ललित कौशिक
देश के प्रधानमंत्री का एक नारा बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध हुआ था कि सौंगध मुझे इस मिट्टी की मैं देश नही झुकने दूंगा। इस कथन को सच साबित कर दिखाया देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने। जहां करीब 14 महीने पहले किसानों के फायदे के लिए आए तीनों कानूनों को संसद में पास करवा दिया। लेकिन किसानों की आढ़ में कुछ लोग कुछ ही किसानों को बहकाने में सफल हो गए। जिन्होंने 26 नवंबर 2020 को दिल्ली की सभी सीमाओं पर आंदोलन शुरू कर दिया। इस दौरान देश के मंत्रियों की 11 बार वार्ता हुई, और कानूनों में खामियां क्या है। इसका जवाब भी वो आंदोलनकारी दे नहीं पाए। करीब एक साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुनानक देव जी प्रकाशोत्सव में मात्रा में भले ही कम हो, लेकिन कुछ किसानों के सामने स्वयं ही झुकते हुए। माफी मांगते हुए तीनों कृषि कानूनों को रद्द करवाने की बात कह दी।
वहीं दूसरी ओर आजादी के मात्र 28 साल बाद ही देश को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने अहम के लिए देश को आपातकाल के दंश धकेल दिया था। आपातकाल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर के साथ देश में आपातकाल लागू हो गया। समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में संदेश सुना कि भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है। लेकिन इससे सामान्य लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई 25 जून की रैली का समाचार पूरे देश में न फैल सके इसके लिए दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली रात में ही काट दी गई। रात को ही इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आर के धवन के कमरे में बैठ कर संजय गांधी और ओम मेहता उन लोगों की लिस्ट बना रहे थे, जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था। ये सब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने अहम के लिए देख को अंधकार में धकेल दिया।
बौखला गई थीं इंदिरा गांधी
इसकी जड़ में 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया। और इंदिरा गांधी के प्रतिद्वंदी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था। राजनारायण सिंह की दलील थी कि इन्दिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए गलत तरीकों का इस्तेमाल किया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया था। इसके बावजूद इंदिरा गांधी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। तब कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा था कि इन्दिरा गांधी का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है। इस चोट से इंदिरा गांधी बौखला गईं। इन्दिरा गांधी ने अदालत के इस निर्णय को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।
इंदिरा और संजय दोनों ही हार गए थे चुनाव
उस समय आकाशवाणी ने रात के अपने एक समाचार बुलेटिन में यह प्रसारित किया कि अनियंत्रित आंतरिक स्थितियों के कारण सरकार ने पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी है। आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा था, 'जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी। इस दौरान जनता के सभी मौलिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। सरकार विरोधी भाषणों और किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया था। आपातकाल के जरिए इंदिरा गांधी जिस विरोध को शांत करना चाहती थीं, उसी ने 19 महीने में देश का बेड़ागर्क कर दिया। संजय गांधी और उनकी तिकड़ी से लेकर सुरक्षा बल और नौकरशाही सभी निरंकुश हो चुके थे। एक बार इंदिरा गांधी ने कहा था कि आपातकाल लगने पर विरोध में कुत्ते भी नहीं भौंके थे, लेकिन 19 महीने में उन्हें गलती और लोगों के गुस्से का एहसास हो गया। 18 जनवरी 1977 को उन्होंने अचानक ही मार्च में लोकसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया। 16 मार्च को हुए चुनाव में इंदिरा और संजय दोनों ही हार गए। 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया, लेकिन अपने पीछे लोकतंत्र का सबसे बड़ा सबक छोड़ गया। यही फर्क है दो प्रधानमंत्रियों में एक ने अपनी अहम की लड़ाई में देश को गर्क में धकेल दिया था, लेकिन एक प्रधानमंत्री ने कुछ किसानों का अहम न झुके भले देश का प्रधान झुक जाएं।
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