झारखंड के खूंटी जिले में एक हिंदू पंकज चौधरी की हत्या तपकरा थाने के मुख्य द्वार के पास ही पीट—पीट कर दी गई। हत्यारों के नाम हैं—ताजो मियां, कारू मियां और नाजिर। इसलिए उन लोगों ने इस हत्या पर कुछ नहीं बोला, जिन्होंने 2019 में सरायकेला—खरसावां में मोटर साइकिल चोर तबरेज अंसारी की ग्रामीणों द्वारा की गई पिटाई को 'मॉब लिचिंग' कह कर पूरे देश में हंगामा मचाया था। इतना हंगामा मचा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी संसद में इस पर बयान देना पड़ा था।
यही नहीं, इस मामले पर रांची में जिहादी तत्वों ने सारी हदें पार कर दी थीं। लेकिन पंकज की हत्या की चर्चा खूंटी में भी ठीक से नहीं हुई। ऐसा इसलिए हुआ कि झारखंड में सरकार उन्हीं लोगों की है, जिन्होंने 'मॉब लिचिंग' शब्द को गढ़ा है। इसलिए उन लोगों ने पंकज की हत्या को 'मॉब लिचिंग' नहीं माना और यही कारण है कि सेुकलर मीडिया ने भी इसे खबर ही नहीं माना। यदि ऐसा नहीं होता तो आज यह खबर रांची से करांची और न्यूयार्क तक पहुंच जाती।
पंकज चौधरी खूंटी से लगभग 35 किलोमीटर दूर तपकरा बाजार के रहने वाले थे। उनके एक पड़ोसी ने बताया कि 13 अक्तूबर को यानी दुर्गाष्टमी के दिन पंकज ने पुलिस को बताया था कि तपकरा के कुछ घरों में गोमांस है। इसके बाद पुलिस ने छापा मारकर गोमांस पकड़ा भी था। यह मामला तपकरा थाने में दर्ज भी हुआ था। इस कारण पंकज से तपकरा के कुछ जिहादी तत्व चिढ़े हुए थे। इन्हीं तत्वों ने तपकरा थाने के बाहर 23 अक्तूबर को पंकज पर हमला किया। हमलावरों ने पंकज को इस तरह मारा कि कुछ घंटे बाद ही इलाज के दौरान 24 अक्तूबर को रांची के रिम्स में उनकी मौत हो गई। एक मीडियाकर्मी ने बताया कि मौत की खबर मिलते ही पुलिस ने सभी पत्रकारों को मौखिक रूप से बताया कि इस घटना को 'मॉब लिचिंग' न कहा जाए।
एक अन्य पत्रकार ने बताया कि राज्य सरकार के दबाव पर पुलिस ने मीडियाकर्मियों से कहा कि पंकज की हत्या को 'मॉब लिचिंग' न कहा जाए। पंकज के तीन बच्चे हैं। उनमें दो दो दिव्यांग हैं। अब उनकी पत्नी न्याय की गुहार लगाती फिर रही है, लेकिन उन्हें शायद ही न्याय मिले। ऐसा तपकरा के ही कई लोगों का मानना है। लोगों का यह भी कहना है कि इस मामले के आरोपियों को बचाने के लिए सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा के कई नेता लग चुके हैं।
तपकरा वही बाजार है, जहां के रहने वाले जुबेर अहमद इन दिनों झारखंड मुक्ति मोर्चा, खूंटी जिले के अध्यक्ष हैं। तपकरा के अनेक लोगों ने बताया कि उनके दबाव पर ही इस बर्बर हत्या को 'मॉब लिचिंग' नहीं कहा जा रहा है। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने बताया कि तपकरा, सौदे, बिरदा, डोरमा गोबिंदपुर, रोरो, फुद्दी जैसे गांवों में बहुत तेजी से जनसांख्यिक परिवर्तन हो रहा है। ईसाई और मुस्लिम दोनों हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाने में लगे हैं। ईसाई जहां लोभ—लालच से कन्वर्जन करा रहे हैं, वहीं मुसलमान लव जिहाद के जरिए हिंदू महिलाओं और लड़कियों को अपने घर में रख रहे हैं।
टिप्पणियाँ