प्रवीण सिन्हा
अद्बभुत…अविस्मरणीय। आज भारतीय हॉकी टीम का पुनर्जन्म कहना उचित नहीं होगा, बल्कि जिस गौरवपूर्ण क्षण के वे हकदार थे, जिसका वे पिछले 41 वर्षों से इंतजार कर रहे थे, जिसके लिए उन्होंने अथक प्रयास व त्याग किए–उसका नतीजा टोक्यो ओलंपिक में अंततः गुरुवार को भारतीय हॉकी टीम को मिल गया।
अद्बभुत…अविस्मरणीय। आज भारतीय हॉकी टीम का पुनर्जन्म कहना उचित नहीं होगा, बल्कि जिस गौरवपूर्ण क्षण के वे हकदार थे, जिसका वे पिछले 41 वर्षों से इंतजार कर रहे थे, जिसके लिए उन्होंने अथक प्रयास व त्याग किए–उसका नतीजा टोक्यो ओलंपिक में अंततः गुरुवार को भारतीय हॉकी टीम को मिल गया। भारतीय पुरुष टीम ने एक रोमांचक मुकाबले में जर्मनी को 5-4 से हराकर टोक्यो ओलंपिक का कांस्य पदक जीत लिया। ओलंपिक पदक का रंग विशेष मायने नहीं रखता है, क्योंकि भारत ओलंपिक खेलों के इतिहास में अब तक हॉकी के 8 स्वर्ण सहित कुल 12 पदक जीत अमिट छाप छोड़ चुका है। विशेष यह है कि जिस राष्ट्रीय खेल हॉकी को हाशिए पर ला दिया गया था और जिस खेल पर से खेलप्रेमियों का विश्वास उठना शुरू हो गया था, उसी हॉकी ने ओलंपिक विजेता मंच पर 41 वर्षों बाद वापसी कर स्वर्णिम इतिहास का नया अध्याय रच दिया है। भारतीय टीम के पूर्व प्रशिक्षक हरेन्द्र सिंह ने मैच के ठीक बाद भारतीय टीम को बधाई देते हुए कहा–अभी तो यह शुरुआत भर है। इस प्रतिभाशाली हॉकी टीम में भारत के गौरवशाली इतिहास को दोहराने की पूरी क्षमता और लगन है। बस इस टीम में एक विश्वास पाने की जरूरत थी, आगे देखिएगा यह टीम भारतीय हॉकी को एक बार फिर शिखर पर ले जाएगी।
वास्तव में भारतीय हॉकी टीम ने उस राह को पकड़ लिया है, जिसके लिए हम सभी भारतीयों को एक लंबे समय से इंतजार था। भारतीय हॉकी की गौरवगाथा काफी सुनने को मिली, लेकिन हॉकी जगत की शीर्षस्थ कतार में कैसे हमारे रणबांकुरे राज करते हैं, उसका सौभाग्य लंबे समय के बाद देखने को मिला। भारत ने 1980 मास्को ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता था जो उसका ओलंपिक हॉकी का अंतिम पदक था। यही नहीं, 1972 म्यूनिख ओलंपिक के बाद भारत ने एक बार फिर से कांस्य पदक जीता है, जो भारतीय हॉकी के लिए संजीवनी का काम करेगा। वास्तव में उसकी झलक दिखनी शुरू हो गयी है। चारों ओर से भारतीय हॉकी टीम को बधाई दी जा रही है और खेलप्रेमियों के खुशी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। हरेन्द्र सिंह ने कहा भी–ऐसा नहीं है कि भारतीय खिलाड़ियों की प्रतिभा कहीं लुप्त हो गयी थी। भारतीय खिलाड़ी बार-बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल होते थे, लेकिन पोडियम तक पहुंच पाने में चूक रहे थे। अब वह लक्ष्य हासिल कर लिया गया है तो उम्मीद करनी चाहिए कि भारतीय हॉकी का यहां से उत्तरोतर विकास शुरू हो जाएगा।
टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम की शुरुआत ठीक-ठाक रही और पूल ए में उन्हें चार जीत मिली। इसके बाद क्वार्टर फाइनल में ग्रेट ब्रिटेन को 3-1 से हराकर उन्होंने पदक की ओर एक मजबूत कदम बढ़ाया। लेकिन सेमीफाइनल मैच के अंतिम क्षणों के बिखरे प्रदर्शन के कारण उन्हें बेल्जियम के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी। इससे पहले पूल मैच में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को बुरी तरह से परास्त किया था। ये दोनों हार भारतीय टीम के लिए बेहद पीड़ादायी थीं, क्योंकि भारतीय टीम इतनी कमजोर भी नहीं थी। खेल के मैदान पर कोई दिन किसी टीम विशेष का अच्छा होता है तो किसी के लिए बुरे सपने जैसा साबित होता है। शायद वो भारत के दिन नहीं थे। लेकिन भारी गर्मी और उमस के बीच दमदार प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध भारतीय टीम ने जिस मानसिक दृढ़ता के साथ वापसी की, उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी वीरेन रासकिन्हा ने भी स्वीकार किया कि ओलंपिक के महामंच पर किसी भी टीम के लिए एक चूक भी बहुत भारी पड़ जाती है। भारतीय टीम में अनुभवी व युवा खिलाड़ियों का मिश्रण है और खिलाड़ियों ने आपस में जो तालमेल दिखाए और निराशाजनक हार के बावजूद जो मानसिक दृढ़ता दिखायी, उसकी सराहना की जानी चाहिए। वीरेन ने कहा, जब-जब भारतीय टीम लय में दिखी, हमारे खिलाड़ियों ने शानदार बॉल टैकलिंग से लेकर बेहतरीन स्टिक वर्क, आक्रमण और रक्षण का परिचय दिया। यह एक बेहतरीन टीम ही कर सकती है।
मैच के ठीक बाद भारतीय टीम के स्टार खिलाड़ी रूपिंदर पाल सिंह ने कहा–भारत में खेलप्रेमी हॉकी को भूलने लगे थे। हॉकी को आज भी देश में काफी प्यार किया जाता है और हजारों युवा मैदान पर हॉकी खेलते दिख जाएंगे। लेकिन खेलप्रेमियों का राष्ट्रीय हॉकी टीम से विश्वास उठने सा लगा था और उन्हें लगता नहीं था कि हम अब भी ओलंपिक पदक जीत सकते हैं। अब हम जब टोक्यो ओलंपिक में पदक जीत चुके हैं तो खेलप्रेमियों की अपेक्षाएं हमसे बढ़ेंगी। बस हम पर भरोसा बनाए रखें। भविष्य में भारतीय टीम और बेहतर परिणाम लाने में सफल रहेगी। वास्तव में रूपिंदर की ये अपील और टीम पर इतना भरोसा दर्शाता है कि भारतीय हॉकी टीम काफी बदल चुकी है। उनमें गौरवपूर्ण इतिहास के दिन लौटाने की पूरी क्षमता है और जीत की अदम्य इच्छाशक्ति उन्हें शिखर पर पहुंचा सकती है।
भारतीय टीम के संयम, संघर्ष और लगन का एक उदाहरण देना उचित होगा कि टोक्यो ओलंपिक खेलों का आयोजन कोरोना वैश्विक महामारी के कारण एक साल के लिए टाल दिया गया था। भयानक महामारी के प्रकोप से बचने के लिए पूरी दुनिया में लोग अपने घरों में दुबक गए थे। वायरस के बचने के लिए तमाम प्रयास कर रहे थे। उस कठिन घड़ी में भारतीय हॉकी टीम के कई खिलाड़ी संक्रमित हुए। टीम में एक अनजाने भय का माहौल पैदा हो गया। इसके बावजूद भारतीय टीम ने हिम्मत नहीं खोयी और टोक्यो की गर्मी व उमस से पार पाने के लिए बेंगलुरु साई सेंटर में भरी दोपहर में हाड़तोड़ मेहनत और अभ्यास करते रहे। टीम के हर एक खिलाड़ी के दिमाग में सिर्फ ओलंपिक पदक पाने की एक जिद थी, और वो इस प्रयास में न थके न ही हारे। उसी दृढ़ प्रतिज्ञा के बल पर विश्व हॉकी जगत में भारतीय तिरंगा शान से लहरा रहा है। सैल्यूट है टीम इंडिया।
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