पाकिस्तान की षड्यंत्री और नाकारा सोच को संभवत: पहचानते हुए इंटरनेशनल मोनिटरी फंड यानी आईएमएफ ने आगे से कर्ज देने से साफ इंकार करते हुए पहले स्वीकृत कर्ज की एक अरब डॉलर की किश्त भेजने से मना कर दिया है। उल्लेखनीय है कि आईएमएफ और पाकिस्तान में चल रही एक अरब डालर के कर्ज तथा राष्ट्र को अर्थक्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन का प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में चली बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची, जिसके बाद पाकिस्तान को मिलने वाली कर्ज की अगली किश्त रोक दी गई है।
दुनिया जानती है कि पाकिस्तान के आर्थिक हालात जर्जर हैं। उसकी गाड़ी यूएई और चीन के दिए पैसे पर किसी तरह चलती आ रही है। कर्ज लेकर देश चलाती आ रही इमरान सरकार के सामने अब इन नई परिस्थितियों में नया संकट खड़ा हो गया है। सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तान के खजाने में अब अपने सरकारी कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं बचा है। जानकारों के अनुसार, पाकिस्तान को आईएमएफ के इस ताजे झटके से तो इस इस्लामिक देश की चूलें तक हिलने की संभावना है। पहले से ही कंगाली की कगार पर खड़े आतंकियों को पोसने के लिए बदनाम इस देश में खाने की चीजों और ईंधन के दाम आसमान छूने लगे हैं। आम पाकिस्तानी 'नए पाकिस्तान' को पानी पी-पीकर कोस रहा है।
पाकिस्तान के अंग्रेजी दैनिक 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' की रिपोर्ट है कि गत 4 से 15 अक्तूबर के बीच आगे के कर्जे को लेकर चली बातचीत किसी नतीजे पर नहीं पहुंची। प्रधानमंत्री इमरान खान ने तो कोई कसर नहीं छोड़ी थी किसी तरह आईएमएफ को मनाने में। उसी का नतीजा था कि पाकिस्तान में इमरान ने बिजली तथा पेट्रोल-डीजल की कीमतों को आसमान पर पहुंचा दिया था। लेकिन इससे भी आईएमएफ को तसल्ली नहीं हुई।
बताते हैं आईएमएफ को राजी करने में पाकिस्तान के वित्त मंत्री शौकत तारिन खुद जुटे थे। तारिन ने आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टालिना जॉर्जिया तथा अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू से भेंट की थी, लेकिन इससे भी कुछ खास हासिल नहीं हुआ। पाकिस्तान ने आईएमएफ को रिझाने की पहली कोशिश गत जून माह में की थी। इस बार उसने यह दूसरी कोशिश की थी जो औंधे मुंह जा गिरी है। जानकारों का मानना है कि बहुत संभव है इमरान खान चंदा लेने के लिए फिर से चीन, यूएई या अन्य खाड़ी देशों के दरवाजे पर दस्तक दें।
सूत्रों के अनुसार, आईएमएफ ने पाकिस्तान के अतिरिक्त करों की तादाद तथा बिजली की वित्तीय स्थिरता के खाके को अस्वीकार कर दिया था। गैस की कीमतों में बढ़ोत्तरी तथा चालू खाते के घाटे को एक प्रबंधन योग्य स्तर तक काबू करने के लिए जरूरी उपाय जैसे मुद्दे भी आईएमएफ को राजी नहीं कर पाए। बताते हैं, आईएमएफ ने मांग की थी कि सकल घरेलू उत्पाद के कम से कम एक प्रतिशत या 525 अरब रुपये के अतिरिक्त कर लगाए जाएं, लेकिन इमरान सरकार 300 अरब रुपये तक ही लगाने को राजी थी।
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