दिल्ली सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए एक और काम करने जा रही है। बताया जा रहा है कि उर्दू सिखाने के लिए दिल्ली के प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में कम से कम एक केंद्र खोला जाएगा। यानी पूरी दिल्ली में 70 उर्दू केंद्र खोलेे जाएंगे। इससे पहले भी मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए दिल्ली सरकार ने अनेक निर्णय लिए हैं। जैसे मस्जिदों मेंं नमाज पढ़ाने वाले इमामों को वेतन देना, रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को मुफ्त में बिजली और पानी देना आदि।
—वेब डेस्क
गत दिनों उर्दू अकादमी, दिल्ली के सभागार में एक कार्यक्रम हुआ। इसमें अकादमी के उपाध्यक्ष हाजी ताज मोहम्मद ने कहा कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की इच्छा है कि दिल्ली के हर विधानसभा क्षेत्र में अधिक से अधिक उर्दू सिखाने के लिए केंद्र खोले जाएं। यदि 500 केंद्र भी खोलने पड़े तो भी खोले जाएं। हाजी ताज मोहम्मद ने यह भी कहा कि उर्दू अकादमी दिल्ली में कर्मचारियों की कमी है, उसे भी दूर किया जाए और जो लोग लंबे समय से अनुबंध के आधार पर काम कर रहे हैं, उनके मामलों पर गौर किया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि हालात सही होते ही उर्दू अकादमी के नियमित कार्यक्रम जैसे नए पुराने चिराग़, सेमिनार और मुशायरे इत्यादि करने की अनुमति दी जाए।
कार्यक्रम की अतिथि और मनीष सिसोदिया की ओएसडी अभिनंदिता माथुर ने कहा कि उर्दू हमारी तहज़ीब का हिस्सा है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में उर्दू को बढ़ावा देने के लिए बहुत से काम किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि मनीष सिसोदिया ने कहा है आप लोग एक व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाएं और उन्हें भी उस ग्रुप में शामिल करें, ताकि उर्दू के कार्यक्रमों की सारी जानकारी सबके पास पहुंच सके।
कह सकते हैं कि अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया भी अन्य सेकुलर नेताओं की तरह ही मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति पूरी तरह कर रहे हैं। दूसरी ओर भोले—भाले हिंदू इसी बात में खुश हैं कि हर महीने पानी और बिजली में 200—400 रु. तक की बचत हो रही है। इसलिए हिंदू समाज केजरीवाल से यह नहीं पूछता है कि जब मस्जिदों के इमामों को वेतन दिया जा रहा है, तो मंदिरों के पुजारियों को वेतन क्यों नहीं दिया जा रहा है! जब उर्दू सिखाने के लिए केंद्र खोले जा सकते हैं, तो हिंदी और संस्कृत सिखाने के लिए केंद्र क्यों नहीं होने चाहिएं!
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