इस कट्टर इस्लामिक संस्था की ओर से आगे कहा गया है कि इसके अंतर्गत संपत्ति का डिजिटल लेन—देन करने की इजाजत दी जा सकती है
इंडोनेशिया की एक कट्टर इस्लामी संस्था ने क्रिप्टोकरेंसी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है।उसने फतवा जारी किया है कि क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल इस्लाम में हराम है। मुसलमानों को इससे बचना चाहिए। इंडोनेशिया की यह इस्लामिक संस्था है उलेमा काउंसिल और इसका वहां काफी रौब माना जाता है। इसी संस्था ने 11 अक्तूबर को यह फतवा जारी किया है। उलेमा काउंसिल ने फतवा देते हुए कहा है कि क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल जायज नहीं है, यह इस्लाम में हराम है। वैसे इस कट्टर इस्लामिक संस्था की ओर से आगे कहा गया है कि इसके अंतर्गत संपत्ति का डिजिटल लेन—देन करने की इजाजत दी जा सकती है।
उल्लेखनीय है कि इंडोनेशिया में दुनिया में किसी भी देश के मुकाबले मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी है। क्रिप्टोकरेंसी के संदर्भ में यहां की इस उलेमा काउंसिल का यह भी कहना है कि पाबंदी क्रिप्टो को मुद्रा की तरह इस्तेमाल करने पर लगाई गई है, मगर इसमें निवेश और डिजिटल टोकन का कमोटिडी के तौर पर कारोबार किया जा सकता है।
इंडोनेशिया के वित्त विभाग ने इससे पहले स्पष्ट किया था कि कमोडिटी के क्षेत्र में क्रिप्टोकरेंसी की कारोबारी कीमत फिलहाल 370 ट्रिलियन रुपए है। 2020 के अंत तक कुल लेन—देन 65 ट्रिलियन रुपए तक गया था। अब कारोबारियों की संख्या 40 लाख से बढ़कर 65 लाख तक पहुंच चुकी है।
'इस्लाम में भुगतान के लिए क्रिप्टोकरेंसी हराम है, क्योंकि यह डावांडोल रहती है तथा नुकसानदेह भी है। इसके इस्तेमाल से कानून टूटता है'। उलेमा काउंसिल के अनुसार, कमोडिटी के तौर पर क्रिप्टोकरेंसी का लेन—देन भी कानून के विरुद्ध है। काउंसिल इसे जुआ मानती है, क्योंकि यह इस्लाम के कायदों से संबंध नहीं रखता है।
इस्लामिक संस्था उलेमा काउंसिल के मजहबी फरमान जारी करने वाले एसरोरुन नियाम सोलेह का कहना है कि शरिया कायदों के अनुसार, इस्लाम में भुगतान के लिए क्रिप्टोकरेंसी हराम है, क्योंकि यह डावांडोल रहती है तथा नुकसानदेह भी है। इसके इस्तेमाल से कानून टूटता है। उनके अनुसार, कमोडिटी के तौर पर क्रिप्टोकरेंसी का लेन—देन भी कानून के विरुद्ध है। यह इस्लामिक काउंसिल इसे जुआ मानती है, क्योंकि यह इस्लाम के कायदों से संबंध नहीं रखता है। लेकिन काउंसिल के हिसाब से क्रिप्टोकरेंसी के कारोबार की इजाजत अभी तो दे दी गई है, जिसमें कारोबार में शामिल संपत्ति का पता और मुनाफे के बारे में जानकारी आवश्यक की गई है।
स्थानीय कारोबारियों में चर्चा है काउंसिल के इस फतवे से इस करेंसी को कानूनी तौर पर नकारा तो नहीं गया है, पर आगे इसका क्या स्वरूप होगा, यह तय नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि इस्लामिक संस्था के ऐसे फतवे से इस क्षेत्र में निवेश को धक्का लग सकता है।
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