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केंद्रीय विद्यालय परिसर में मस्जिद का होना

WEB DESK by WEB DESK
Oct 27, 2021, 09:29 pm IST
in भारत
केंद्रीय विद्यालय परिसर में मस्जिद का होना

केंद्रीय विद्यालय परिसर में मस्जिद का होना

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शिक्षा के मंदिर का अपना एक सिस्टम है, उसमें इन नमाजियों का क्या काम ? इनके बेरोकटोक आने से एक ओर जहां अध्ययन में व्यवधान आता है तो दूसरी ओर इनके वाहनों के कारण से संपूर्ण परिसर भी संकट में आ जाता है।

 

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में केंद्रीय विद्यालय नंबर-2 के परिसर में मस्जिद का अवैध रूप से बनना और विद्यालय समय में नमाजियों का सभी नियमों को ताक पर रखकर नमाज पढ़ना। वस्तुत: यह एक ऐसा गंभीर विषय है, जिस पर आज स्वयं इस्लाम को मानने वालों सहित सभी को चिंतित होना चाहिए। यह चिंता इसलिए भी की जानी चाहिए, क्योंकि शिक्षा के मंदिर का अपना एक सिस्टम है, उसमें इन नमाजियों का क्या काम ? इनके बेरोकटोक आने से एक ओर जहां अध्ययन में व्यवधान आता है तो दूसरी ओर इनके वाहनों के कारण से संपूर्ण परिसर भी संकट में आ जाता है। कई बार परिसर में छोटे-छोटे बच्चे भी तेज दौड़ते हुए नजर आते हैं, उनके जीवन के लिए भी खतरा है।

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अभिभावकों को आसानी से अंदर नहीं आने मिलता
इसके साथ सवाल यह भी है कि जब अभिभावकों को आसानी से अंदर आने को नहीं मिलता, उन्हें अपनी पहचान बतानी पड़ती है और छुट्टी होने पर अपने बच्चे को घर ले जाने के लिए बाहर रहकर ही इंतजार करना होता है, तब ये नमाजी बिना रोक-टोक सिर्फ टोपी की पहचान से अंदर कैसे जाते हैं ? क्या भोपाल में मस्जिदों की कमी है जो इस्लाम के मानने वालों को केंद्रीय विद्यालय के भीतर अपनी एक मस्जिद जरूरी लगती है? जबकि एक रिकार्ड के अनुसार भोपाल शहर में कुल 680 बड़ी मस्जिदें मौजूद हैं।

भोपाल में 680 मस्जिदें
जनसंख्या के हिसाब से देखें तो 2011 की जनगणना में इस शहर की जनसंख्या 18 लाख थी, जो 2021 में 23,64,000 से कुछ अधिक होनी चाहिए और आगे यह एक अनुमान के अनुसार 2030 तक 28 लाख के करीब पहुंचेगी। इस संपूर्ण जनसंख्या में भोपाल में हिंदुओं की आबादी 56 प्रतिशत, मुस्लिम जनसंख्या 40 प्रतिशत है। जबकि अन्य पंथ को मानने वालों की जनसंख्या चार प्रतिशत है। भोपाल की जनसंख्या का घनत्व 10,070 प्रत्येक वर्ग किलोमीटर है। जिसमें महिलाओं की कुल जनसंख्या लगभग 11 लाख एवं पुरुषों की कुल जनसंख्या 12 लाख से कुछ अधिक है। यदि आप इस जनसंख्या के हिसाब से भी मंदिर और मस्जिद निर्माण की संख्या गिनेंगे तब भी आपको आश्चर्य होगा, क्योंकि जो 680 मस्जिदें शहर में बनी हुई हैं, उसकी तुलना में यहां हिन्दू आबादी के अनुसार एक हजार से अधिक बड़े मंदिर वर्तमान में होने चाहिए थे, जो धरातल पर कहीं नहीं दिखाई देते हैं। जब कोई बड़े मंदिरों की संख्या उंगलियों पर गिनना चाहे तब भी उसे बड़े मंदिरों के नाम पर 100 की संख्या गिनना मुश्किल हो जाएगी।

केंद्रीय विद्यालय में मस्जिद क्यों
वस्तुत: ऐसे में फिर प्रश्न यही है कि आखिर इतनी मस्जिदें या इबादतगाह होने के बाद केंद्रीय विद्यालय के भीतर मुसलमानों को क्यों मस्जिद बनाने की जरूरत आन पड़ी ? इस पर गहन विचार करने के बाद लगता है कि भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ने कोई गलत मुद्दा या प्रश्न नहीं सार्वजनिक किया है, बल्कि यह एक गंभीर चिंता का विषय है। जब वह यह पूछती हैं कि स्कूल के भीतर बच्चों के पेरेंट्स नहीं आ सकते तो नमाज पढ़ने के लिए लोग कैसे घुस रहे हैं ? तो उनका यह प्रशासन से पूछा जा रहा प्रश्न हर हाल में सही लगता है। यदि नमाजियों की संख्या ज्यादा होने से गाड़ियों की पार्किंग समस्या पर विद्यालय के बाहर दुकान लगाने वालों को वहां से हटाने के लिए स्कूल प्रशासन ने धमकाया नहीं होता तो हो सकता है, इतना संवेदनशील और गंभीर मामला कहीं दबा ही रहता। यह तो अच्छा हुआ जो शिकायत सांसद तक पहुंच गई और समस्या की गंभीरता को भोपाल सांसद ने भी समझा तथा वे देश हित में सक्रिय हो उठीं। यहां सवाल और भी हैं, अब यदि कोई कानून का विशेषज्ञ भारतीय संविधान के आधार पर जिसमें कि साफतौर पर कहा गया है कि भारत में सभी धर्म के लोगों को आराधना करने की स्वतंत्रता है और उसकी नजर से सभी समान हैं, को लेकर यह मांग करे कि इस मस्जिद की तरह ही स्कूल के अंदर मंदिर और गुरुद्वारा, सिर्फ इतना ही क्यों, अन्य जैनी, बौद्ध, पारसी, यहूदी, आस्तिक और नास्तिक को माननेवाले हैं, उनकी भी इबादतगाह बने, तब क्या विद्यालय प्रशासन या सरकार विद्या के मंदिर में इस मांग को पूरा करने की अनुमति देगी ? यदि नहीं दे सकती है, तब फिर ऐसी स्थिति में इस मस्जिद को यहां क्यों होना चाहिए?

मजार का मामला सामने आया था
अभी कुछ पहले ही भोपाल में अवैध रूप से मजार बनाने का मामला सामने आया था। सिर्फ भोपाल ही क्यों देश भर में अनेक जिलों से ऐसी खबरें आए दिन सामने आती हैं कि कैसे रातोंरात किसी सुनसान या सड़क किनारें मजार खड़ी कर दी गई और उसे किसी सूफी बाबा का नाम दे दिया गया। इस पर भी जहां आम नागरिक जागृत रहे, वहां से तो वे तत्काल हटा ली जाती हैं किंतु जहां किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया, वहीं यह हमेशा के लिए स्थायी हो जाती हैं। ऐसे में फिर वे बातें जो अब आए दिन सुनाई देती हैं कि लव जिहाद के बाद देश में बड़े स्तर पर लैंड जिहाद भी चल रहा है, सच लगने लगती हैं। वैसे और भी कई जिहाद हैं जो चल रहे हैं, जैसे- जनसंख्या जिहाद, शिक्षा जिहाद, पीड़ित जिहाद, सीधा जिहाद और इसके आगे आर्थिक जिहाद, मीडिया जिहाद, ऐतिहासिक जिहाद, फिल्म और संगीत का जिहाद, धर्मनिरपेक्षता का जिहाद वस्तुत: आज ये सभी जिहाद देश में कहीं ना कहीं घटित होते आपको दिखाई दे जाएंगे।

इस्लाम का एक तबका जिहाद को आतंक से जोड़ता है
वैसे जिहाद का अर्थ इस्लाम में बहुत व्यापक है। मुस्लिम धर्मगुरु मानते हैं कि इस शब्द को गलत नजरिये से पेश किया जाता रहा है जबकि कुरान में इसका जिक्र बहुत ही साफ है और वह है खुद की बुराइयों पर विजय पाना। स्वयं में बदलाव करने की बड़ी कोशिश। कुछ परिस्थितियों में जिहाद को अत्याचार के खिलाफ खड़ा होना भी बताया जाता है। दूसरी तरफ इसका अर्थ दीन-ए-हक की और बुलाने और उससे इनकार करनेवाले से जंग करने या संघर्ष करने को लेकर है। कुरान में 'जिहाद की सबी लिल्लाह' शब्द पैंतीस और 'कत्ल' 69 बार आया है' (जिहाद फिक्जे़शन, पृ. 40)। हालांकि तीन चौथाई कुरान पैगम्बर मुहम्मद पर मक्का में अवतरित हुआ था, मगर यहां जिहाद सम्बन्धी पांच आयतें ही हैं, अधिकांश आयतें मदीना में अवतरित हुईं। इतिहासकार डॉ. सदानन्द मोरे के अनुसार मदीना में अवतरित 24 में से, 19 सूराओं (संख्या 2, 3, 4, 5, 8, 9, 22, 24, 33, 47, 48, 49, 57-61, 63 और 66) में जिहाद को लेकर व्यापक चर्चा की गई है (इस्लाम दी मेकर ऑफ मेन, पृष्ठ 336)। इसी प्रकार ब्रिगेडियर एस. के. मलिक ने जिहाद की दृष्टि से मदीनाई आयतों को महत्वपूर्ण मानते हुए इनमें से 17 सूराओं की लगभग 250 आयतों का 'कुरानिक कन्सेप्ट ऑफ वार' में प्रयोग किया है तथा गैर-मुसलमानों से जिहाद या युद्ध करने सम्बन्धी अनेक नियमों, उपायों एवं तरीकों को बड़ी प्रामाणिकता के साथ बतलाया है जो कि जिहादियों को भड़काने के लिए अक्सर प्रयोग की जाती हैं। डॉ. के. एस. लाल ने भी इस संदर्भ में बहुत शोधपरक कार्य किया है और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कुरान की कुल 6326 आयतों में से लगभग 3900 आयतें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष ढंग से अल्लाह और उसके रसूल (मुहम्मद) में 'ईमान' न रखने वाले 'काफिरों', 'मुश्रिकों और मुनाफ़िकों' से सम्बन्धित हैं। वैसे देखा जाए तो जनसंख्या के हिसाब से इस्लाम में वह तबका बेहद छोटा है जो आतंकवाद या हिंसा से जिहाद को जोड़ता है, किंतु ये एक सच्चाई है कि आज सबसे अधिक प्रभावी यही नजर आ रहा है । दुनिया भर के देशों में इसके उदाहरण भरे पड़े हैं। यहां दो ही उदाहरण समझने के लिए पर्याप्त होंगे । वस्तुत: मुंबई में 2008 को घटित हुई आतंकी घटना 26/11 एक जिहाद थी, जिसमें करीब 160 लोगों की जान गई और 300 से ज्यादा लोग घायल हुए थे और दूसरी घटना 11 सितंबर 2001 की है, जब दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति अमेरिका के न्यूयॉर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर आतंकियों का हवाई हमला हुआ, जिसमें कि 2,977 लोगों की जान चली गई थी, कट्टर इस्लाम के अनुसार यह भी एक प्रकार का जिहाद था।

बच्चों की सुरक्षा जरूरी
जब देश भर में मस्जिदों की कोई कमी नहीं है, भोपाल में मुसलमानों की कुल जनसंख्या के अनुपात में अधिक मस्जिदें बन चुकी हैं, फिर क्यों इस्लाम पंथियों को आज सरकारी विद्यालय में इबादतगाह बनाने की आवश्यकता आन पड़ी है ? ऐसी संदेहास्पद परिस्थितियों को देखकर स्वाभाविक है, भारतीय संविधान में अपना विश्वास रखने वाले किसी भी व्यक्ति को गुस्सा आएगा। सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने आज जो प्रश्न खड़े किए हैं, निश्चित ही वर्तमान हालातों में वे सही प्रतीत हो रहे हैं। अब मध्य प्रदेश प्रशासन को चाहिए कि वे तत्काल प्रभाव से कार्रवाई करते हुए अवैध निर्माण को ध्वस्त करे जोकि विद्यालय में बच्चों की सुरक्षा के लिए एक संकट के रूप में आज हमारे सामने है। इन सभी बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए कहना होगा कि सरकार को इस अवैध मस्जिद से विद्या के इस मंदिर केंद्रीय विद्यालय को तेजी के साथ मुक्त कर देना चाहिए। वस्तुत: इसी में सबका हित निहित है।

(लेखक फिल्म प्रमाणन बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं पत्रकार हैं।)

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