भारत और तिब्बत सीमा पर आने—जाने वाले पैदल मार्ग गढ़तांग गलियारे को 43 साल बाद फिर से खोल दिया गया है। तिब्बत पर चीन के कब्जे और यहां से परंपरागत व्यापार नहीं होने की वजह से मार्ग बंद पड़ा था।
भारत और तिब्बत सीमा पर आने—जाने वाले पैदल मार्ग गढ़तांग गलियारे को 43 साल बाद फिर से खोल दिया गया है। तिब्बत पर चीन के कब्जे और यहां से परंपरागत व्यापार नहीं होने की वजह से मार्ग बंद पड़ा था। स्थानीय लोगों की जानकारी के मुताबिक 17वीं शताब्दी में स्थानीय लोगों के साथ पेशावर के पठानों ने मिलकर, समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर, जाड़ गंगा घाटी में ग्राम नेलांग, जाढुङ्ग व भोट क्षेत्र के आवागमन के लिए हिमालय की खड़ी पहाड़ी को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था। जिसकी प्रेरणा ग्राम नेलांग के निवासी सेठ धनीराम से प्रेरित हुई। 140 मीटर लंबा लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा मार्ग (गर्तांगली) भारत-तिब्बत व्यापार का साक्षी रहा था। नेलांग/बगोरी निवासी श्री नारायण नेगी और प्रधान सरिता रावत के अनुसार सन 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी व ग्राम जाढुङ्ग, नेलांग के स्थानीय निवासी याक, घोड़ा-खच्चर व भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आवागमन करते थे। भारत-चीन युद्ध के बाद दस वर्षों तक सेना ने भी इस मार्ग का उपयोग किया। लेकिन, पिछले 40 वर्षों से गर्तांगली का उपयोग और रखरखाव न होने के कारण इसका अस्तित्व मिट रहा था।
उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी चीन सीमा से लगी है। सीमा पर भारत की सुमला, मंडी, नीला पानी, त्रिपानी, पीडीए व जादूंग अंतिम चौकियां हैं। सामरिक दृष्टि से संवेदनशील होने के कारण इस क्षेत्र को इनर लाइन क्षेत्र घोषित किया गया है। यहां कदम-कदम पर सेना की कड़ी चौकसी है और बिना अनुमति के जाने पर रोक है। लेकिन, एक समय ऐसा भी था, जब नेलांग घाटी भारत-तिब्बत के व्यापारियों से गुलजार रहा करती थी। दोरजी (तिब्बत के व्यापारी) ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक को लेकर सुमला, मंडी, नेलांग की गर्तांगली होते हुए उत्तरकाशी पहुंचते थे। तब उत्तरकाशी में बाजार लगा करती थी। इसी कारण उत्तरकाशी को बाड़ाहाट (बड़ा बाजार) भी कहा जाता है। सामान बेचने के बाद दोरजी यहां से तेल, मसाले, दालें, गुड़, तंबाकू आदि वस्तुओं को लेकर लौटते थे।
ये मार्ग पर्यटन और ट्रैकिंग पर जाने वालों के लिए नए स्थल बन गए हैं। ट्रैकर राहुल पंवार, संजय सिंह पंवार, सुरजीत सिंह, तिलक सोनी ,अंकित ममगई आदि इस नव निर्मित मार्ग से गुजरने वाले पहले यात्री सदस्य बने। इन ट्रैकर्स ने यहां पहुंच कर खुद पूजा अर्चना कर अपने कदम रखे।
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