स्वाती शाकंभरी
केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह असम में गत विधानसभा चुनावों के दौरान प्रचार के लिए पहुंचे तो उन्होंने ‘लैंड जिहाद’ का मुद्दा जोर-शोर से उठाया और राज्य की सत्ता दोबारा मिलने पर इससे मुक्ति का वादा किया था। उन्होंने कभी सीधे—सीधे यह तो नहीं कहा कि ‘लैंड जिहाद’ किनकी ओर से हो रहा है, लेकिन जब—जब इसका उल्लेख आया तो उसके साथ बांग्लादेशी घुसपैठ की समस्या का भी उल्लेख उन्होंने किया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि अतिक्रमण मुक्ति के अपने अभियान में असम सरकार बांग्लादेशी अतिक्रमणकारियों पर अधिक कड़ाई करेगी। राज्य में दोबारा भाजपा की सरकार बने अब छह माह बीत चुके हैं तो इस मुद्दे का जोर पकड़ना स्वाभाविक ही था और अब यही हो रहा है। संयोग से इस समय असम में एक ऐसी सरकार है जो वादों और दावों से आगे चलकर अपने काम के जरिए आलोचकों का मुंह बंद करना जानती है। इसलिए कार्रवाई हो रही है और द्रुत गति से हो रही है। इस कड़ी में एक बड़ी घटना हुई है कि नवंबर के दूसरे हफ्ते में जब होजाई जिले के लमडिंग वन क्षेत्र में लगभग 1400 हेक्टेयर वन क्षेत्र को तीन दिन की सघन कार्रवाई के बाद अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराया गया।
होजाई की यह कहानी बड़ी दिलचस्प है। तमाम प्रयासों के बावजूद जब इसे अतिक्रमणकारियों के कब्जे से छुड़ाया नहीं जा सका था तो होजाई के पूर्व विधायक शिलादित्य देव ने जनहित याचिका के माध्यम से गुवाहाटी उच्च न्यायालय में दस्तक दी और सितंबर में आए उच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर सरकार ने नवंबर में वन्य भूमि को खाली कराया। यहां उल्लेखनीय है कि होजाई असम के उन जिलों में शामिल है जहां मुस्लिम आबादी बेतहाशा बढ़ी है और इस बढ़त ने स्थानीय जनांकिकी को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। इस समय जिले में 55 प्रतिशत से अधिक आबादी मुस्लिम समुदाय की है और इनमें भी ज्यादा बड़ी संख्या बांग्लादेशी मुस्लिमों की है।
इस घटना से लगभग एक माह पूर्व एक अन्य मुस्लिम बहुल जिले दरांग में तो अतिक्रमण मुक्ति अभियान के लिए आई पुलिस पर ही अतिक्रमणकारियों ने असामाजिक तत्वों के साथ मिलकर हमला कर दिया। इस पुलिस कार्रवाई के बाद दो लोगों की मौत भी हुई। आश्चर्यजनक यह है कि अतिक्रमित क्षेत्र में केवल 60 परिवार थे लेकिन कुल्हाड़ी, गँड़ासे, बरछी और अन्य पारंपरिक हथियारों से लैस हमलावरों की संख्या 10 हजार से ज्यादा बताई जाती है। लगभग 64 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले दरांग जिले की यह घटना बताती है कि भूमि अतिक्रमण की साजिश किस स्तर तक विधि व्यवस्था को चुनौती दे रही है।
यह स्थिति एक या दो जिलों की ही नहीं है बल्कि कमोबेश पूरा असम इससे जूझ रहा है। उन जिलों में समस्या गंभीर है, जहां मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत के आसपास है। होजाई और दरांग से पहले करीमगंज में भी हजारों बीघा वन्य भूमि अतिक्रमणकारियों से छुड़ाई गयी थी। तब भी यह मामला खूब गरमाया था। राज्य सरकार के 2019 के आकलन के अनुसार 3.87 लाख हेक्टेयर भूमि अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। इस पर व्यंग्य करते हुए मुख्यमंत्री हिमन्त विश्व सरमा कहा करते हैं कि पूरे गोवा से ज्यादा भूमि तो हमारे यहाँ अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है।
वैधानिक त्रासदी यह है कि सरकार के पास केवल भूमि का रिकॉर्ड उपलब्ध होता है, अतिक्रमणकारियों का नहीं। इस कारण सजिशकर्ताओं की स्पष्ट पहचान इंगित करना कठिन हो जाता है किन्तु यह तो स्पष्ट है कि इस तरह के अतिक्रमण का सबसे बड़ा हिस्सा मुस्लिम बहुल जिलों में है। बारपेटा, बंगाईगाँव, दरांग, धुबड़ी, ग्वालपाड़ा, हैलाकांदी, करीमगंज, मोरीगाँव, नगांव आदि में समस्या अधिक गंभीर है। वैसे बांग्लादेशी अतिक्रमण कि यह लपट सोनितपुर (तेजपुर) के ब्रह्मपुत्र तटों तक पहुँच चुकी है। सोनितपुर में अक्टूबर 2020 में अतिक्रमण मुक्ति अभियान के दौरान लगभग 2200 परिवारों को अतिक्रमित भूमि से हटाया गया लेकिन उनमें से केवल 250 परिवार ही वैध भारतीय नागरिक होने के प्रमाण उपलब्ध करा पाए।
अतिक्रमणकारियों का मुख्य निशाना वन्य भूमि के अतिरिक्त मंदिर, राष्ट्रीय पार्क, सत्र (वैष्णव संप्रदाय का पूजास्थल), आर्द्रभूमि, बाढ़ क्षेत्र इत्यादि होते हैं। इस तरह यह अतिक्रमण एक तरफ स्थानीय संस्कृति के लिए चुनौती बना हुआ है तो दूसरी ओर पर्यवारणीय क्षति भी पहुंचा रहा है। दरांग में तो एक ही शिव मंदिर के 120 बीघा जमीन पर अवैध कब्जा छुड़ाने को लेकर बीते वर्ष में बहुत गहमागहमी हो चुकी है। राज्य में ऐसे अनेक मंदिर और सत्र हैं, जिनकी सैकड़ों बीघा भूमि अतिक्रमित हो चुकी है। आचार्य शंकरदेव की जन्मस्थली पर स्थित सत्र की भूमि पर अवैध अतिक्रमण का मामला वर्ष 2006 में प्रकाश में आया था। सत्र के प्रमुख पूर्णचन्द्र देव गोस्वामी ने तब अनेक मंचों पर कहा था कि सत्र की भूमि पर बांग्लादेशियों द्वारा अतिक्रमण से अनेक तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। इस सत्र को गत वर्ष अतिक्रमणमुक्त कराया जा सका था। सितंबर 2010 में एक प्रमुख समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट असम सत्र महासभा के सलाहकार श्री श्री भद्रकृष्ण गोस्वामी के हवाले से बताया गया था कि राज्य में 39 सत्रों की कुल 7000 बीघा से अधिक भूमि अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है। इतना ही नहीं, असम के स्थानीय नागरिकों के भू-अधिकारों के संरक्षण के लिए बनी एच एस ब्रह्म समिति की रिपोर्ट के अनुसार तो 18 सत्रों का अस्तित्व ही अतिक्रमण के कारण खतरे में आ गया है। इस समिति की रिपोर्ट आने के बाद 2019 से ही राज्य सरकार हरकत में आ गयी थी। तब असम के भू-राजस्व विधि में संशोधन कर अतिक्रमण मुक्ति के लिए जिलाधीशों को अधिक अधिकार दिये गए थे। इस बदलाव का परिणाम अब असम में दोबारा भाजपा की सरकार बनने के बाद दिख रखा है।
ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर विपक्ष को अब न तो कुछ कहते बन रहा है न चुप रहते। अपने बिखर चुके वोट बैंक को संभालने की जुगत में वह ‘मानवाधिकार’ की ढाल लेकर बार बार इसमें कूदता है तथापि राज्य सरकार का अतिक्रमणमुक्ति अभियान फिलहाल बेधड़क बढ़ रहा है, प्रशासन के समक्ष एक बड़ी चुनौती है इस अभियान को बनाये रखने की और प्रदेश की भूमि को जिहादियों से मुक्त कराने की जो एक आसान काम नहीं है। इस चुनौती से निपटने में उसे भू-माफिया, कोयला-माफिया, अदरक-माफिया, वन-माफिया आदि से एक साथ जूझना होगा और साथ ही मानवाधिकार, देशी-विदेशी दबाव आदि बहुत कुछ झेलना भी होगा।
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