झारखंड में आया है आंदोलनों का मौसम
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होम भारत

झारखंड में आया है आंदोलनों का मौसम

by रितेश कश्यप
Nov 19, 2021, 10:29 am IST
in भारत, बिहार
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राज्य सरकार की विफलता के कारण आज पूरे झारखंड में आंदोलन हो रहे हैं। हर वर्ग के लोग सरकार की नीतियों से परेशान होकर सड़कों पर उतर रहे हैं।  

झारखंड में इन दिनों हर ओर आंदोलनों का शोर है। राज्य में बेरोजगार युवा सरकार से नौकरी की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। वे लोग भी आंदोलन कर रहे हैं, जिनकी किसी न किसी कारण से नियुक्ति रद्द हो गई है। जिन सहायक पुलिसकर्मियों को हेमंत सरकार ने स्थाई नौकरी देने का वादा किया था, वे लोग हेमंत सरकार को उनका वादा याद दिलाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। झारखंड लोकसेवा आयोग यानी जेपीएससी के परीक्षा परिणाम में हुए घोटाले के बाद सभी अभ्यर्थी परीक्षा को रद्द करने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इधर विपक्ष अपने कार्यकर्ताओं की हत्या रोकने को लेकर आंदोलन कर रहा है। व्यवसायी अपना कारोबार बचाने के लिए अलग ही आंदोलन कर रहे हैं। इसके साथ ही जिन पारा शिक्षकों को हेमंत सोरेन ने स्थाई नौकरी देने का वादा किया था, अब वे लोग भी आंदोलन करने वाले हैं। उन्हें अभी तक नौकरी नहीं दी गई है। कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो पूरा झारखंड आंदोलन की आग में झुलस रहा है। राज्य में अगर कुछ चल रहा है तो अवैध तस्करी और ट्रांसफर—पोस्टिंग का खेल। 
इन सबके अलावा राज्य में विकास के सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं। राज्य सरकार अभी भी घोषणाओं की सरकार बन कर रह गई है। जब जनता की मांग काफी बढ़ने लगी तो सत्ताधारी विधायक अब खुद भी आंदोलन के लिए सड़कों पर आ चुके हैं। हां, यह बात अलग है कि यह आंदोलन झारखंड राज्य के विकास में सहायक टाटा कंपनी के खिलाफ हो रहा है। एक तरफ झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नए निवेशकों को झारखंड में न्योता देने का काम कर रहे हैं, दूसरी तरफ उनके विधायक टाटा कंपनी से अनुचित मांग को लेकर टाटा कंपनी को सारी सुविधाएं बंद करने की धमकी दे रहे हैं। 
उल्लेखनीय है कि 17 अक्तूबर को जमशेदपुर स्थित टाटा मोटर्स, टाटा स्टील सहित टाटा कमिंस कंपनी के गेट को सुबह 6 बजे से ही जाम कर दिया गया। जाम करने वालों का नेतृत्व पश्चिमी सिंहभूम झामुमो जिला अध्यक्ष सह चक्रधरपुर विधायक सुखराम उरांव ने किया। इस जाम के पीछे विधायक सुखराम उरांव ने तर्क दिया कि झारखंड सरकार ने यहां के स्थानीय लोगों के हित में निर्णय लिया है कि सभी निजी कंपनियों को अपने—अपने प्रतिष्ठानों में 75 फ़ीसदी स्थानीय लोगों को बहाल करना होगा। इसी बाध्यता से बचने के लिए टाटा मोटर्स और टाटा कमिंस के मुख्यालय को महाराष्ट्र ले जाया गया है। उनका कहना है कि इससे झारखंड में 15000 कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे। वहीं कंपनी की ओर से प्रेस विज्ञप्ति जारी कर बताया गया है कि पीसीपीएल के पंजीकृत कार्यालय को जमशेदपुर से पुणे स्थानांतरित करने की प्रक्रिया कुछ वर्षों पहले ही आरंभ की गई थी, ताकि वहां कारपोरेट कार्यालय में प्रशासनिक कार्यों के संचालन में सुविधा मिल सके। इसके स्थानांतरण से झारखंड राज्य अथवा जमशेदपुर में कंपनी के कारोबार, रोजगार और कल्याणकारी कार्यों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है। इसके साथ ही कहा गया है कि कंपनी झारखंड राज्य में लागू श्रम कानूनों और अन्य नियमों का पालन करती है और आगे भी करती रहेगी। 
यह वही टाटा समूह है जिसे झारखंड की शान कहा जाता है। झारखंड के लाखों लोगों को इसी टाटा समूह ने आजीविका का साधन दिया है। कोरोना के समय पूरे झारखंड में ही नहीं बल्कि पूरे देश में लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति भी इस कंपनी ने की थी। पूरे जमशेदपुर के लोगों का इस दौरान निशुल्क इलाज किया। साथ ही इसका लाभ झारखंड सरकार के कई मंत्रियों ने भी लिया। आज सरकार के मंत्री ही कंपनी को धमकी दे रहे हैं।  
कैट के राष्ट्रीय सचिव सुरेश संथालिया ने इस मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ट्वीट कर अपनी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि एक तरफ तो मुख्यमंत्री व्यापारी और अधिकारी मिलकर रोड शो कर रहे हैं कि झारखंड में ज्यादा से ज्यादा निवेश हो सके, ताकि स्थानीय युवाओं को रोजगार मिले, वहीं दूसरी ओर सरकार के ही विधायक कंपनियों के गेट को जाम कर रहे हैं और राज्य में औद्योगिक माहौल खराब कर रहे हैं। वह भी उस कंपनी का गेट जाम कर रहे हैं जो पिछले 115 साल से झारखंड और झारखंड के लोगों के लिए लगातार काम कर रही है। 
ऐसे ही हालात कुछ साल पहले पश्चिम बंगाल में भी देखे गए थे। इस कारण आज बंगाल से अनेक कंपनियां बाहर हो गई हैं और इसका नुकसान वहां के लोगों को हुआ है। 
जमशेदपुर के विधायक सरयू राय ने भी इस विषय पर तंज कसते हुए कहा कि जिस विषय का निदान सरकार की संस्थाओं में होना है वह यदि समाचार पत्रों की सुर्खियां बन कर रह जाता है तो जनता के संदर्भ में इसे क्या कहा जाएगा? जागरण करना? गुमराह करना? भड़ास निकालना या फिर खिसियानी बिल्ली का खंबा नोचना?

रितेश कश्यप
Correspondent at Panchjanya | Website

दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।

 

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