हरिद्वार में मनसा देवी, चंडी मंदिर सहित अनेक मंदिरों को नोटिस दिया गया है। राजा जी टाइगर रिजर्व प्रशासन का कहना है कि जो भी अतिक्रमण जंगल क्षेत्र में किये गए हैं, उन्हें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खाली करना होगा। इधर मंदिर प्रबंधन और स्थानीय हिन्दू संगठनों का कहना है कि टाइगर रिजर्व बनने से पहले के ये मंदिर बने हुए हैं।
जानकारी के अनुसार हरिद्वार की मनसा देवी को वन विभाग के द्वारा 1600 वर्ग मीटर जमीन लीज पर दी हुई है, जिस पर मंदिर भवन है। हाल ही में मंदिर कमेटी द्वारा 13 नए कमरे बना दिये गए हैं, जिसे राजा जी टाइगर रिजर्व प्रशासन ने अपने कब्जे में लेकर मंदिर प्रबंधन को नोटिस दे दिया है। मंदिर प्रशासन इसे अपनी जमीन बता रहा है, जबकि पार्क प्रशासन ने इसे टाइगर रिजर्व की वन भूमि बताया है।
1983 में राजाजी नेशनल पार्क बना था उससे पहले ये हरिद्वार फॉरेस्ट डिवीजन था। 2015 में यह बाघों की मौजूदगी की वजह से देश का 48वां टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। टाइगर वास बनने से पहले 2004 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में यहां चिन्हित 44 अतिक्रमणों को खाली करने के आदेश हुए थे, जिनमें मनसा देवी मंदिर, चंडी देवी मंदिर, दूधिया आश्रम, परमार्थ आश्रम ऋषिकेश, पंचमुखी हनुमान मंदिर, वाल्मीकि बस्ती, भीमगोडा बस्ती भी शामिल थी। इन्हें उस वक्त वन विभाग ने सांकेतिक रूप से खाली भी करवाया, लेकिन बाद में ये धार्मिक संस्थाएं पुरानी लीज नवीनीकरण के आधार कर काबिज हो गईं। मुद्दा ये तब अड़ा कि टाइगर रिजर्व बनने के बाद यहां वन विभाग के बजाय राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के दिशा निर्देश ज्यादा प्रभावी माने जाने लगे। यही वजह है कि जंगल पहाड़ियों के बीच बने दशकों पुराने इन धार्मिक स्थलों को आये दिन राजा जी टाइगर रिजर्व प्रशासन नोटिस देते रहता है। कुछ मामले तो अब अपर कोर्ट में भी चल रहे हैं, जिन्हें लेकर अक्सर तना तनी बनी रहती है।
हरिद्वार बाजार से मनसा देवी को जाने वाली रोपवे के लीज 13 मार्च 2008 को खत्म हो गयी थी, जिसे 15 साल के लिए बढ़ाया गया है, लेकिन अगली बार ये लीज बढ़ेगी भी या नही, इस बात को लेकर संदेह एनटीसीए की वजह से बना हुआ है। अगर लीज आगे नहीं बढ़ी तो तीर्थाटन को एक बड़ा झटका लगेगा। पार्क प्रशासन साल में दो-तीन बार यहां अवैध रूप से बन रहे अतिक्रमणों को ढहाते रहते हैं और कब्जेदार फिर से काबिज हो जाते हैं। मंदिर प्रबन्धको का कहना है कि टाइगर रिजर्व या नेशनल पार्क बनने से पहले यहां मंदिर आश्रम स्थापित हैं। हमने जंगल का संरक्षण भी किया है। हमने पहले ही कहा था कि हमारी भूमि और रास्तों को टाइगर रिजर्व से बाहर रखा जाए। तब शासन ने हमारी सुनी नहीं अब रोज इसमें विवाद होते रहते हैं, जिसका निदान किया जाना चाहिए। उत्तराखंड वन के पीसीसीएफ राजीव भरतरी कहते हैं कि कुछ मुद्दे विवादों में हैं, जिन पर कोर्ट में मामला चल रहा है, लेकिन हम ये अनुमति नहीं दे सकते हैं कि कोई भी संस्था अपनी आवंटित भूमि से ज्यादा पर काबिज होकर अवैध निर्माण करने लग जाए।
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