कोरोना में भी कारगर साबित हुआ ‘आयुष’ — राष्ट्रपति

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उत्तर प्रदेश के प्रथम आयुष विश्वविद्यालय की आधारशिला राष्ट्रपति ने रखी. आयुष विश्वविद्यालय के शिलान्यास समारोह में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि कोरोना की दूसरी लहर को नियंत्रित करने में आयुष ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.


महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय के शिलान्यास स्थल पर पहुंचकर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सबसे पहले वैदिक मंत्रोच्चार के बीच भूमि पूजन कर आधारशिला रखी. राष्ट्रपति श्री कोविंद ने कहा कि वैदिक काल से हमारे यहां आरोग्य को सर्वाधिक महत्व दिया जाता रहा है. किसी भी लक्ष्य को साधने के लिए शरीर पहला साधन होता है. योग के माध्यम से सामाजिक जागरण का अलख जगाने वाले महायोगी गोरखनाथ ने कहा है, 'यदे सुखम तद स्वर्गम, यदे दुखम तद नर्कम'.

शरीर को निरोग बनाने में आयुष की महत्वपूर्ण भूमिका

राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल से ही शरीर को स्वस्थ रखने की कई पद्धतियां प्रचलित रही हैं, इन्हें सामूहिक रूप में आयुष कहते हैं. दो दशकों से आयुष की लोकप्रियता में काफी बढ़ोतरी हुई है. इससे बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है. हमारे यहां कहा गया है, पहला सुख निरोगी काया. गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है, बड़े भाग मानुष तन पावा. मानुष तन को निरोगी रखने में आयुष महत्वपूर्ण है.  महायोगी गोरखनाथ के नाम पर आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना हो रही है और जल्द ही इससे सम्बद्ध होकर उत्तर प्रदेश में आयुष के सभी संस्थान और बेहतर कार्य कर सकेंगे.

 

भारत की संस्कृति जितना प्राचीन है योग

राष्ट्रपति ने कहा कि जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में योग की उपयोगिता से हम सभी परिचित हैं. भारत का योग यहां की संस्कृति जितना ही प्राचीन है. ऋग्वेद के समय से ही योग की महत्ता सर्वविदित है. तनाव व चिंता से निवारण में योग के उपाय अचूक हैं. योग के क्षेत्र में महायोगी गोरखनाथ का योगदान अविस्मरणीय है. गोरखनाथ जी का जीवन बेहद उदात्त था इसीलिए कबीर दास जी ने उन्हें कलिकाल में अमर बताया है. गोस्वामी तुलसीदास जी कहते थे, गोरख जगायो योग. योगशास्त्र की महत्ता पर खुद गुरु गोरखनाथ कहते थे, जिसने नियमित योगशास्त्र पढ़ लिया उसे अन्य किसी शास्त्र की आवश्यकता नहीं है.  योग भारत की विविधताओं में एकता का उत्तम उदाहरण है. दक्षिण भारत में यह विधा आज भी प्रचलित है. इस विधा के अंतर्गत खनिजों से इमरजेंसी मेडिसिन बनाने के प्रवर्तक महायोगी गोरखनाथ ही थे.

 उन्होंने कहा कि आयुर्वेद प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है जिसमें मन, शरीर और आत्मा के संतुलन पर भी पूरा ध्यान दिया जाता है जबकि प्राकृतिक चिकित्सा हमें अपने गांव, आसपास उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से निरोग होने की राह दिखती है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी प्राकृतिक चिकित्सा के प्रबल पक्षधर थे. उनका मानना था कि छात्रों को अपने शरीर के साथ ही गांव और क्षेत्र के बारे में भी पूरी जानकारी होनी चाहिए क्योंकि हमारे आसपास प्राकृतिक चिकित्सा के लिए जड़ी बूटियों का खजाना है. आयुष की पद्धतियों में सबसे प्राचीन योग एवं आयुर्वेद पूरे विश्व को भारत की तरफ से दिया गया अनुपम उपहार है. 

 

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