उत्तराखंड के मिशनरी स्कूलों में ऑन लाइन पढ़ाई के साथ बाइबल कक्षा की साजिश

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WEB DESK

देवभूमि कहे जाने वाला उत्तराखंड ईसाई मिशनरियों के निशाने पर है। राज्य में बड़ी संख्या में चर्च अपने स्कूल चलाता है। कोरोना महामारी के इस संकटकाल में इन स्कूलों में बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के साथ ही बाइबल की क्लास भी कराई गई। इसके जरिए उनके साथ ईसाइयत के प्रचार—प्रसार का खेल खेला गया।


 

देवभूमि कहे जाने वाला उत्तराखंड ईसाई मिशनरियों के निशाने पर है। राज्य में बड़ी संख्या में चर्च अपने स्कूल चलाता है। कोरोना महामारी के इस संकटकाल में इन स्कूलों में बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के साथ ही बाइबल की क्लास भी कराई गई। इसके जरिए उनके साथ ईसाइयत के प्रचार—प्रसार का खेल खेला गया।

उत्तराखंड में नैनीताल, मसूरी, देहरादून और अन्य शहरों में अंग्रेजों के शासन काल से स्थापित ईसाई मिशनरियों के अंग्रेजी माध्यम के बोर्डिंग स्कूल हैं। इसके अलावा डे बोर्डिंग कान्वेंट स्कूल भी हर बड़े शहर में चर्च द्वारा संचालित हैं। कोरोना महामारी के चलते ईसाई मिशनरी के बोर्डिंग स्कूलों में अवकाश रहा। इस दौरान न स्कूलों में जीसस की प्राथना हुई और न ही बच्चों को स्कूलों के भीतर स्थापित चैपल (स्कूल का गिरजाघर) जाने का मौका मिला। ऐसे में मिशनरियों को यह चिंता सताने लगी कि परिवार में बैठकर उनके स्कूली बच्चे कही ईसाई संस्कृति से दूर न हो जाएं। आम तौर पर देखने मे आया है कि कान्वेंट स्कूलों के बच्चे, हॉस्टल में रहने के दौरान हिन्दू धर्म से विमुख होने लगते हैं। ऐसे में चर्च से संचालित इन स्कूल के प्रबन्धकों ने बाइबल की ऑन लाइन कक्षा अपने यहां शुरू कर दी और बच्चों को इस क्लास से जुड़ने की अनिवार्यता भी कर दी।

ऐसा तब संज्ञान में आया जब बच्चों के बीच डिजिटल प्लेटफॉर्म पर ऑनलाइन आकर पादरी, कोरोना फैलने के लिए कुम्भ, मंदिरों की भीड़ को दोषी ठहराने लगे और बच्चों को नसीहतें देने लगे कि मंदिरों में न जाकर घरों से ही बाइबल के जरिये यीशु से कोरोना संकट से निकालने के लिए प्रार्थनाएं करें।

कोरोना संकट काल में ईसाइयत के प्रचार—प्रसार के लिए मिशनरियों और कान्वेंट स्कूलों ने डिजिटल तकनीक का बखूबी इस्तेमाल किया। बच्चों में डिजिटल तकनीक के कार्टून और दूसरी फिल्मों के जरिये ये भी बताया गया कि कैसे कोरोना महामारी में स्कूल और ईसाई संस्थाओं द्वारा गरीबों को राशन और चिकित्सा सुविधाएं पहुंचाई गईं।

खबरों की मानें तो उत्तराखंड ही नहीं देश के जिन—जिन शहरों में कॉन्वेंट स्कूल हैं, वहां बाइबल की ऑनलाइन कक्षाओं के जरिये कोरोना महामारी के दौरान, ईसाइयत का प्रचार किया गया।इसके लिए उन्हें बाकायदा एप्प डाउनलोड करवाए गए। पिछले दो साल में जब से कोरोना ने देश में डर का रूप लिया, तब से फेसबुक, न्यूज़ पोर्टल और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर यीशा मसीह के प्रचार करते विज्ञापनों की भरमार देखी जा सकती है।

उत्तराखंड के तमाम न्यूज़ पोर्टल इसकी गिरफ्त में हैं। न्यूज़ पोर्टल स्वामियों को गूगल के जरिये या अन्य स्रोतों से विज्ञापन से आय होती है, जिनमें ज्यादातर विज्ञापन ईसाइयत के प्रचार से जुड़े होते हैं। इनके प्रचार में ऑनलाइन घरों से वर्क फ्रॉम होम करने वाले युवाओं को भी बाइबल क्लास से जुड़ने के प्रलोभन दिए जा रहे है। एक सोची समझी साजिश के तहत उत्तराखंड में सक्रिय ईसाई मिशनरियां प्रचार कर रही हैं।

बड़ा सवाल यह है कि मिशनरियों का हिन्दू धर्म के प्रति ये दुष्प्रचार रुकेगा कैसे ? सरकार के पास डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इसे रोकने के लिए कानूनों का अभाव है। इसे रोक पाने के लिए  अभिभावकों को अपने बच्चों पर ध्यान देना होगा। उनमें हिंदुत्व के संस्कार भरने होंगे। उन्हें अपनी संस्कृति बतानी होगी। तभी इस साजिश को रोका जा सकता है।

 

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