जनजाति समाज को गैर—हिंदू सिद्ध करने के लिए चर्च के लोग सारी हदें पार करने लगे हैं। उनकी आस्था से जुड़ी चीजोंं को खंडित किया जा रहा है, उनके पवित्र स्थलों को तोड़ा जा रहा है। एक ऐसी ही घटना पिछले दिनों झारखंड के खूंटी जिले में घटी, लेकिन इसकी चर्चा रांची में भी नहीं हुई। इस घटना पर किसी ने ट्वीट भी नहीं किया। शायद इसलिए इसकी जानकारी उन राहुल गांधी तक नहीं पहुंची, जिन्होंने त्रिपुरा की एक फर्जी घटना पर ट्वीट कर मुसलमानों को भड़काने का प्रयास किया।
घटना खूंटी थाने के पोसेया—पीडीडीह गांव की है। इस गांव में एक प्राचीन पेड़ के पास जनजातियों का एक बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। यहां एक बहुत ही प्राचीन शिवलिंग भी स्थापित है। कुछ दिन पहले इस शिवलिंग को कुछ लोगों ने उखाड़ दिया। जैसे ही इसकी जानकारी गांव वालों को हुई तो वे लोग दंग रह गए। गांव वालों ने बताया कि यह उनकी आस्था पर चोट है और यह चोट उन लोगों ने की है, जो अपने पूर्वजों की धर्म—संस्कृति छोड़कर ईसाई बन गए हैं। इसकी सबसे अधिक पीड़ा वहां की पुजारिन बिरसा उर्मनि पूर्ति को हुई। घटना से दु:खी पूर्ति ने कहा, ''जब तक मेरे भगवान की फिर से स्थापना नहीं होगी तब तक मैं एक दाना भी पेट के अंदर नहीं डालूंगी।'' पुलिस ने गांव वालों को समझा—बुझाया तब वे लोग उस स्थान पर फिर से शिवलिंग स्थापित करने के लिए तैयार हुए। फिर गांव वालों ने कुछ ही घंटों के अंदर पूरे विधि—विधान से वहां शिवलिंग की स्थापना कर दी। इसके बाद ही पुजारिन पूर्ति ने पुलिस के सामने प्रसाद ग्रहण किया। पूर्ति ने इस प्रतिनिधि को बताया, ''मैं शिवलिंग (मरंग महादेव बोंगा) की पूजा बचपन से कर रही हूं। प्रतिदिन पूजा करने के बाद ही खाना खाती हूं। जिन लोगों ने भी मेरी आस्था के साथ खिलवाड़ किया है, उन्हें मैं तो माफ कर सकती हूं, लेकिन मेरे भगवान शायद ही माफ करें।''
उल्लेखनीय है कि पूर्ति इस गांव की बेटी हैं। वह 12 वर्ष की आयु से ही इस शिवलिंग की पूजा करती रही हैं। बाद में उनका विवाह हजारीबाग के एक गांव में हो गया तो वह ससुराल चली गईं। लेकिन किसी कारणवश वह मायके लौट आईं। इसके बाद उन्होंने दूसरा विवाह नहीं किया। पूर्ति ने कहा, ''शायद भगवान की यही इच्छा है कि मैं जीवन भर उनकी सेवा करती रहूं। इसलिए मैं मायके आ गई। यहां आने के बाद एक बार फिर से भगवान की सेवा में लग गई। अब जब तक जीवित हूं तब तक भगवान की सेवा करती रहूंगी। मेरी इस सेवा में जो भी बाधक बन रहे हैं, वे भगवान को कुपित कर अपना ही बुरा कर रहे हैं।''
इस घटना की निंदा अनेक संगठनों और लोगों ने की है। लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष कड़िया मुंडा ने कहा, ''राज्य सरकार सनातन संस्कृति पर प्रहार करने वालों की पहचान कर उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करे, नहीं तो ग्रामीण क्षेत्रों में तनाव बढ़ेगा। यह तनाव किसी के लिए भी ठीक नहीं होगा।'' वहीं जनजाति धर्म—संस्कृति रक्षा मंच के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा, ''जो लोग अपने मूल धर्म को छोड़कर ईसाई बन गए हैं, वे लोग जनजाति इलाकों में ऐसी गंदी हरकत कर रहे हैं।'' उन्होंने यह भी बताया कि जनजाति समाज सदियों से शिंवलिंग के रूप में भगवान महादेव की पूजा करता आ रहा है। वे लोग उनकी पूजा न करें, इसलिए ऐसी बदमाशी की जा रही है। इसे जनजाति समाज के लोग बर्दाश्त नहीं करेंगे।
बता दें कि अलग—अलग जनजातियों में शिव जी के अलग—अलग नाम हैं। उरांव जनजाति में इन्हें 'महादेव' और 'बूढ़ा महादेव' कहा जाता है, तो भील में 'बाड़ा देव' के रूप में पूजा जाता है। वहीं संथाल जनजाति के लोग शिव जी को 'मरंग बोंगा', 'महाकाल', 'मारंग', बुरू(कैलाश) आदि के नाम से पूजते हैं। मुंडा जनजाति समाज शिव जी को 'सिंगबोंगा' (सूर्य) के नाम से पूजता है। सिंगबोंगा का अर्थ है सूर्य, बुरू अर्थात् पहाड़—पर्वत यानी कैलाश पर्वत। यानी शिव जी जनजाति समाज में कई तरह से पूजे जाते हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सहदेव महतो कहते हैं, ''जनजाति समाज के लोग शिव जी की पूजा करें, यह उन लोगों को कतई पसंद नहीं है, जो लोग छल—कपट से जनजातियों का कन्वर्जन करा रहे हैं। इसलिए ऐसे लोगों ने ही पोसेया गांव में शिवलिंग को उखाड़ा।''
उल्लेखनीय है कि पोसेया गांव में जिस जगह पर यह शिवलिंग स्थापित है, उस जगह की बड़ी मान्यता है। यहां दूर—दूर से लोग पूजा करने आते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि यहां की गई मनोकामना पूर्ण होती है। एक भक्त शांति मांझी ने बताया कि पोसेया के शिवलिंग की पूजा करने के बाद मैंने मनोकामना की थी कि मेरे आंगन में पोते की किलकारी गूंजे और कुछ ही दिन बाद ऐसा हो गया। ऐसे सिद्ध स्थान पर कुछ लोगों की नजर है। वैसी ही नजर जैसी मुगलों ने काशी, अयोध्या, मथुरा पर डाली थी।
कुछ ग्रामीणों ने बताया कि शिवलिंग उखाड़ने वालों के पीछे पत्थरगड़ी के नाम पर जनजातियों को देश के विरुद्ध भड़काने वाले लोग हैं। बता दें कि इस गांव में आगामी 14 नवम्बर को एक बार फिर से पत्थरगड़ी करने की घोषणा की गई है। इसके अंतर्गत गांव के बाहर एक पत्थर गाड़ दिया जाता है, और उसके माध्यम से लोगों को यह संदेश दिया जाता है कि गांव के लोगों की अनुमति के बिना कोई भी बाहरी आदमी गांव में प्रवेश नहीं कर सकता है, यहां तक कि सरकार के प्रतिनिधि भी नहीं।
पोसेया गांव की घटना से पूरे इलाके के लोगों में गुस्सा है। लोग अपने गुस्से को सरकार तक पहुंचाने के लिए अनेक तरीके अपना रहे हैं। इसी कड़ी में पिछले दिनों खूंटी में 'सरना बचाओ, देश बचाओ' नाम से एक कार्यक्रम हुआ। इसे मेघा उरांव, कड़िया मुंडा, भीम सिंह मुंडा, हरिनाथ मुंडा आदि ने संबोधित किया। वक्ताओं ने कहा कि हम लोग सदियों से पेड़, पौधे ,पत्थर, सूरज, पानी आदि की पूजा करते आ रहे हैं। परंतु आज कुछ तत्व हमारे समाज को बांटने के लिए तरह—तरह के कुतर्क दे रहे हैं। कोई कहता है कि हम प्रकृति—पूजक हैं, इसलिए सनातनी नहीं हैं। यह कुतर्क के अलावा और कुछ नहीं है। हम भी सनातनी हैं और यह बात हमारे विरोधियों को पसंद नहीं है।
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