड भी। मान्यता है कि काशी विश्ननाथ का दर्शन तभी फलित होता है जब उनसे पहले उनके कोतवाल के द्वार पर हाजिरी बजाई जाती है। कालभैरव का प्रमुख दायित्व है शिवनगरी काशी की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। जनआस्था है कि काशी में दंड देने के अधिकार सिर्फ शिव एवं काल भैरव को ही है। खुद यमराज भी बिना इजाजत के यहां किसी के प्राण नहीं हर सकते। आज भी काशी में यह परम्परा कायम है कि यहां आने वाला हर प्रशासनिक अधिकारी सबसे पहले काल भैरव के दरबार में जाकर उनका आशीर्वाद लेकर ही अपना काम शुरू करता है। गौरतलब है कि भैरव बाबा के मंदिर के पास की कोतवाली में कोतवाल की कुर्सी पर कोई नहीं बैठता, क्योंकि लोगों का गहरा विश्वास है कि काल भैरव स्वयं उस कोतवाली का निरीक्षण करते हैं। काशी के कालभैरव की आठ चौकियां हैं- भीषण भैरव, संहार भैरव, उन्मत्त भैरव, क्रोधी भैरव, कपाल भैरव, असितंग भैरव, चंड भैरव और रौरव भैरव।
अंधकासुर का किया था अंत
शास्त्रीय मान्यता के मुताबिक मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को प्रदोष काल में भगवान शंकर के अंश से कालभैरव की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस तिथि को भैरव जयंती व कालाष्टमी के रूप में भोलेबाबा की नगरी में अत्यंत श्रद्धा से मनाया जाता है। भगवान शंकर के अंशावतार काल भैरव की उत्पत्ति का रोचक कथानक शिवमहापुराण में मिलता है। शिवपुराण में वर्णित कथानक के मुताबिक एक बार आदियोगी महादेव शिव समाधि में लीन थे तभी शक्तिमद के अहंकार में चूर महादैत्य अंधकासुर ने उनपर आक्रमण कर उनकी समाधि तोड़ दी। इस अप्रत्याशित व्यवधान से भगवान शिव का क्रोध भड़क उठा और उनकी क्रोधाग्नि उत्पन्न काल भैरव ने तत्क्षण अंधकासुर का अंत कर डाला। स्कंदपुराण के काशी-खंड में भी काल भैरव के प्राकट्य की कथा विस्तार से वर्णित है।
औरंगज़ेब को भी झुकना पड़ा था
जानना दिलचस्प हो कि काशी के कोतवाल कालभैरव की शक्ति ने औरंगज़ेब जैसे क्रूर मुगल बादशाह को भी अपने आगे झुका दिया था। औरंगजेब के शासनकाल में जब काशी के विश्वनाथ मंदिर का ध्वंस किया गया, तब भी कालभैरव का मंदिर पूरी तरह अछूता बना रहा। कहा जाता है कि कालभैरव का मंदिर तोड़ने के लिये जब औरंगज़ेब के सैनिक वहां पहुंचे तो अचानक पागल कुत्तों का एक बड़ा झुंड न जाने कहां से निकल आया और मुगल सेना पर धावा बोल दिया। उन कुत्तों ने जिन सैनिकों को काटा वे तुरंत पागल हो गये और फिर उन्होंने स्वयं अपने ही साथियों को काटना शुरू कर दिया। बादशाह को अपनी जान बचा कर भागने के लिये विवश होना पड़ा। औरंगज़ेब ने अपने अंगरक्षकों द्वारा अपने ही सैनिक सिर्फ इसलिये मरवा दिये कि पागल होते सैनिकों का सिलसिला कहीं खुद उसके पास तक न पहुंच जाएं।
काल भैरव स्वयं अपनी उपस्थिति का कराते हैं एहसास
बताते चलें कि काशी की ही तरह महाकाल की नगरी उज्जैन में भी एक ऐसा मंदिर है, जहां काल भैरव स्वयं अपनी उपस्थिति का अहसास कराते हैं। यहां हर दिन भगवान काल भैरव भक्तों की मदिरा रूपी बुराई को निगल लेते हैं और उनके हर कष्ट को सहज ही दूर कर देते हैं। बाबा काल भैरव के इस धाम एक और बड़ी दिलचस्प चीज है, जो भक्तों का ध्यान बरबस अपनी ओर खींच लेती है और वो है मंदिर परिसर में मौजूद ये दीपस्तंभ। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस दीपस्तंभ की दीपमालिकाओं को प्रज्ज्वलित करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। हिन्दू धर्म में काल भैरव को तंत्र शास्त्र का प्रमुख देवता माना गया है। तंत्राचार्यों की मान्यता है कि जिस प्रकार अपौरुषेय वेदों में आदि पुरुष का चित्रण रुद्र रूप में किया गया है; तंत्र शास्त्र में वही मान्यता कालभैरव की है। तंत्र साधक इन्हें कलियुग का जागृत देवता मानते हैं। वशीकरण, उच्चाटन, सम्मोहन, स्तंभन, आकर्षण और मारण जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए काल भैरव साधना की जाती है। तंत्रशास्त्र अनुसार शनि और राहु की बाधाओं से मुक्ति के लिए भैरव की पूजा अचूक होती है। कहा जाता है कि काल भैरव की पूजा से घर में नकारात्मक ऊर्जा, जादू-टोने, भूत-प्रेत आदि काली शक्तियों का भय नहीं रहता। इनकी आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है।
बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक हैं भैरवनाथ
वस्तुतः भैरव का तात्विक अर्थ है भय का हरण कर जगत का भरण पोषण करने वाला। भैरवनाथ महादेव शिव के गण और जगजननी पार्वती के अनुचर माने जाते हैं। स्वयं भगवान शिव ने उन्हें अपनी नगरी काशी का कोतवाल नियुक्त किया है। सामान्य तौर पर श्रद्धालुओं में काल भैरव के दो रूपों का पूजन का प्रचलन में है-पहला रुद्र भैरव और दूसरा बटुक भैरव। "तंत्रसार" में भैरवनाथ का असितांग, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहारक के नाम से भी उल्लेख मिलता है। इनके पूजन की परम्पराएं व पद्धतियां भी भिन्न-भिन्न हैं। नाथ सम्प्रदाय में काल भैरव की पूजा की विशेष महत्ता है। इस पंथ के अनुयायी मानते हैं कि भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी होती है। भैरव के सौम्य स्वरूप बटुक भैरव व आनंद भैरव कहते हैं। उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी मानी जाती है। खेद का विषय है कि इन दिनों तंत्र शास्त्र में भैरव की कृपा पाने के लिए कुछ छद्म तंत्रसाधक वाममार्गी कापालिक क्रियाओं का प्रयोग अधिक करने लगे हैं। भैरव का भयावह चित्रण कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले लोगों को भगवान भैरव माफ करें। दरअसल, भैरव वैसे नहीं हैं जैसा कि उनका चित्रण किया गया है। वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं। उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है। भैरव साधकों को कुत्ते को कभी दुत्कारना नहीं चाहिए, बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं। जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें। सात्विक आराधना करें। भैरव साधना में अपवित्रता वर्जित मानी गयी है।
टिप्पणियाँ